छठ पूजा: सूर्य उपासना की अद्भुत वैदिक परंपरा

25 October 2025

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छठ पूजा: सूर्य उपासना की अद्भुत वैदिक परंपरा

भारत की सांस्कृतिक धरोहर में यदि कोई ऐसा पर्व है जो शुद्धता, आत्मसंयम, श्रद्धा और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का अद्भुत संगम है, तो वह है छठ पूजा। यह पर्व न केवल सूर्य देव की आराधना का उत्सव है, बल्कि यह मानव और प्रकृति के बीच गहरे आध्यात्मिक संबंध की अभिव्यक्ति भी है।

☀️ छठ पूजा का अर्थ और नाम का महत्व

“छठ” शब्द संस्कृत के “षष्ठी” से बना है, जिसका अर्थ है – छठा दिन। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है, इसीलिए इसे “छठ” कहा गया।

छठ पूजा में उपासना के केंद्र में हैं सूर्य देव – जो जीवन, ऊर्जा और चेतना के प्रतीक हैं। साथ ही सूर्य की बहन छठी मइया (उषा या षष्ठी देवी) की भी पूजा की जाती है, जो संतान की रक्षा और स्वास्थ्य प्रदान करने वाली मानी जाती हैं।

छठ पूजा का ऐतिहासिक और पौराणिक मूल

छठ पूजा की परंपरा अत्यंत प्राचीन है — इसके उल्लेख ऋग्वेद, महाभारत और रामायण जैसे ग्रंथों में मिलते हैं।
वैदिक काल का उल्लेख:
वैदिक युग में सूर्य उपासना का विशेष स्थान था। ‘गायत्री मंत्र’ स्वयं सूर्य देव की आराधना का सबसे प्रसिद्ध मंत्र है। छठ में किए जाने वाले अर्घ्यदान की विधि भी वैदिक कालीन यज्ञ परंपराओं से मेल खाती है।
महाभारत से संबंध:
कथा है कि कुंती पुत्र कर्ण, जो सूर्य देव के पुत्र थे, प्रतिदिन नदी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। वे महान योद्धा और दानी पुरुष के रूप में प्रसिद्ध हुए। छठ का अनुष्ठान कर्ण की इसी सूर्य भक्ति का स्मरण भी माना जाता है।
रामायण से संबंध:
भगवान राम और माता सीता ने लंका विजय के पश्चात अयोध्या लौटने पर कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य देव की पूजा की थी, जिससे राज्य में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहे। यह भी छठ पर्व की उत्पत्ति का एक पौराणिक संदर्भ माना जाता है।

छठ पूजा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह आत्मशुद्धि और प्रकृति से एकत्व की साधना है।
सूर्य उपासना का आध्यात्मिक पक्ष:
सूर्य देव केवल भौतिक प्रकाश नहीं, वे आध्यात्मिक प्रकाश के भी प्रतीक हैं। उनका पूजन आत्मा में छिपी चेतना को जाग्रत करने का प्रतीकात्मक प्रयास है।
उषा और संध्या की पूजा:
छठ पूजा में सुबह उगते सूर्य और शाम के डूबते सूर्य दोनों को अर्घ्य दिया जाता है। यह जीवन के दोनों पहलुओं – आरंभ और अंत – का सम्मान है।
संयम और शुद्धता की साधना:
व्रती (उपासक) इस पर्व में चार दिनों तक कठोर नियम का पालन करते हैं – बिना नमक का भोजन, दिनभर उपवास, पवित्रता, और जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देना। यह शारीरिक और मानसिक शुद्धि का अनोखा मार्ग है।

छठ पूजा की चार दिवसीय विधि

छठ पूजा का पूरा उत्सव चार दिनों तक चलता है, जिसमें प्रत्येक दिन का अपना विशिष्ट महत्व होता है।

नहाय-खाय (पहला दिन)

व्रती स्नान कर घर की शुद्धि करते हैं। शुद्ध भोजन बनाकर ग्रहण करते हैं। इसमें लहसुन-प्याज वर्जित होता है। यह शरीर और मन की शुद्धि का प्रारंभ है।

✴️खरना (दूसरा दिन)

इस दिन पूरा दिन उपवास रहता है और शाम को सूर्यास्त के बाद व्रती गुड़ की खीर, रोटी और केले का प्रसाद बनाकर ग्रहण करते हैं। फिर रात्रि से निर्जला व्रत शुरू होता है।

संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन)

संध्या के समय महिलाएं नदी, तालाब या घाट पर खड़े होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं। इस समय गीत और लोक भजन गूंजते हैं, जैसे —
“कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए…”
यह दृश्य छठ की आध्यात्मिक सुंदरता का चरम होता है।

उगते सूर्य को अर्घ्य (चौथा दिन)

अंतिम दिन सुबह-सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। यह नवजीवन और नई ऊर्जा का प्रतीक है। इसके बाद व्रती प्रसाद वितरित करते हैं और व्रत का समापन होता है।

छठ पूजा के वैज्ञानिक पहलू

छठ पूजा की परंपरा में अनेक वैज्ञानिक कारण भी छिपे हैं —
सूर्य किरणों का स्वास्थ्य लाभ:
सुबह और शाम की सूर्य किरणों में अल्ट्रावायलेट विकिरण कम होता है, जिससे यह शरीर के लिए सुरक्षित और लाभकारी होता है। इससे विटामिन D प्राप्त होता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
जल में खड़े होने का लाभ:
जल में खड़े रहकर अर्घ्य देने से रक्त संचार संतुलित होता है और शरीर से विषैले तत्व बाहर निकलते हैं। यह एक प्रकार का हाइड्रोथैरेपी है।
उपवास से शरीर की शुद्धि:
व्रत रखने से पाचन तंत्र को विश्राम मिलता है और शरीर में नयी ऊर्जा का संचार होता है।

छठ के लोकगीत और संस्कृति

छठ पूजा बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, नेपाल के तराई क्षेत्रों और अब देशभर में मनाई जाती है। इस पर्व के दौरान लोकगीतों की गूंज घाटों पर वातावरण को पवित्र बना देती है।

कुछ प्रसिद्ध लोकगीत हैं:
• “केलवा जे फरेला घवद से…”
• “छठी मइया के परबवा, बड़ा पवित्तर होला…”

ये गीत मातृत्व, भक्ति और लोक-संस्कृति की आत्मा हैं।

छठ पूजा में प्रसाद का महत्व

प्रसाद में थेका, ठेकुआ, सुथनी, केला, गन्ना, नारियल, और नया धान का चावल शामिल होता है। ये सब प्राकृतिक और सात्त्विक तत्व हैं — जो पंचतत्व की प्रतीकात्मक भेंट हैं।

संदेश और प्रेरणा

छठ पूजा हमें सिखाती है कि जीवन में संयम, श्रद्धा और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का भाव कितना आवश्यक है। यह पर्व केवल एक रीति नहीं, बल्कि यह मनुष्य और ब्रह्मांड के बीच एक जीवंत संवाद है।

निष्कर्ष

छठ पूजा भारतीय संस्कृति की उस अद्भुत गाथा का प्रतीक है जहाँ विज्ञान, अध्यात्म और लोकजीवन एक हो जाते हैं।
यह पर्व हमें याद दिलाता है कि सच्ची पूजा बाह्य आडंबर में नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और प्रकृति के प्रति सम्मान में निहित है।
जब अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, तो यह केवल सूर्य को नहीं, बल्कि जीवन के हर उतार-चढ़ाव को नमस्कार करने की विनम्रता का प्रतीक होता है।

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