29 October 2025
गोपाष्टमी हिन्दू संस्कृति का एक अत्यंत पवित्र और प्रेरणादायक पर्व है। यह दिन गौमाता की आराधना, सेवा और संरक्षण के संकल्प का प्रतीक है। इसका मूल भाव “गौ, गंगा और गोविन्द” की एकता में निहित है।
तिथि और पौराणिक प्रसंग:
गोपाष्टमी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। पुराणों के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने पहली बार गो-पालन और गो-सेवा का कार्य प्रारंभ किया था। इसी कारण यह दिन “गोपालक दिवस” भी कहलाता है। इस दिन श्रीकृष्ण ने गोचारण (गौओं को चराने) का कार्य आरंभ कर धर्म के इस श्रेष्ठ कर्म का आदर्श प्रस्तुत किया।
गौमाता का वैदिक महत्त्व:
ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद आदि सभी वेदों में गौ को “अघ्न्या” कहा गया है — अर्थात् जिसे कभी मारा न जाए। यजुर्वेद (12/73) में कहा गया है — “गावो विश्वस्य मातरः” — गौ समस्त विश्व की माता हैं। वेदों में गौ को समृद्धि, आरोग्य और शांति की प्रतीक बताया गया है।
गौ की दिव्यता और पूज्यता:
गौ केवल एक पशु नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति में ‘माता’ के रूप में पूजित है। कहा गया है — “गावः सर्व देवमयः” अर्थात् गौ में सभी देवताओं का वास है। विष्णु, रुद्र, ब्रह्मा, इंद्र, अग्नि, वरुण, सूर्य, चंद्र आदि सभी देवताओं की शक्तियाँ गौ के अंगों में निवास करती हैं।
श्रीकृष्ण और गोपाष्टमी:
गोपाष्टमी का सर्वाधिक महत्त्व ब्रजभूमि में है। इसी दिन नंदबाबा ने श्रीकृष्ण को कहा था — “बेटा, अब तू बड़ा हो गया है, आज से तू बछड़ों की नहीं, गायों की सेवा करेगा।” तब से श्रीकृष्ण गोचारण करने लगे और उन्हें ‘गोविंद’ कहा जाने लगा। इसीलिए यह दिन कृष्ण की गोपाल लीला का आरंभ दिवस भी माना जाता है।
श्रीमद्भागवत पुराण में गौसेवा:
श्रीमद्भागवत महापुराण में भगवान श्रीकृष्ण को “गोपालनाम् पतिः” कहा गया है। उन्होंने स्वयं गौओं की रक्षा की और गौमाता को दिव्य स्थान प्रदान किया। उन्होंने कहा — “गावो मे मातरः सर्वाः” — गौ मेरी माता हैं। अतः जो गौ की सेवा करता है, वह स्वयं श्रीकृष्ण की सेवा करता है।
महर्षि वशिष्ठ और गौ की महिमा:
महर्षि वशिष्ठ ने भी गौ को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष — इन चारों पुरुषार्थों की मूल बताया है। उन्होंने कहा कि जहाँ गौ होंगी, वहाँ धन, धर्म और सुख की वृद्धि होती है। गौमाता को ‘कामधेनु’ कहा गया है — जो इच्छानुसार सब कुछ प्रदान करती हैं।
संत श्री आसारामजी बापू कहते हैं कि “गौ, गंगा और गीता अमूल्य निधियां है ।” तीनों ही भारत की आत्मा हैं। इनकी रक्षा करो, यही सच्चा गोपाष्टमी पर्व है। गौसेवा से आत्मा शुद्ध होती है, और आत्मशुद्धि से भगवान की प्राप्ति होती है। बापूजी यह प्रेरणा देते हैं — “हम सब मिलकर संकल्प करें कि न केवल अपनी आस्था से, बल्कि कर्म से भी गौ की रक्षा करेंगे। किसी भी रूप में गौहत्या, गौअपमान या गौउत्पीड़न को कभी स्वीकार नहीं करेंगे।”
✴️धार्मिक महत्व:
गोपाष्टमी के दिन भक्तजन गौशाला में जाकर गौमाता की पूजा करते हैं। उन्हें स्नान कराकर पुष्प, हल्दी, कुंकुम, वस्त्र और मिष्ठान अर्पित किया जाता है। इस दिन गौ के चरणों का स्पर्श करने, उनकी परिक्रमा करने और आशीर्वाद प्राप्त करने का अत्यंत पुण्य बताया गया है।
✴️सांस्कृतिक महत्त्व:
भारतीय संस्कृति में गौ को परिवार का सदस्य माना गया है। वह केवल दूध देने वाली नहीं, बल्कि हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है। कृषि, औषधि, यज्ञ, संस्कार — हर क्षेत्र में गौ का योगदान रहा है। यही कारण है कि गोपाष्टमी केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक चेतना का भी पर्व है।
✴️आध्यात्मिक अर्थ:
गौमाता ‘धैर्य’, ‘करुणा’ और ‘त्याग’ की प्रतिमूर्ति हैं। उनका पूजन केवल अनुष्ठान नहीं, बल्कि मनुष्य के भीतर दया और सेवा की भावना जागृत करने का माध्यम है। गोपाष्टमी का संदेश है — “सेवा में ही ईश्वर की प्राप्ति है।”
✴️गौ और भारतीय अर्थव्यवस्था:
प्राचीन भारत की अर्थव्यवस्था गौ आधारित थी। गौ से प्राप्त दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर — ये पाँच पदार्थ (पंचगव्य) आयुर्वेद में अत्यंत उपयोगी माने गए हैं। गोबर से खेतों की उर्वरता और गोमूत्र से औषधीय उपचार — आज भी वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हैं।
✴️गोदान का महत्व:
शास्त्रों में गोदान को सर्वोच्च दान बताया गया है। “गदानानां गोडानं श्रेष्ठम्” — सभी दानों में गोदान श्रेष्ठ है। ब्रह्मपुराण, पद्मपुराण, स्कन्दपुराण आदि में कहा गया है कि जो व्यक्ति गोदान करता है, उसे स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है और वह अनंत पापों से मुक्त होता है।
✴️आधुनिक समय में प्रासंगिकता:
आज जब पर्यावरण, स्वास्थ्य और कृषि संकट से मानवता जूझ रही है, तब गौमाता की सेवा और संरक्षण का भाव अत्यंत आवश्यक हो गया है। गौपालन केवल धार्मिक कार्य नहीं, बल्कि ‘पर्यावरण संरक्षण’, ‘जैविक कृषि’ और ‘आर्थिक आत्मनिर्भरता’ का आधार है।
✴️ब्रज और भारतभर में उत्सव:
मथुरा, वृंदावन, नंदगाँव, गोवर्धन, बरसाना आदि स्थलों पर गोपाष्टमी बड़े भव्य रूप से मनाई जाती है। भक्तजन गायों को सजा-धजाकर शोभायात्रा निकालते हैं। मंदिरों में श्रीकृष्ण को गोपाल रूप में सजाया जाता है और “जय गोमाता, जय गोविंद” के जयघोष गूँजते हैं।
निष्कर्ष:
गोपाष्टमी का सच्चा संदेश यही है कि हम गौमाता की सेवा को अपने जीवन का धर्म बनाएं। गौ हमारी संस्कृति की आत्मा है, हमारी माता है। उसकी रक्षा और सेवा करना केवल पुण्य नहीं, बल्कि भारत की आत्मा की रक्षा करना है।
“गौ, गंगा और गोविंद — इन तीनों की सेवा ही सच्ची सनातन साधना है।”
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