हॉलीवुड अभिनेता सिलवेस्टर स्टेलोन ने भारत आकर किया श्राद्धकर्म।

विदेश की नामी हस्तियाँ भी अपने पितरों की मुक्ति और शांति के लिए श्राद्ध करने भारत आती हैं…..

6 October 2023

 

 

 

‘श्राद्ध’ पितृऋण चुकाने के लिए अत्यंत आवश्यक माना जाता है। श्राद्धविधि में किए जानेवाले मंत्रोच्चारण में पितरों को गति देने की सूक्ष्म शक्ति समाई हुई होती है। श्राद्ध में पितरों को तर्पण करने से वे संतुष्ट होते हैं। श्राद्धविधि करने से पितरों को मुक्ति मिलती है और हमारा जीवन भी सुव्यवस्थित,सुखमय और संपन्न हो जाता है।

 

हिन्दू धर्म में एक अत्यंत सुरभित पुष्प है कृतज्ञता की भावना, जो कि बालक में अपने माता-पिता के प्रति स्पष्ट परिलक्षित होती है। हिन्दू धर्म का व्यक्ति अपने जीवित माता-पिता की सेवा तो करता ही है, उनके देहावसान के बाद भी उनके कल्याण की भावना करता है एवं उनके अधूरे शुभ कार्यों को पूर्ण करने का प्रयत्न करता है।

 

अपने पूर्वजों की सद्गति के लिए हिन्दूधर्म में की जाने वाली श्राद्ध-विधि विदेशी लोगों को भी आकर्षित करती है और शायद यही कारण है कि, कई विदेशी लोग अपने पूर्वजों को मुक्ति दिलाने की यह विधि करने के लिए भारत आते है एवं पूरी श्रद्धा से यह विधि करते हैं ।

 

हॉलीवुड अभिनेता सिलवेस्टर स्टेलोन ने करवाया श्राद्ध

 

अपने 36 वर्षीय बेटे पुत्र सेज स्टेलोन की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा की शांति के लिए रॉकी बेलबोआ सीरिज के लिए मशहूर हॉलीवुड अभिनेता सिलवेस्टर स्टेलोन ने भी हिंदू कर्मकांड को अपनाया। कुछ साल पहले पितृ पक्ष के दौरान स्टेलोन के बेटे का पिंडदान कनखल के सतीघाट पर किया गया।

 

स्टेलोन को उनके बेटे की आत्मा हर जगह नजर आ रही थी। इससे वो मानसिक रूप से परेशान हो गए थे। ऐेसे में हिंदू दर्शन और कर्मकांड से प्रभावित होकर स्टेलोन ने अपने भाई माइकल और उनकी पत्नी को बेटे के पिंडदान के लिए हरिद्वार भेजा था।

 

यूरोपियन लोगो ने किया पितरों का श्राद्ध

 

यूरोप के देश चेक रिपब्लिक से 10 विदेशियों का दल (Group of Europeans) दो साल पहले कानपुर पहुंचा था। सनातन धर्म अनुसार विधि विधान का पालन करते हुए सभी ने अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए श्राद्धकर्म किया था और भारत में 15 दिन रुक कर हवन पूजन और धार्मिक अनुष्ठान आदि किया था।

 

इन सभी ने स्वीकार किया है कि मृत्यु के बाद किसी न किसी रूप में पित्र या पूर्वज विद्यमान रहते हैं और ये सभी अपने ही वंश के सदस्यों को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रभावित या फिर दुष्प्रभावित करते रहते हैं। चेक गणराज्य के प्लाम्पलोव शहर के डिप्टी मेयर रहे जीरी कोचन्द्रल अपनी पत्नी वेरा कोचन्द्रल के साथ आए थे, जो खासे प्रभावित भी हुए थे।

 

जीरी का कहना है कि, यह सब देखना और इसकी अनुभूति करना इनके दल के लिए अकल्पनीय जैसा है। ये सभी हवन के बाद आनंद से भर जाते हैं। चेक रिपब्लिक के नागरिक पीटर की माने तो वो सभी यहां ज्ञान प्राप्त करने के लिए ही आए हैं। वैदिक संस्कृति में होने वाले संस्कारों को देखकर वे खुद को खुशकिस्मत भी मानते हैं। इनको साथ लाए राजीव सिन्हा की माने तो यहां सभी राज्यों से लोग आते जाते हैं, विदेशियों का भी एक जत्था यहां आया है , जो प्रसन्नता और शांति की अनुभूति कर रहा है।

 

अभी तक यही कहा जाता है कि, विदेशियों की परंपरा में अपने पूर्वजों की मुक्ति का अनुष्ठान नहीं किया जाता क्योंकि पाश्चात्य संस्कृति में पुनर्जन्म की मान्यता को लेकर काफी मतभेद हैं। लेकिन वैदिक संस्कृति में रम चुके ये लोग पितरों के श्राद्ध और पूजा अर्चना के बाद सुख की अनुभूति कर रहे हैं ।

 

