कोरोना में विफलता के केरल मॉडल पर मीडिया की चुप्पी किस कारण से है?

09 अगस्त 2021

azaadbharat.org

मीडिया में इन दिनों कोरोना को लेकर शान्ति है और कई और मुद्दों पर बात हो रही है; परन्तु प्रश्न यह होना चाहिए कि आखिर मीडिया में इन दिनों कोरोना का शोर कम क्यों है?

ऐसा तो है नहीं कि देश में कोरोना के मामले कम हो गए हैं या फिर शेष नहीं रह गए हैं? कोरोना के मामले बढ़ ही रहे हैं।
तो क्या मीडिया के लिए यह अब कोई खबर नहीं रह गयी है?

वास्तव में, मीडिया से इसलिए खबर विलुप्त है क्योंकि ये मामले अब उनके प्रिय प्रदेश और जिस प्रदेश को सफलता का मॉडल बनाकर प्रस्तुत किया था, उस केरल से आ रहे हैं। वही केरल, जिसमें होने वाले अपराधों की ओर से मीडिया आँखें मूंदे रहती है, वही केरल जहाँ पर होने वाले बलात्कारों पर मिडिया आँखें मूंदे रहती है। मीडिया और लेखकों का प्रिय प्रदेश केरल, ऐसा प्रदेश था, जिसने बकरीद पर विशेष छूट दी थी और एक ओर जहाँ पूरा मीडिया इस बात को स्थापित करने में लगा हुआ था कि कैसे कांवड़ से कोरोना बढ़ सकता है, वह बकरीद पर मिली छूट पर शांत था।

मीडिया का हिन्दूविरोध कोरोना की रिपोर्टिंग से भी पता चला था और अब धीरे धीरे और स्पष्ट होता जा रहा है। कैसे बिना किसी प्रमाण के कुम्भ को दोषी ठहराया गया था और अब कांवड़ यात्रा को रद्द कराने के लिए डराने वाले आंकड़े प्रस्तुत किए जाने लगे थे।

यहाँ तक कि उच्चतम न्यायालय ने भी कांवड़ यात्रा पर स्वत: संज्ञान लिया था, जब उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रा को अनुमति दी थी। न्यायालय ने इंडियन एक्सप्रेस की खबर पर स्वत: संज्ञान लिया था कि जहाँ उत्तराखंड सरकार ने कांवड़ यात्रा को अनुमति नहीं दी है, तो उत्तर प्रदेश सरकार कैसे अनुमति दे सकती है?

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने भी चिंता व्यक्त की थी। मगर केरल सरकार ने बकरीद पर तीन दिनों के लिए अर्थात् 18 से 20 जुलाई तक लॉकडाउन से छूट दी थी, इसपर न ही न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लिया और न ही मीडिया ने इसपर कुछ कहा; हालांकि जब समय बीत गया, तो न्यायालय की ओर से राज्य सरकार को फटकार लगाई गयी, पर उसका कोई अर्थ नहीं था क्योंकि समय बीत गया था।

मीडिया और लेखकों का एक बड़ा वर्ग अपनी सेक्युलर सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम से इतना अभिभूत था कि जैसे बकरीद मनाने के लिए यह छूट देकर सरकार कोई गलत कार्य नहीं कर रही है। लेखकों का एक बड़ा वर्ग है जो हर वर्ष कांवड़ यात्रा को कोसता है, कांवड़ यात्रा को न होने देने के लिए हर सम्भव प्रयास करता है, परन्तु अब्राहमिक रिलिजन में मजहब के नाम पर जो खून खराबा होता है, उसपर शांत रहता है।

खैर, बकरीद पर दी गयी छूट पर एक बड़ा वर्ग मौन रहा था और वह मौन अब तक जारी है, क्योंकि उनका प्रिय केरल ही पूरे देश में कोरोना के मामलों में वृद्धि कर रहा है।
इस समय केरल में जहां सबसे ज्यादा 178,685 मामले सक्रिय हैं, वामपंथियों के प्रिय देश बांग्लादेश में भी बकरीद के बाद अचानक से ही कोरोना के मामले और मृत्यु के आंकड़े तेजी से बढ़े हैं, परन्तु हर मामले में बांग्लादेश और केरल का उदाहरण देकर हिन्दुओं और भारत को नीचा दिखाने वाली मीडिया इन दोनों ही स्थानों पर न ही कोरोना के आंकड़ों और न ही उसके कारणों पर मुंह खोल रही है। ट्विटर पर मीडिया द्वारा केरल में कोरोना के मामले बढने और उसके कारण पर चुप रहने पर मीडिया से प्रश्न पूछे जा रहे हैं।
प्रशांत उमरांव ने कहा है कि केरल और बांग्लादेश दोनों ही राष्ट्रीय मीडिया के विमर्श से गायब हैं।

वहीं चर्च की प्राथमिकता पर प्रश्न उठाते हुए पंकज पाराशर कहते हैं कि इस वक्त देश के 75% कोरोना मामले केरल से आ रहे हैं।
केरल का चर्च 5 से ज्यादा बच्चों वाले पिता को भत्ता देगा।
क्या मजाक बनाकर रखा है?

इसी बात पर पत्रकार अमन चोपड़ा ने प्रश्न पूछा है कि यदि 50% कोरोना केस कावड़ यात्रा के बाद यूपी से होते तो ?

यदि ऐसा होता तो अब तक अंतर्राष्ट्रीय मीडिया हिन्दू धर्म को हर स्थान से प्रतिबंधित करने के लिए उतारू हो गई होती, भारत की इस्लाम और ईसाई परस्त वाममीडिया हिन्दू धर्म को सबसे पिछड़ा, रेग्रेसिव और कसाई धर्म बता चुकी होती; न्यायालय भी तरह तरह की याचिकाओं को स्वीकार कर चुके होते और हिन्दुओं पर इस महामारी का बोझ डाल दिया जाता, जो सर्वाधिक सहिष्णु धर्म है।

खैर, ऐसा कुछ नहीं हुआ है; तभी मीडिया शांत है। वाम, इस्लाम और ईसाई गठजोड़ वाली मीडिया केरल और कोरोना दोनों पर मौन है।
हाँ, जब उत्तर प्रदेश में कुछ होगा तो देखा जाएगा, तब शोर मचाने के लिए जाया जाएगा।
यह अजीब व्यवहार है और क्लीवता की हद तक कायम है हमारी सहिष्णुता…!!

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