श्री यंत्र Shri Yantra : वेद और पुराणों में ब्रह्मांड का दिव्य मानचित्र






श्री यंत्र : वेद, उपनिषद और पुराणों के अनुसार ब्रह्मांड का दिव्य मानचित्र

श्री यंत्र (Sri Yantra): वेद, उपनिषद और पुराणों के अनुसार ब्रह्मांड का दिव्य मानचित्र

Keyphrase: Sri Yantra

प्रस्तावना : Sri Yantra का वास्तविक अर्थ

सनातन भारत के आध्यात्मिक ज्ञान में Sri Yantra का स्थान अत्यंत उच्च माना गया है। यह केवल एक ज्यामितीय रचना नहीं, बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड की चेतना, सृष्टि, पालन और संहार का दृश्य प्रतीक है।
वेदों और पुराणों के अनुसार, श्री यंत्र को महालक्ष्मी और त्रिपुरसुंदरी का साक्षात् स्वरूप कहा गया है।

वेदों में Sri Yantra का दार्शनिक आधार

ऋग्वेद में कहा गया है कि “सर्वं शब्दमयं जगत्” — सम्पूर्ण सृष्टि ध्वनि से उत्पन्न हुई है। यह ध्वनि जब आकृति लेती है, तो वह यंत्र के रूप में प्रकट होती है। Sri Yantra उसी ध्वनि और आकृति का अद्वितीय संगम है।

अथर्ववेद के ‘श्री सूक्त’ में उल्लिखित बीजाक्षर — “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः” — Sri Yantra की मूल ऊर्जा का प्रतीक हैं। यजुर्वेद में “ॐ इत्येतदक्षरं ब्रह्म” कहा गया है — यही ओंकारीय कम्पन श्री यंत्र के रूप में आकार लेता है।

उपनिषदों में Sri Yantra का आध्यात्मिक रहस्य

उपनिषदों में ब्रह्म और माया, शिव और शक्ति, आत्मा और परमात्मा — इन द्वैतों का समन्वय Sri Yantra के केंद्र में साकार होता है। तैत्तिरीय उपनिषद के अनुसार पंचमहाभूतों की उत्पत्ति आत्मा से होती है, और श्री यंत्र की संरचना भी इन्हीं तत्वों का ज्यामितीय रूप है।

श्रीविद्या तंत्र के अनुसार श्री यंत्र नौ आवरणों (नवावरण) से बना है जो साधक की चेतना की यात्रा का प्रतीक हैं — मूलाधार से सहस्रार तक।

पुराणों में Sri Yantra का वर्णन

देवी भागवत पुराण के अनुसार — “श्रीचक्रं तस्य रूपं यत्र सर्वदेवताः प्रतिष्ठिताः।” अर्थात् श्रीचक्र में सभी देवताओं का निवास है। देवी त्रिपुरसुंदरी का निवास Sri Yantra के केंद्र बिंदु पर बताया गया है।

ललिता सहस्रनाम स्तोत्र में कहा गया है — “श्रीचक्रनगर संस्थिता श्रीमात् श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी।” यह इंगित करता है कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड एक ऊर्जा क्षेत्र है, और उसका केंद्र बिंदु श्री यंत्र है।

Sri Yantra की रचना और दार्शनिक अर्थ

Sri Yantra नौ त्रिकोणों से निर्मित है — चार ऊपर की ओर (शिव) और पाँच नीचे की ओर (शक्ति)। इनका संगम बिंदु ही सृष्टि का स्रोत है। इन नौ त्रिकोणों से 43 सूक्ष्म त्रिकोण बनते हैं जो देवी के 43 शक्तिपीठों का प्रतीक हैं।

बाहरी भूपुर चार द्वारों से घिरा होता है — धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। साधक जब केंद्र की ओर बढ़ता है, तो वह अहंकार, इच्छाओं और इंद्रियों को नियंत्रित कर ब्रह्म चेतना तक पहुँचता है।

वैज्ञानिक दृष्टि से Sri Yantra

आधुनिक विज्ञान भी स्वीकार करता है कि Sri Yantra एक सटीक Sacred Geometry है। इसकी संरचना में Golden Ratio (1.618) और Fibonacci Pattern का अनुपात पाया गया है।

मेडिटेशन के दौरान श्री यंत्र पर ध्यान केंद्रित करने से मस्तिष्क तरंगों में संतुलन आता है। इसलिए इसे “Geometry of Consciousness” कहा जाता है।

Sri Yantra की उपासना विधि

श्री यंत्र की स्थापना शुभ मुहूर्त में पूर्व दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए। इसे लाल या पीले वस्त्र पर रखकर चंदन, पुष्प, अक्षत और दीपक से पूजन करें।

मुख्य मंत्र — “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नमः” या “ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुरसुन्दर्यै नमः” का जप करें। इससे आत्मिक शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।

Sri Yantra का आध्यात्मिक फल

Sri Yantra की साधना व्यक्ति को आत्म-उन्नति की ओर ले जाती है। यह सिखाती है कि सच्ची समृद्धि बाहरी वस्तुओं में नहीं, बल्कि भीतर के संतुलन में है।

श्री यंत्र के ध्यान से मन निर्मल होता है, और साधक देवी चेतना से एकाकार होता है। देवी भागवत पुराण के अनुसार — “श्री यंत्रं ब्रह्मरूपं च, चिदानन्दं निरामयम्।”

निष्कर्ष : Sri Yantra ब्रह्मांड का जीवित मानचित्र

Sri Yantra वेदों की ब्रह्मविद्या, उपनिषदों की अद्वैत चेतना और पुराणों की देवी उपासना — तीनों का संगम है। यह केवल पूजा का साधन नहीं, बल्कि ब्रह्मांड की ऊर्जा का जीवित मानचित्र है।

“यः पश्येत् श्रीचक्रं साक्षात् पश्येत् ब्रह्माण्डं समग्रतः।” — जो श्रीचक्र को देखता है, वह सम्पूर्ण ब्रह्मांड को देख लेता है।