कुछ साल पहले यह विधि करने के लिए रूस के नताशा स्प्रबनोभा, सरगे और एकत्रिना ने धर्मनगरी गया आकर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया था।

 

गया में पिंडदान किया रुसी नागरिकों ने:

 

इन लोगों ने ऐतिहासिक विष्णुपद मंदिर, फल्गु के देवघाट, प्रेतशिला और रामशिला वेदी पर पिंडदान किया और पूर्वजों के लिए स्वर्गलोक की कामना की। इन लोगों ने विष्णुपद मंदिर में पूजा अर्चना की। मीडिया से बात करते हुए इन लोगों ने कहा कि, सनातन धर्म के बारे में पढ़ा था जिसमें पिंडदान को काफी महत्वपूर्ण माना गया है और इस परंपरा को भारतीय वेशभूषा में संपन्न करने के बाद उनकी आकांक्षा आज पूरी हो गयी है !

 

बता दें कि वर्ष 2017 में मोक्ष स्थली गया में पितरों की मुक्ति के महापर्व पितृपक्ष मेला के दौरान देवघाट पर अमेरिका, रूस, जर्मनी और स्पेन के कई विदेशी नागरिकों ने अपने पितरों की मुक्ति की कामना को लेकर पिंडदान व तर्पण किया था। उन्हीं में से जर्मनी की एक नागरिक इवगेनिया ने कहा था कि, भारत धर्म और अध्यात्म की धरती है। गया आकर मुझे आंतरिक शांति की अनुभूति हो रही है। मैं यहां अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने आई हूँ।

 

इन विदेशियों को हिन्दू धर्म के अनुसार आचरण करते देख एक संतोष होता है, कि हमारी संस्कृति इतनी महान है, जिसमें हर जाति,वर्ग और देश के और यहां तक की समस्त चराचर जगत के मंगल की व्यवस्था है।

 

माता-पिता, निकट संबंधियों या अन्य किसी के भी मरणोपरांत यात्रा सुखमय एवं क्लेशरहित हो तथा उन्हें सद्गति मिले, इस हेतु किया जानेवाला संस्कार है ‘श्राद्ध’। श्राद्ध-विधि करने से पितरों की कष्ट से मुक्ति मिलती है और हमारा जीवन भी सुगम व सुखमय हो जाता है। परंतु दुर्भाग्यवश आज हिन्दुओं को ऐसी विधियाँ करना पिछड़ापन लगता है। उनकी मॉडर्न जीवनशैली को श्राद्धकर्म अंधश्रद्धा लगती है।

 

धर्मशिक्षा का महत्त्व…

अपने रीति-रिवाजों को अंधश्रद्धा मानना , हिन्दू समाज की बड़ी ही दु:खद स्थिति है। आज हिंदुओं को धर्मशिक्षा न मिलने के कारण ही उनका इस प्रकार अध:पतन हो रहा है।

आज ऐसी स्थिति है कि, विदेशों से आकर श्रद्धालु हिन्दूधर्म तथा अध्यात्म के बारे में जानकारी प्राप्त कर हिन्दूधर्म के अनुसार आचरण करने लगे हैं, वहीं हिन्दूधर्म की पुण्यभूमि भारतवर्ष के कई हिन्दुओं को ही आज धर्माचरण करना पिछड़ेपन जैसे लगता है।

 

मृत्यु के बाद जीवात्मा को उत्तम, मध्यम एवं कनिष्ठ कर्मानुसार स्वर्ग या नरक में स्थान मिलता है। पाप-पुण्य क्षीण होने पर वह पुनः मृत्युलोक (पृथ्वी) पर आता है। स्वर्ग में जाना यह पितृयान मार्ग है एवं जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त होना यह देवयान मार्ग है।

 

पितृयान मार्ग से जाने वाले जीव पितृलोक से होकर चन्द्रलोक में जाते हैं। चंद्रलोक में अमृतान्न का सेवन करके निर्वाह करते हैं। यह अमृतान्न कृष्ण पक्ष में चंद्र की कलाओं के साथ क्षीण होता रहता है। अतः कृष्ण पक्ष में वंशजों को उनके लिए आहार पहुँचाना चाहिए, इसीलिए श्राद्ध एवं पिण्डदान की व्यवस्था की गयी है। शास्त्रों में आता है कि अमावस के दिन तो पितृतर्पण अवश्य करना चाहिए।

 

भगवान श्रीरामचन्द्रजी भी श्राद्ध करते थे।

जिन्होंने हमें पाला-पोसा, बड़ा किया, पढ़ाया-लिखाया, हममें भक्ति, ज्ञान एवं धर्म के संस्कारों का सिंचन किया उनका श्रद्धापूर्वक स्मरण करके उन्हें तर्पण-श्राद्ध से संतुष्ट व प्रसन्न करने के दिन ही हैं श्राद्धपक्ष। इस दिनों में पितृऋण से मुक्त होने के लिए हमें श्राद्ध अवश्य करना चाहिए ।

 

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