हिंदू पर्व मिटाने का षड्यंत्र: दीप अमावस्या को बना दिया गटारी अमावस्या

06 अगस्त 2021

azaadbharat.org

हिन्दू पर्व अथवा त्यौहार मनाया जाता है तो उसके पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण होता है। इससे जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है, जीवन उन्नत होता है लेकिन राष्ट्र विरोधी ताकतों की हमेशा एक साजिश रही है कि हिंदुओं के पवित्र त्यौहार को विकृत कर देते हैं अथवा उस दिन कोई दूसरा त्यौहार मनाने के लिए मीडिया, टीवी, अखबार आदि के माध्यम से प्रचार करके जनता को उसके प्रति प्रेरित करते हैं और कुछ राजनैतिक दल भी उनका साथ देते हैं। यह देशवासियों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।

आपको बता दें कि वैसे तो आषाढ़ी एकादशी के बाद से ही चातुर्मास प्रारम्भ होता है लेकिन इस महीने का आखरी दिन है आषाढ़ी अमावस्या। इस वर्ष 8 अगस्त 2021 को आषाढी अमावस्या है। (गुजरात और महाराष्ट्र के पंचांग के अनुसार)

आषाढी अमावस्या को हिंदी में “दीप पूजा” और मराठी में “दिवे धूनी अमावस्या” कहा जाता है।

इस दिन घर के सभी नए-पुराने दीयों को चमकाकर पूजा की जाती है और मिठाई आदि का भोग लगाया जाता है। खासकर के यह त्यौहार महाराष्ट्र में धूम धाम से मनाया जाता है।

चराचर में नारायण का अस्तित्व मानकर, श्रावण के एक दिन पहले दीप पूजा की जाती है, साल भर में एक बार तो दीए हमें आशीर्वाद देते हैं और हमारे घर अपमृत्यु नहीं होती, सुख समृद्धि बनी रहती है।

लेकिन, आज समाज के कितने लोग इस त्यौहार को जानते और मनाते हैं??
ये वही अमावस्या है जिसे हम गटारी अमावस्या के नाम से जानते और धूमधाम से मनाते हैं।

अब कहाँ ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय…’ की तरफ़ ले जाने वाला त्यौहार और कहाँ दूसरे दिन श्रावण है तो पहले दिन ठूंसठूंस कर मांस खाना, दारू पीना, टीवी चैनल आदि पर भी ‘कितना मांस बेचा, कितने भाव बेचा’ का गुणगान गाना और पवित्र त्यौहार को विकृत ढंग से मनाना… आखिर क्यों?
क्या ये सब करके भगवान शिव, श्री गणपतिजी, माता गौरी हम से संतुष्ट होंगे?

याने श्रावण के पहले महीना भर या आखरी दिन तक पेट फूलने तक मांस खाओ, दारू पियो और दूसरे दिन से योगी…क्या हमारी संस्कृति का इतना विकृत रूप असल में है या कुछ सालों में बनाया गया?

जरा सोचिए हिन्दुओं, कहीं ये हमें हमारे धर्म से दूर ले जाने वाले स्वार्थी राजनेताओं और विधर्मियों की चाल तो नहीं…??

आज पूरा समाज इसी तरह से किसी न किसी विकृति से घिरा हुआ है, उसे जागने की जरूरत है।
देश और धर्म की उन्नति के लिए दीप पूजा मनाओ और आत्मशिव के आशीर्वाद पाओ।

करोड़ों प्राणियों की हत्या करने पर कोई भगवान आशीर्वाद नहीं देंगे; ऐसे विधर्मियोंं से अपने त्यौहार और संस्कृति को लोप होने से बचाओ।

सनातन धर्म में दीपक की रोशनी को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। ये अपने तेज प्रकाश से जीवन में रोशनी भर देता है। दीपक का प्रकाश जीवन में सुख समृद्धि भी प्रदान करता है।

दीपक जलाने का मतलब होता है- अपने जीवन से अंधकार हटाकर प्रकाश फैलाना। ऐसा करने से अग्नि देव प्रसन्न होते हैं और जीवन में आने वाली कई तरह की परेशानियों से बचाते हैं।

इसबार और आगे भी ‘गटारी अमावस्या’ नहीं मनाकर भारतीय त्यौहार ‘दीप अमावस्या’ मनायें।

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