16 September, 2023
तमिलनाडु के दिवंगत नेता पेरियार को इस विघटनकारी मानसिकता का जनक कहा जाये, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। पेरियार ने दलित वोट-बैंक को खड़ा करने के लिए ऐसा घृणित कार्य किया था। स्टालिन जैसे लोग भी अपनी राजनीतिक हितों को साधने के लिए उन्हीं का अनुसरण कर रहे है। पेरियार ने अपने आपको सही और श्री राम जी को गलत सिद्ध करने के लिए एक पुस्तक भी लिखी थी जिसका नाम था सच्ची रामायण।
सच्ची रामायण पुस्तक वाल्मीकि रामायण के समान राम जी का कोई जीवन चरित्र नहीं है। बल्कि हम इसे रामायण की आलोचना में लिखी गई एक पुस्तक कह सकते हैं। इस में रामायण के हर पात्र के बारे में अलग अलग लिखा गया है। उनकी यथासंभव आलोचना की गई है। इस में राम ,सीता ,दशरथ हनुमान आदि के बारे में ऐसी ऐसी बाते लिखी गई है। जिनका वर्णन करने में लेखनी भी इंकार कर दे। सब से बड़ी बात सच्ची रामायण में पेरियार ने जबरन कुछ पात्रों को दलित सिद्ध करने का प्रयास किया है। इन ( पेरियार द्वारा घोषित ) दलित पात्रों का पेरियार ने जी भरकर महिमामंडन किया। यहाँ तक की रावण की इस पुस्तक में बहुत प्रशंसा की गई है। यहाँ तक कहा गया है कि राम उसे आसानी से हरा नहीं सकते थे। इसलिए उसे धोखे से मार गया। इसी पुस्तक में लिखा है के सीता अपनी इच्छा से रावण के साथ गयी थीं, क्यों कि उन्हें राम पसंद नहीं थे।
पेरियार श्रीराम के विषय में लिखता है कि तमिलवासियों , भारत के शूद्रों तथा महाशूद्रों के लिये राम का चरित्र शिक्षाप्रद एवं अनुकरणीय नहीं है।
पेरियार के अनुसार…
महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण में मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्री राम का जो चित्रण किया गया है वो राम इस कल्पना के विपरीत हैं । पेरियार की कुत्सित मानसिकता का परिचय देती है उसकी यह दिमागी कचरे के बंडल जैसी किताब सच्ची रामायण, जिसके आगे रामायण शब्द लिखना भी बुरा लगता है।
पेरियार लिखता है कि, राम विश्वासघात, छल, कपट, लालच, कृत्रिमता, हत्या,आमिष-भोज और निर्दोष पर तीर चलाने की साकार मूर्ति थे।
रामायण के प्रमुख पात्र भगवान राम मनुष्यरूप में प्रकट हो कर सभी के लिए आदर्श और मर्यदापुर्षोत्तम हैं। राम के वास्तविक स्वरूप को समझने के लिए वाल्मीकि रामायण पढ़ें ।
*एतदिच्छाम्यहं श्रोतु परं कौतूहलं हि मे।महर्षे त्वं समर्थो$सि ज्ञातुमेवं विधं नरम्।।*(बालकांड सर्ग १ श्लोक ५)
आरंभ में वाल्मीकि जी नारदजी से प्रश्न करते है कि “हे महर्षि ! ऐसे सर्वगुणों से युक्त नर रूप में नारायण के संबंध में जानने की मुझे उत्कट इच्छा है,और आप इस प्रकार के मनुष्य को जानने में समर्थ हैं।
महर्षि वाल्मीकि ने श्रीरामचंद्र को *सर्वगुणसंपन्न* कहा है।
*अयोध्याकांड प्रथम सर्ग श्लोक ९-३२ में श्री राम जी के गुणों का वर्णन करते हुए वाल्मीकि जी लिखते है।
