दीपावली 2025: वैदिक परंपरा और आध्यात्मिक प्रकाश | Vedic Diwali significance
तिथि: 20 एवं 21 अक्टूबर 2025
स्रोत: www.azaadbharat.org
दीपावली का महत्व और Vedic Diwali significance
दीपावली केवल एक पर्व नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा है — जो हमें सिखाती है कि बाहरी प्रकाश तभी सार्थक है जब अंतःकरण का अंधकार मिटे।
वेदों में “ज्योति” को परमात्मा का प्रतीक माना गया है।
अथर्ववेद (19.47.1) में कहा गया है —
“दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योति जनार्दनः।”
अर्थात् दीप स्वयं ब्रह्मस्वरूप, जनार्दन अर्थात् भगवान विष्णु का प्रतीक है।
दीपावली का पर्व “तमसो मा ज्योतिर्गमय” की भावना को मूर्त रूप देता है — अंधकार, अज्ञान और अधर्म से मुक्त होकर सत्य, धर्म और आत्मप्रकाश की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है।
ऐतिहासिक एवं पौराणिक प्रसंग
1. भगवान श्रीराम की अयोध्या वापसी
रामायण में वर्णन है कि रावण वध के पश्चात जब प्रभु श्रीराम माता सीता और लक्ष्मण सहित अयोध्या लौटे, तब नगरवासियों ने स्वागत में घी के दीप जलाए। वह रात अमावस्या की थी — दीपों ने सम्पूर्ण अंधकार को मिटा दिया। यही “दीपावली” की प्रथम प्रेरणा बनी।
2. महालक्ष्मी का प्राकट्य
पद्मपुराण के अनुसार, समुद्र मंथन के समय इसी दिन श्री महालक्ष्मी जी प्रकट हुईं। इसीलिए दीपावली को लक्ष्मी आगमन तिथि कहा जाता है। दीपों से सुसज्जित घर लक्ष्मीजी के लिए आमंत्रण का प्रतीक माना गया है।
3. नरकासुर वध
भागवत पुराण में वर्णित है कि भगवान श्रीकृष्ण ने दीपावली से एक दिन पूर्व नरकासुर नामक दैत्य का वध कर सोलह हजार कन्याओं को मुक्त किया। इसलिए इस दिन को “नरक चतुर्दशी” कहा जाता है।
4. राजा बलि की कथा
वामनावतार में भगवान विष्णु ने असुरराज बलि को पाताल भेजा और उन्हें एक दिन के लिए पृथ्वी पर आने का वरदान दिया। यह दिन गोवर्धन पूजा और बलिप्रतिपदा के रूप में मनाया जाता है।
5. महर्षि दयानंद सरस्वती का निर्वाण
दीपावली के दिन ही आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती जी का ब्रह्मलीन होना हुआ — जिन्होंने ज्ञान और सुधार की ज्योति जगाई।
दीपदान का वैदिक और आध्यात्मिक रहस्य | Vedic Diwali significance
दीप केवल रोशनी नहीं, बल्कि साधना का प्रतीक है। स्कंदपुराण में कहा गया है —
“दीपदानं सर्वदोषनाशनं भवेत्।”
अर्थात दीपदान से सभी दोष नष्ट होते हैं और जीवन में शुभता आती है।
दीप में जलने वाला घी सत्त्वगुण को, बत्ती साधना को और लौ आत्मा की ज्योति को दर्शाती है। जब हम दीप जलाते हैं, तब यह हमारे भीतर की तामसिक वृत्तियों — क्रोध, लोभ, अहंकार — को जलाकर शुद्धता और करुणा को जाग्रत करता है।
धन और व्यापार में शुभता का संदेश
दीपावली का एक आयाम समृद्धि और धर्मसंगत धन से भी जुड़ा है। लक्ष्मी तंत्र के अनुसार, धन तभी स्थिर रहता है जब वह सत्य, श्रम और सेवा के मार्ग से अर्जित किया गया हो।
इस दिन व्यापारी वर्ग नया लेखा वर्ष प्रारम्भ करता है, जिसे चोपड़ा पूजन कहा जाता है। इस परंपरा का उद्देश्य केवल आर्थिक लाभ नहीं, बल्कि कार्य में धर्म, पारदर्शिता और सद्भावना स्थापित करना है।
वेदों के अनुरूप हरित दीपावली | Vedic Diwali significance
वेदों ने सदा प्रकृति को मातृस्वरूप माना है —
“माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः।” — अथर्ववेद 12.1.12
अतः हमें ऐसी दीपावली मनानी चाहिए जो प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करे। घी या तिल के तेल के दीपक जलाएँ, पटाखों से दूर रहें, गोसेवा करें, और पौधारोपण द्वारा देवी पृथ्वी को धन्यवाद दें। यह सात्त्विक दीपावली ही भविष्य के लिए वास्तविक समृद्धि का आधार बनेगी।
आध्यात्मिक साधना और भावनात्मक शुद्धि
दीपावली आत्मसाधना का उत्सव है — जब साधक अपने भीतर की नकारात्मकता का अंत कर आत्मचिंतन करता है।
- तुलसी के नीचे दीपक जलाना — देवत्व और वैराग्य की वृद्धि करता है।
- गोमय से बने दीप जलाना — पर्यावरण और आध्यात्मिक ऊर्जा दोनों को शुद्ध करता है।
- कपूर जलाना — वातावरण में सुगंध के साथ सात्त्विक ऊर्जा फैलाता है।
- “श्रीसूक्त” या “लक्ष्मी अष्टक स्तोत्र” का पाठ — मन, वाणी और कर्म में संतुलन लाता है।
दीपावली केवल लक्ष्मी प्राप्ति का पर्व नहीं, बल्कि आत्मलक्ष्मी — अर्थात् आत्मसंतोष, सद्बुद्धि और शांत चित्त — की प्राप्ति का भी अवसर है।
सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय एकता
दीपावली भारत की सांस्कृतिक एकात्मता का उत्सव है। इस दिन जाति, भाषा या क्षेत्र से परे, सभी मिलकर एक ही भावना से उत्सव मनाते हैं — यह “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना का सजीव उदाहरण है।
लोग मिठाइयाँ बाँटते हैं, वंचितों की सहायता करते हैं, और एक-दूसरे के जीवन में प्रसन्नता बाँटते हैं। यही वास्तविक “प्रकाश” है — सेवा, दया और साझा आनंद का प्रकाश।
निष्कर्ष
दीपावली का सार यही है कि जब हम भीतर प्रकाश उत्पन्न करते हैं, तभी बाहर के दीप अर्थपूर्ण होते हैं।
वेद, उपनिषद और संतों ने सदा यही कहा —
“अन्तः ज्योतिर्मयं विश्वम्।” — समस्त जगत ईश्वर के प्रकाश से प्रकाशित है।
इस दीपावली, अपने भीतर के दीप को प्रज्वलित करें — अज्ञान से ज्ञान की ओर, दुःख से आनन्द की ओर, और मृत्यु से अमृत की ओर चलें। यही दीपावली का सच्चा आध्यात्मिक संदेश है।