कानून सबके लिए समान है” यह कहावत सच है या झूठ?

03 जून 2020
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तथाकथित बुद्धिजीवियों के एक बहुत बड़े वर्ग से सुनने को मिलता है कि “कानून अपना काम कर रहा है”, “कानून सबके लिए समान है” , लेकिन वास्तव में क्या कानून सबके लिए एक है कि नहीं या क़ानून के रखवालें केवल समान बोलतें ही हैं कि उसका पालन भी करते हैं या नहीं, यह आपको जानना चाहिए।

पालघर मे साधुओं की नृशंस हत्या पर न्यायालय टिप्पणी नहीं करता है पर उत्तरप्रदेश मे दंगाइयों की सुनवाई के समय जज साहब को कानून याद आ जाता है। एक खबर मे आंशिक गलती पर ‘ऑप इंडिया’ के अजित भारती पर एफआईआर दर्ज हो जाती है। कड़वा सच दिखाने पर सत्य सनातन के अंकुर आर्य पर एफआईआर दर्ज हो जाती है। जरा सी बात पर अर्णब गोस्वामी पर एफआईआर दर्ज हो जाती है, जिहाद की सच्चाई दिखाने पर सुधीर चौधरी पर एफआईआर दर्ज हो जाती है परंतु झूठी, मन गढ़ंत और सरकार तथा देश विरोधी खबरें दिखाने पर ललनटोप, ध्रुव राठी, प्रतीक सिन्हा, शेखर गुप्ता, राना अयूब और रविश कुमार पर कोई कार्यवाही नहीं होती।

जाकिर नाईक एवं मौलाना साद फरार और न्यायालय चुप रहता है पर हिंदू संतों को आधी रात में गिरफ्तार करने का आदेश देता है। इमाम बुखारी पर कई गैर जमानती वारंट हैं पर उसको गिरफ्तार करने की हिम्मत नहीं है।

बता दें कि जब किसी नेता, अभिनेता, जज या पत्रकार अथवा मुस्लिम और इसाई धर्मगुरु आदि पर आरोप लगते हैं तब सभी बुद्धजीवी बोलतें हैं कि जांच चल रही है, कानून अपना काम कर रहा है, दोषी पाये जाने पर सजा मिलेगी, कानून सबके लिए समान है आदि-आदि, लेकिन जैसे ही किसी हिंदुनिष्ठ या हिंदू साधु-संत पर आरोप लगते हैं तो सभी बोलने लग जाते हैं कि आरोपी पर इतने गंभीर आरोप लगे हैं, फिर भी गिरफ्तारी नहीं हो रही है, ये शर्मनाक बात है आदि-आदि, कुछ इस तरह के नारे लगते हैं और उनको आधी रात में गिरफ्तार कर लिया जाता है और सालों तक जमानत भी नहीं दी जाती है।

जैसे कि शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती जी पर हत्या का आरोप लगा और उनको आधी रात में गिरफ्तार कर लिया गया फिर वे निर्दोष बरी हुए।

वैसे साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, स्वामी असीमानंद, स्वामी नित्यानंद, डीजी वंजारा जी आदि को भी सालों तक जेल में प्रताड़ित किया गया और आखिर में निर्दोष बरी हुए।

अभी वर्तमान में हिंदू संत आसाराम बापू का केस तो आप देख ही रहे हैं, आरोप लगते ही आधी रात में गिरफ्तार कर लिया, 5 साल तक ट्रायल चला, लेकिन एक दिन भी उनको जमानत नहीं दी, जबकि उनकी उम्र 85 साल की है, उनकी पत्नी बीमार है, उनके सगे भांजे की मृत्य भी हो गई फिर भी जमानत नहीं मिल पाई, जबकि उनके पास षडयंत्र के तहत फ़साने और निर्दोष होने के प्रमाण भी हैं।

दूसरी ओर सलमान खान को सजा होने के बाद भी 1 घण्टे में ही जमानत मिल जाती है, संजय दत्त को बार-बार पेरोल मिल जाती है, लालू को सजा होने के बाद बेटे की शादी में जाने के लिए जमानत मिल जाती है, पत्रकार तरुण तेजपाल पर आरोप सिद्ध होने के बाद भी जमानत मिल जाती है, इससे साफ सिद्ध होता है कि कानून केवल समान बोला जा रहा है पर कानून व्यवस्था देखने वाले समानता का व्यवहार नहीं कर रहे हैं।