*सा हि रूपोपमन्नश्च वीर्यवानसूयकः।भूमावनुपमः सूनुर्गुणैर्दशरथोपमः।९।कदाचिदुपकारेण कृतेतैकेन तुष्यति।न स्मरत्यपकारणा शतमप्यात्यत्तया।११।*
अर्थात्:- श्रीराम बड़े ही रूपवान और पराक्रमी थे।वे किसी में दोष नहीं देखते थे।भूमंडल पर उनके समान कोई न था।वे गुणों में अपने पिता के समान तथा योग्य पुत्र थे।९।।
कभी कोई उपकार करता तो उसे सदा याद रखते तथा उसके अपराधों को याद नहीं करते।।११।।
आगे संक्षेप में इसी सर्ग में वर्णित श्रीराम के गुणों का वर्णन करते हैं।देखिये
*श्लोक १२-३४*।इनमें श्रीराम के निम्नलिखित गुण हैं।
१:-अस्त्र-शस्त्र के ज्ञाता।महापुरुषों से बात कर उनसे शिक्षा लेते।
२:-बुद्धिमान,मधुरभाषी तथा पराक्रमी, पर इन सब गुणों का गर्व न करने वाले।
३:-सत्यवादी,विद्वान, प्रजा के प्रति अनुरक्त , प्रजा भी उनको चाहती थी।
४:-परमदयालु,क्रोध को जीतने वाले,दीनबंधु।
५:-कुलोचित आचार व क्षात्रधर्म के पालक।
६:-शास्त्र विरुद्ध बातें नहीं मानते थे,वाचस्पति के समान तर्कशील।
७:-उनका शरीर निरोग था(आमिष-भोजी का शरीर निरोग नहीं हो सकता), सदैव तरूणावस्था जैसे सुंदर शरीर से सुशोभित थे।
८:-‘सर्वविद्याव्रतस्नातो यथावत् सांगवेदवित’-संपूर्ण विद्याओं में प्रवीण, षडमगवेदपारगामी।बाणविद्या में अपने पिता से भी बढ़कर।
९:-उनको धर्मार्थकाममोक्ष का यथार्थज्ञान था तथा प्रतिभाशाली थे।
१०:-विनयशील,महान गुरुभक्त एवं आलस्य रहित थे।
११:- धनुर्वेद में सब विद्वानों से श्रेष्ठ।
कहां तक वर्णन किया जाये…? वाल्मीकि जी ने तो यहां तक कहा है, कि *लोके पुरुषसारज्ञः साधुरेको विनिर्मितः।*( वही सर्ग श्लोक १८)
अर्थात्:-
*उन्हें देखकर ऐसा जान पड़ता था, कि संसार में विधाता ने समस्त पुरुषों के सारतत्त्व को समझने वाले साधु पुरुष के रूप में एकमात्र श्रीराम को ही प्रकट किया है।*
अब पाठकगण स्वयं निर्णय कर लेंगे कि श्रीराम क्या थे !! लोभी,हत्यारा,मांसभोजी आदि या सदाचारी और श्रेष्ठतमगुणों और मर्यादा की साक्षात् मूर्ति !!!
श्री राम तो रामो विग्रहवान धर्मः अर्थात धर्म के साक्षात् मूर्त रूप हैं।
राम तो राम हैं…हमारा उनके श्रीचरणों में प्रणाम है ।
भारत देश जो आज है उतना ही नहीं है। भारत के कई राजा पूरे पृथ्वी के सम्राट रहे हैं, ऐसा कई हिन्दू धर्म ग्रंथों में वर्णन आता है। लेकिन दुष्ट स्वभाव के ( राक्षस जैसे ) लोग धीरे धीरे विभाजन करते गए और अन्य मत पंथ आते गए और आखिर में भारत एक छोटा देश बन कर रह गया और आज इस भारत में भी राष्ट्र विरोधी ताकतें लोगों को जात-पात में बांटकर अपनी सत्ता स्थापित करना चाहते है।
आसानी से समझना है तो यही है , कि जो सनातन विरोधी है… वही राष्ट्र विरोधी है और वे राष्ट्र और संस्कृति को खत्म करके अपनी सत्ता कायम करना चाहते हैं । इसलिए ऐसे दुष्ट स्वभाव के लोगो की पहचान करके देश से उनको उखाड़ फेंकना चाहिए।
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