08 जुलाई 2019
विश्व में करीब 172 देश ईसाईयों के हैं और 58 देश मुसलमान के हैं पर हिंदुओं का एक भी देश नहीं है । जबकि सृष्टि का उद्गम हुआ तो केवल सनातन (हिंदू) धर्म ही था । पर 2018 साल पुराने ईसाई धर्म ने 172 देश बना लिए और 1400 साल पुराने इस्लाम धर्म ने 58 देश बना लिए, लेकिन सनातन धर्म आज सिकुड़कर रह गया है, एक भी देश हिंदू धर्म को मानने वालों का नहीं है क्योंकि हिंदुओं में एकता नहीं है, दूसरा सेक्युलरवाद, तीसरा सभी अपने-अपने निजी कार्यों में लगे रहते हैं पर धर्म के बारे में नहीं सोचते हैं और ना ही धर्म के लिए कार्य करते हैं, अपने ही धर्मगुरुओं व देवी-देवताओं का मजाक उड़ाते हैं । इसके कारण आज दुनिया के देशों में और भारत में हिंदुओं की उपेक्षा की जा रही है फिर भले हिंदूवादी सरकार ही क्यों न हो ।
इसबार बजट में भी ऐसा ही कुछ लग रहा है, जिसमें बहुसंख्यक हिंदुओं की अनदेखी हुई लगती है और अल्पसंख्यकों के लिए सुविधाएं दी जा रही है ।
विदित हो कि मुसलमानों का विश्वास जीतने और उनके विकास के लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने तमाम वादे किये थे। चुनावों में जीत के बाद मोदी ने अपनी प्राथमिकताओं में अल्पसंख्यकों का नाम लिया। इस बार पेश हुए बजट में मोदी सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों को लेकर तमाम चिंताओं का ध्यान रखा गया है और मुस्लिमों के लिए भारी भरकम राशि आबंटित की गई है।
प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत की केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिए पेश बजट में अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के आबंटन में पिछली बार की तरह इस बार भी 4700 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है । पार्स टुडे डॉट कॉम के अनुसार, भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से पेश किए गए बजट के अनुसार अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के लिए 4700 करोड़ रुपये का आबंटन किया गया है । इससे पहले 2018-19 के आम बजट में मंत्रालय के लिए आबंटन में 505 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी कर 4700 करोड़ रुपये का आबंटन किया गया था।
वहीं इस बार पेश हुए बजट से ये साबित हुआ है कि नरेंद्र मोदी सरकार ज्यादा मुसलमान IAS और IPS चाहती है । इस बार के बजट में मोदी सरकार में IAS और IPS की परीक्षा देने वाले अल्पसंख्यक छात्रों के लिए बजट में काफी बढ़ोत्तरी की है । मुस्लिम छात्रों को सस्ती कोचिंग उपलब्ध करवाने के लिए पिछली बार मात्र 8 करोड़ रूपये की धनराशि आबंटित की गई थी, लेकिन इस बार यही धनराशि बढ़ा कर 20 करोड़ कर दी गई है । ध्यान देने योग्य है कि IAS और IPS पदों के लिए पिछले 2 वर्षो से 50-50 अल्पसंख्यक छात्र चुने गये हैं जो पहले 30 के आस पास हुआ करते थे। – स्त्रोत: सुदर्शन न्यूज़
आपको बता दें कि भारत में मुसलमानों को अल्पसंख्यक बोला जाता है बल्कि दुनिया में इनके 58 देश हैं । जिसमें सबसे ज्यादा मुस्लिम समुदाय की संख्या इंडोनेशिया में है एवं दूसरे नंबर पर भारत में है । फिर अल्पसंख्यक कहाँ से हुए ? दूसरी बात भारत के ही 8 राज्यो में हिंदू अल्पसंख्यक बन गए हैं और उनको अल्पसंख्यक की कोई भी सुविधाएं नहीं मिल रही हैं, ये कैसा भारत में दोगलापन है ?
एक तरफ तो जिन मुस्लिम देशों में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं उनको प्रताड़ित किया जाता है, उनके घर-दुकानें जला दिए जाते हैं, प्रोपर्टी हड़प ली जाती है, बेटियों को उठाकर ले जाते हैं, मंदिर तोड़ दिए जाते हैं। यहाँ तक कि श्मशान में मुर्दा जलाने के लिए भी दिक्कतें आती हैं और यहाँ भारत में जनसंख्या की दृष्टि से दूसरे नंबर पर मुसलमान है जिनको अनेक सुख-सुविधाएं दी जा रही हैं और हिंदुओं की उपेक्षा की जा रही है।
IAS के एग्जाम में अचानक मुसलमानों की बाढ़ क्यों आ गयी है ?
पिछले 4-5 सालों से कश्मीरी मुस्लिम युवक UPSC में बहुत सेलेक्ट हो रहें, इसका कारण जानना चाहा क्योंकि कश्मीरी ही नहीं बल्कि पूरे भारत से मुस्लिम युवक भी बड़ी मात्रा में upsc की बाजी मार रहें पहले इनका चयन % कम था ।।
इससे आप समझने की कोशिश करियेगा
जो मुस्लिम उर्दू साहित्य mains में रखेगा जाहिर है हिन्दू उर्दू नहीं पढ़ते, उन्हें जाँचने वाला भी मुस्लिम ही होगा और वो चाहेगा उसकी कौम का बन्दा अधिकारी बने ताकि बाद में प्रेशर ग्रुप बना सकें पूरी सरकार पे, ये उर्दू के माध्यम से UPSC जैसी परीक्षाओं में मुस्लिम और कश्मीरी युवकों को देश के उच्च पदों पर बैठाने की साज़िश है जिससे जब भी हिन्दू मुस्लिम गृह युद्ध हो ये कट्टर मुल्ले अपनी कौम का साथ दें और ओवैसी जैसे लोग इनको आसानी से अपने कब्जे में कर सके।
सरकार को चाहिए कि UPSC, IAS, IPS जैसी उच्च पद की परीक्षाओं को केवल हिंदी जो कि राष्ट्रभाषा है और english जो कि इंटरनेशनल भाषा और कार्य भी ज्यादातर इसमें ही होता है इसलिए इन्हीं 2 भाषाओं में परीक्षा करवाएं न कि रीजनल भाषा में । जिससे भविष्य के भारत को देश भक्त पदाधिकारी मिले न कि देशद्रोही और सरकार को झुकाने वाले । आखिर इतने ऊँचे पद पर जाने वाले अधिकारियों को कम से कम हिंदी और अंग्रेजी का ज्ञान तो होना ही चाहिए क्यों कि भविष्य में उर्दू में किसी भी आफ़िस में काम नहीं होगा फिर उर्दू की जरूरत क्या है ? ये अधिकारी किसी मदरसे में तो पढ़ाने नहीं जाएंगे । मोदी जी कृपया सोचिये और समय रहते उर्दू भाषा को UPSC exam से बाहर कीजिये और हिंदी भाषा को बढ़ावा दीजिये ।
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