कानून के हाथ भले ही लम्बे हों परन्तु लगता है कि नीति बहुत ही पक्षपाती है।

पूरी दुनिया में एक व्यवस्था है जो मानवाधिकार आयोग कहलाती है। ये मानवाधिकार आयोग वाले करते क्या है? एक छोटा सा नमूना देखें–
कश्मीर में सेना पर पत्थर फेंकने वालों के अधिकारों की रक्षा करते हैं।
कसाब जैसे भयंकर आतंकी के अधिकारों की रक्षा करते हैं।
लैंडमाइन बिछा कर सैनिकों और अर्धसैनिकों को मारने वाले और विकलांग बनाने वाले नक्सलियों के अधिकारों की रक्षा करते हैं।
बम विस्फोट करने वाले आतंकियों के अधिकारों की रक्षा करते हैं।
इनकी नजर में केवल आतंकी, नक्सली, बलात्कारी, गुण्डें और डकैत ही मानव हैं…।

जबकि हिन्दू साधु-संतों की ह्त्या पर चुप रहते हैं, षडयंत्र के तहत साधु-संत अथवा हिन्दूनिष्ठ पर चूप रहते हैं, मेवात में दलित हिंदुओं की प्रताड़ना पर मौन रहते हैं, लव जिहाद में फंसाकर हिन्दू लड़कियों की हत्या पर चुप रहते हैं, दिल्ली दंगों में हिंदुओं की हत्या पर चुप रहते हैं।

देश में कई ऐसे कैदी हैं जिनके पास वकील रखने व जमानत लेने के पैसे नहीं हैं इसलिए जेल में सड़ रहे हैं, वे बाहर नहीं आ पा रहे हैं। किसी साधु-संत अथवा आम आदमी पर आरोप लगते ही गिरफ्तार कर लिया जाता है पर बड़े नेता-अभिनेता, अमीर आदि को गिरफ्तारी से पहले ही जमानत हासिल हो जाती है।

इन सब बातों से साफ पता चलता है कि कानून समान बोला जा रहा है पर उसका पालन नहीं हो रहा है इससे हिंदुनिष्ठ और आम जनता को न्याय नहीं मिल पा रहा है, यह जनता के लिए दुःखद बात है इस पर सरकार और न्यायालय को ठोस कदम उठाना चाहिए नहीं तो एक के बाद एक निर्दोष पीड़ित होते रहेंगे।

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पालघर मे साधुओं की नृशंस हत्या पर न्यायालय टिप्पणी नहीं करता है पर उत्तरप्रदेश मे दंगाइयों की सुनवाई के समय जज साहब को कानून याद आ जाता है। एक खबर मे आंशिक गलती पर ‘ऑप इंडिया’ के अजित भारती पर एफआईआर दर्ज हो जाती है। कड़वा सच दिखाने पर सत्य सनातन के अंकुर आर्य पर एफआईआर दर्ज हो जाती है। जरा सी बात पर अर्णब गोस्वामी पर एफआईआर दर्ज हो जाती है, जिहाद की सच्चाई दिखाने पर सुधीर चौधरी पर एफआईआर दर्ज हो जाती है परंतु झूठी, मन गढ़ंत और सरकार तथा देश विरोधी खबरें दिखाने पर ललनटोप, ध्रुव राठी, प्रतीक सिन्हा, शेखर गुप्ता, राना अयूब और रविश कुमार पर कोई कार्यवाही नहीं होती।

जाकिर नाईक एवं मौलाना साद फरार और न्यायालय चुप रहता है पर हिंदू संतों को आधी रात में गिरफ्तार करने का आदेश देता है। इमाम बुखारी पर कई गैर जमानती वारंट हैं पर उसको गिरफ्तार करने की हिम्मत नहीं है।

बता दें कि जब किसी नेता, अभिनेता, जज या पत्रकार अथवा मुस्लिम और इसाई धर्मगुरु आदि पर आरोप लगते हैं तब सभी बुद्धजीवी बोलतें हैं कि जांच चल रही है, कानून अपना काम कर रहा है, दोषी पाये जाने पर सजा मिलेगी, कानून सबके लिए समान है आदि-आदि, लेकिन जैसे ही किसी हिंदुनिष्ठ या हिंदू साधु-संत पर आरोप लगते हैं तो सभी बोलने लग जाते हैं कि आरोपी पर इतने गंभीर आरोप लगे हैं, फिर भी गिरफ्तारी नहीं हो रही है, ये शर्मनाक बात है आदि-आदि, कुछ इस तरह के नारे लगते हैं और उनको आधी रात में गिरफ्तार कर लिया जाता है और सालों तक जमानत भी नहीं दी जाती है।

