गौतम ऋषि आश्रम, नासिक — त्र्यंबकेश्वर और गोदावरी








गौतम ऋषि आश्रम, नासिक — जहाँ माँ गंगा ने गोदावरी रूप में अवतार लिया | Azaad Bharat

दिनांक: 28 अक्टूबर 2025

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गौतम ऋषि आश्रम, नासिक : वेदों और पुराणों में वर्णित वह तपोभूमि जहाँ माँ गंगा ने गोदावरी रूप में अवतार लिया

भारत की दिव्य भूमि ऋषियों, तपस्वियों और योगियों की साधना से पवित्र बनी है। इन्हीं ऋषि-श्रेष्ठों में से एक हैं महर्षि गौतम, जिनका आश्रम महाराष्ट्र के नासिक जिले के समीप त्र्यंबकेश्वर पर्वत पर स्थित है। यही वह स्थान है जहाँ गौतम ऋषि की कठोर तपस्या और भगवान शिव की कृपा से माँ गंगा ने गोदावरी नदी के रूप में पृथ्वी पर अवतार लिया। यह आश्रम आज त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में भी प्रसिद्ध है।

वेदों और पुराणों में महर्षि गौतम का उल्लेख

महर्षि गौतम भारतीय ऋषि परंपरा के आद्य आचार्य हैं। वे ‘गौतम गोत्र’ के प्रवर्तक तथा वेदांत, न्याय और धर्मशास्त्र के गहन ज्ञाता थे। चारों वेदों — ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद — में उनका नाम श्रद्धा से लिया गया है।

ऋग्वेद (मंडल 1, सूक्त 179) में उन्हें यज्ञ और ब्रह्मज्ञान के आचार्य के रूप में वर्णित किया गया है। अथर्ववेद में वे धर्म और सदाचार के उपदेशक के रूप में प्रकट होते हैं। उनके रचित गौतम धर्मसूत्र में समाज, विवाह, गोसेवा, दान, शिक्षा और स्त्री-सम्मान से जुड़े नियम आज भी प्रेरणास्रोत हैं।

गौतम ऋषि और अहल्या की कथा

गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या अत्यंत तेजस्विनी और पतिव्रता थीं। ब्रह्मा ने स्वयं उनका विवाह गौतम से किया था। रामायण (बालकाण्ड) के अनुसार, एक बार देवराज इंद्र ने गौतम ऋषि का रूप धारण करके अहल्या की परीक्षा ली। जब यह ज्ञात हुआ, तो गौतम ने इंद्र को शाप दिया और अहल्या को तप द्वारा शुद्ध होने का आदेश दिया।

बाद में जब भगवान श्रीराम उनके आश्रम में आए, तो उनके चरणस्पर्श से अहल्या शिला से पुनः मानव रूप में प्रकट हुईं। यह प्रसंग पतिव्रता की महिमा और धर्मनिष्ठा का प्रतीक है।

त्र्यंबकेश्वर की तपोभूमि और इंद्र की ईर्ष्या

त्र्यंबकेश्वर पर्वत पर गौतम ऋषि ने वर्षों तक कठोर तप किया। उनके आश्रम में यज्ञ, गोसेवा और अन्नदान की परंपरा प्रचलित थी। पद्म पुराण, स्कंद पुराण और ब्रह्म पुराण में उल्लेख है कि प्रतिदिन सैकड़ों अतिथि उनके आश्रम में भोजन करते थे। उनकी करुणा और प्रसिद्धि से इंद्र ईर्ष्यालु हो गए।

इंद्र ने माया से एक गाय को यज्ञ क्षेत्र में भेजा और मरवा दिया, जिससे झूठा आरोप लगा कि गौतम ऋषि ने गौ-हत्या की है। कलंक मिटाने हेतु ऋषि ने भगवान शिव की घोर आराधना आरंभ की।

माँ गंगा का गोदावरी रूप में अवतरण

स्कंद पुराण के ब्रह्मखंड में वर्णन है कि गौतम ऋषि ने हजार वर्षों तक तप किया। भगवान शिव उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए और बोले कि माँ गंगा उनके आह्वान पर पृथ्वी पर अवतरित होंगी। गंगा ने कहा कि वे केवल शिव की जटाओं से ही प्रवाहित होंगी।

तब भगवान शिव ने त्र्यंबकेश्वर पर्वत पर अपनी जटाएँ खोलीं और उनमें से गंगा का प्रवाह आरंभ हुआ। यही प्रवाह गोदावरी नदी कहलाया — “गौ” (गाय) और “दावरी” (रक्षक) से मिलकर बना शब्द, जिसका अर्थ है “गाय की रक्षा करने वाली नदी।” इस प्रकार गंगा ने दक्षिण भारत को पवित्र किया।

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग और गौतम आश्रम

इसी तपोभूमि पर भगवान शिव ने ज्योतिर्लिंग रूप में अवतार लेकर कहा — “हे गौतम, मैं यहाँ सदा त्र्यंबक रूप में निवास करूँगा।” यह स्थान आज बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यहाँ गौतम तीर्थ, गौतम कुंड, अहल्या गुफा और कुशावर्त तीर्थ स्थित हैं, जहाँ से गोदावरी नदी का उद्गम होता है।

पद्म पुराण में कहा गया है — “गोदावरी स्नानात् सर्वपापं विनश्यति।” अर्थात गोदावरी में स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

नासिक कुंभ और दक्षिण गंगा का महत्व

हर बारह वर्ष में नासिक में कुंभ मेला आयोजित होता है। यह चार प्रमुख कुंभ स्थलों — हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक — में से एक है। लाखों साधु-संत यहाँ गोदावरी में स्नान करते हैं। इसलिए गोदावरी को “दक्षिण गंगोत्री” भी कहा गया है।

वर्तमान में गौतम ऋषि आश्रम

आज भी यह आश्रम नासिक के त्र्यंबकेश्वर क्षेत्र में शांत और पवित्र वातावरण प्रदान करता है। यहाँ गौतम कुंड, प्राचीन शिवालय, गौशाला और अहल्या गुफा स्थित हैं। यहाँ की मिट्टी और जल को आत्मशुद्धि के लिए अद्भुत माना जाता है। प्रतिवर्ष हजारों साधक ध्यान, जप और तप के लिए यहाँ आते हैं।

आध्यात्मिक संदेश

  • सच्ची भक्ति और सत्यनिष्ठा से असंभव भी संभव हो सकता है।
  • ईश्वर-भक्ति और तपस्या से झूठे कलंक भी मिट सकते हैं।
  • गो-सेवा, दान और यज्ञ मानवता की सर्वोच्च सेवा हैं।
  • ईश्वर का आह्वान निष्काम भाव और करुणा से ही सफल होता है।

माँ गंगा ने गौतम ऋषि की भक्ति से प्रसन्न होकर जब गोदावरी रूप में अवतार लिया, तब से यह भूमि संपूर्ण भारत की आस्था का केंद्र बन गई।

निष्कर्ष

गौतम ऋषि आश्रम केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि भारतीय धर्म, वेद परंपरा और आध्यात्मिकता का जीवंत प्रतीक है। यहाँ वेदों की गूंज, पुराणों की कथा और गोदावरी का पवित्र प्रवाह मिलकर दिव्य चेतना का संचार करते हैं। जहाँ गौतम ऋषि ने तप किया, वहीं आज भी साधक आत्मिक शांति और मोक्ष का अनुभव करते हैं।

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