12 November 2023
हमारी सनातन संस्कृति में व्रत, त्यौहार और उत्सव का अपना विशेष महत्व है। सनातन धर्म में पर्व और त्यौहारों का इतना बाहुल्य है कि यहाँ के लोगों में ‘सात वार नौ त्यौहार’ की कहावत प्रचलित हो गयी। इन पर्वों तथा त्यौहारों के रूप में हमारे ऋषियों ने जीवन को स्वस्थ, सुंदर, सरस और उल्लासपूर्ण बनाने की सुन्दर व्यवस्था की है। प्रत्येक पर्व और त्यौहार का अपना एक विशेष महत्व है, जो विशेष विचार तथा उद्देश्य को सामने रखकर निश्चित किया गया है।
ये पर्व और त्यौहार चाहे किसी भी श्रेणी के हों तथा उनका बाह्य रूप भले भिन्न-भिन्न हो, परन्तु उन्हें स्थापित करने के पीछे हमारे ऋषियों का उद्देश्य था – समाज को स्वस्थ, सम्मानीय जीवन जीते हुए भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर ले जाना।
उत्तरायण, शिवरात्रि, होली, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, नवरात्रि, दशहरा आदि त्यौहारों को मनाते – मनाते आ जाती है, पर्वों की पुंज दीपावली। पर्वों के इस पुंज में 5 दिन मुख्य हैं- धनतेरस, काली चौदस, दीपावली, नूतन वर्ष और भाईदूज। धनतेरस से लेकर भाईदूज तक के ये 5 दिन आनंद उत्सव मनाने के दिन हैं।
घर की साफ सफाई करना, शरीर को रगड़-रगड़ कर स्नान करना, नए वस्त्र पहनना, मिठाइयाँ खाना खिलाना, नूतन वर्षाभिनंदन का आदान प्रदान करना। भाईयों के लिए बहनों में प्रेम और बहनों के प्रति भाइयों द्वारा अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करना – ऐसे मनाए जाने वाले 5 दिनों के उत्सवों के नाम है ‘दीपावली पर्व’ ।
दीपों के त्यौहार दीपावली की रात्रि को भगवान गणपति, माता लक्ष्मी एवं माता सरस्वती का पूजन किया जाता है।
जिसके जीवन में उत्सव नहीं है, उसके जीवन में विकास भी नहीं है। जिसके जीवन में उत्सव नहीं, उसके जीवन में नवीनता भी नहीं है और वह आत्मा के सानिध्य में भी नहीं है।
भारतीय संस्कृति के निर्माता ऋषिजन कितनी दूरदृष्टिवाले रहे होंगे ! महीने में अथवा वर्ष में एक – दो दिन आदेश देकर कोई काम मनुष्य द्वारा करवाया जाये तो उससे मनुष्य का सम्पूर्ण विकास संभव नहीं है। परंतु मनुष्य यदा कदा अपना विवेक जगाकर उल्लास, आनंद, प्रसन्नता, स्वास्थ्य और स्नेह का सदगुण विकसित करे तो उसका जीवन विकसित हो सकता है।
अभी कोई भी ऐसा धर्म नहीं है, जिसमें इतने सारे उत्सव हों, एक साथ इतने सारे लोग ध्यानमग्न हो जाते हों, भाव विभोर, समाधिस्थ हो जाते हों, कीर्तन में झूम उठते हों। जैसे स्तंभ के बगैर पंडाल नहीं टिक सकता वैसे ही उत्सव के बिना धर्म विकसित नहीं हो सकता। जिस धर्म में ज्ञान विज्ञानयुक्त अच्छे उत्सव हैं, वह धर्म है सनातन धर्म। सनातन धर्म के बालकों को अपनी सनातन वस्तु प्राप्त हो, उसके लिए उदार चरित्र बनाने का जो काम है वह पर्वों, उत्सवों और सत्संगों के आयोजन द्वारा हो रहा है।
पाँच पर्वों के पुंज इस दीपावली महोत्सव को लौकिक रूप से मनाने के साथ साथ हम उसके अलौकिक आध्यात्मिक महत्त्व को भी समझें, यही लक्ष्य हमारे पूर्वज ऋषि मुनियों का रहा है।
इस पर्वपुंज के निमित्त ही सही, अपने भगवान, ऋषि-मुनियों के, संतों के दिव्य ज्ञान के आलोक में हम अपना अज्ञानांधकार मिटाने के मार्ग पर शीघ्रता से अग्रसर हों – यही इस दीपमालाओं के पर्व दीपावली का संदेश है।
( स्तोत्र : संत श्री आसारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित साहित्य “पर्वो का पुंज दीपावली” से )
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