जैसे कि शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती जी पर हत्या का आरोप लगा और उनको आधी रात में गिरफ्तार कर लिया गया फिर वे निर्दोष बरी हुए।

वैसे साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, स्वामी असीमानंद, स्वामी नित्यानंद, डीजी वंजारा जी आदि को भी सालों तक जेल में प्रताड़ित किया गया और आखिर में निर्दोष बरी हुए।

अभी वर्तमान में हिंदू संत आसाराम बापू का केस तो आप देख ही रहे हैं, आरोप लगते ही आधी रात में गिरफ्तार कर लिया, 5 साल तक ट्रायल चला, लेकिन एक दिन भी उनको जमानत नहीं दी, जबकि उनकी उम्र 85 साल की है, उनकी पत्नी बीमार है, उनके सगे भांजे की मृत्य भी हो गई फिर भी जमानत नहीं मिल पाई, जबकि उनके पास षडयंत्र के तहत फ़साने और निर्दोष होने के प्रमाण भी हैं।

दूसरी ओर सलमान खान को सजा होने के बाद भी 1 घण्टे में ही जमानत मिल जाती है, संजय दत्त को बार-बार पेरोल मिल जाती है, लालू को सजा होने के बाद बेटे की शादी में जाने के लिए जमानत मिल जाती है, पत्रकार तरुण तेजपाल पर आरोप सिद्ध होने के बाद भी जमानत मिल जाती है, इससे साफ सिद्ध होता है कि कानून केवल समान बोला जा रहा है पर कानून व्यवस्था देखने वाले समानता का व्यवहार नहीं कर रहे हैं।

कानून के हाथ भले ही लम्बे हों परन्तु लगता है कि नीति बहुत ही पक्षपाती है।

पूरी दुनिया में एक व्यवस्था है जो मानवाधिकार आयोग कहलाती है। ये मानवाधिकार आयोग वाले करते क्या है? एक छोटा सा नमूना देखें–
कश्मीर में सेना पर पत्थर फेंकने वालों के अधिकारों की रक्षा करते हैं।
कसाब जैसे भयंकर आतंकी के अधिकारों की रक्षा करते हैं।
लैंडमाइन बिछा कर सैनिकों और अर्धसैनिकों को मारने वाले और विकलांग बनाने वाले नक्सलियों के अधिकारों की रक्षा करते हैं।
बम विस्फोट करने वाले आतंकियों के अधिकारों की रक्षा करते हैं।
इनकी नजर में केवल आतंकी, नक्सली, बलात्कारी, गुण्डें और डकैत ही मानव हैं…।

जबकि हिन्दू साधु-संतों की ह्त्या पर चुप रहते हैं, षडयंत्र के तहत साधु-संत अथवा हिन्दूनिष्ठ पर चूप रहते हैं, मेवात में दलित हिंदुओं की प्रताड़ना पर मौन रहते हैं, लव जिहाद में फंसाकर हिन्दू लड़कियों की हत्या पर चुप रहते हैं, दिल्ली दंगों में हिंदुओं की हत्या पर चुप रहते हैं।

देश में कई ऐसे कैदी हैं जिनके पास वकील रखने व जमानत लेने के पैसे नहीं हैं इसलिए जेल में सड़ रहे हैं, वे बाहर नहीं आ पा रहे हैं। किसी साधु-संत अथवा आम आदमी पर आरोप लगते ही गिरफ्तार कर लिया जाता है पर बड़े नेता-अभिनेता, अमीर आदि को गिरफ्तारी से पहले ही जमानत हासिल हो जाती है।

इन सब बातों से साफ पता चलता है कि कानून समान बोला जा रहा है पर उसका पालन नहीं हो रहा है इससे हिंदुनिष्ठ और आम जनता को न्याय नहीं मिल पा रहा है, यह जनता के लिए दुःखद बात है इस पर सरकार और न्यायालय को ठोस कदम उठाना चाहिए नहीं तो एक के बाद एक निर्दोष पीड़ित होते रहेंगे।

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