भारत के महान वीर योद्धाओ को नमन

1 जून 2022

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2 जून तिथि अनुसार भारत के महान स्वाधीनता सेनानी महाराणा प्रताप और महावीर छत्रसाल जयंती पर शत् शत् नमन।

महाराणा प्रताप का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया विक्रम संवत 1597 में हुआ था।

महावीर छत्रसाल का जन्म बुंदेला क्षत्रिय परिवार में हुआ था और वे ओरछा के रुद्र प्रताप सिंह के वंशज थे। छत्रसाल के पिता चम्पतराय बुन्देला जब समर भूमि में जीवन-मरण का संघर्ष झेल रहे थे उन्हीं दिनों ज्येष्ठ शुक्ल 3 संवत 1707 को ककर कचनाए ग्राम के पास स्थित विन्ध्य-वनों की मोर पहाड़ियों में छत्रसाल का जन्म हुआ था।

महाराणा प्रताप वीरता, शौर्य, त्याग, पराक्रम और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने मुगल बादशहा अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और कई सालों तक संघर्ष किया। महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलों को कईं बार युद्ध में भी हराया और हिंदुस्थान के पुरे मुघल साम्राज्य को घुटनो पर ला दिया था।

महाराणा प्रताप वीर,प्रतापी,देशभक्त और शत्रुओं के छक्के छुड़ाने वाले थे।

महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो था और लंबाई 7 ‘5” फिट थी,वे दो म्यान वाली तलवार और 80 किलो का भाला रखते थे।

हल्दीघाटी युद्ध में राणा के 20,000 सैनिकों ने अकबर के 80,000 सैनिकों को भगा दिया था।

महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन को काट डालते थे।

अकबर महाराणा प्रताप के युद्ध कौशल से इतना घबरा गया था कि वह सपने में भी महाराणा प्रताप का नाम लेकर कांपने लगता था।

महाराणा प्रताप आज भी अमरता के गौरव तथा मानवता के विजय सूर्य है। एक सच्चे शूरवीर ,महान पराक्रमी, देशभक्त ,वीर योद्धा ,मातृ भूमि के रखवाले के रूप में महाराणा प्रताप दुनिया में सदैव के लिए अमर हो गए।

महाराणा प्रताप ने मुगलों को कईं बार युद्ध में हराया और हिंदुस्थान के पुरे मुगल साम्राज्य को घुटनो पर ला दिया था।

महाराजा छत्रसाल भारत के मध्ययुग के एक महान प्रतापी योद्धा थे जिन्होने मुगल शासक औरंगज़ेब को युद्ध में पराजित करके बुन्देलखण्ड में अपना राज्य स्थापित किया था।

महावीर छत्रसाल को 5 वर्ष की आयु में ही युद्ध कौशल की शिक्षा हेतु अपने मामा साहेबसिंह धंधेरे के पास देलवारा भेज दिया गया था। अपने पराक्रमी पिता चंपतराय बुन्देला की मृत्यु के समय वे मात्र 12 वर्ष के ही थे। माता-पिता के निधन के कुछ समय पश्चात ही वे बड़े भाई अंगद बुन्देला के साथ देवगढ़ चले गये। बाद में अपने पिता के वचन को पूरा करने के लिए छत्रसाल बुन्देला ने परमार वंश की कन्या देवकुंअरि से विवाह किया।

औरंगजेब छत्रसाल को पराजित करने में सफल नहीं हो पाया। उसने रणदूलह के नेतृत्व में 30 हजार सैनिकों की टुकडी मुगल सरदारों के साथ छत्रसाल का पीछा करने के लिए भेजी थी। छत्रसाल अपने रणकौशल व छापामार युद्ध नीति के बल पर मुगलों के छक्के छुड़ाते रहे। छत्रसाल को मालूम था कि मुगल छलपूर्ण घेराबंदी में सिद्धहस्त हैं। उनके पिता चंपतराय मुग़लों से धोखा खा चुके थे। छत्रसाल ने मुगल सेना से इटावा, खिमलासा, गढ़ाकोटा, धामौनी, रामगढ़, कंजिया, मडियादो, रहली, मोहली, रानगिरि, शाहगढ़, वांसाकला सहित अनेक स्थानों पर लड़ाई लड़ी। छत्रसाल की शक्ति बढ़ती गयी। बन्दी बनाये गये मुगल सरदारों से छत्रसाल ने दंड वसूला और उन्हें मुक्त कर दिया। बुन्देलखंड से मुगलों का एकछत्र शासन छत्रसाल ने समाप्त कर दिया।

ऐसे महान वीरों से भरी पड़ी है भारत भूमि , जब जब भी भारत में विधर्मियों ने आतंक फैलाया तब तब महाराणा प्रताप और महावीर छत्रसाल जैसे महान वीरों में देश की रक्षा की।

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