shaktipeeth — 51 शक्तिपीठ: भाग 3
भाग 3 – शक्तिपीठ 21 से 30 का पौराणिक और वैज्ञानिक इतिहास
shaktipeeth: भूमिका
जैसा कि पहले दो भागों में देखा गया, जब सती ने यज्ञ वेदी में आत्मदाह किया, तो उसके अंग विभिन्न स्थलों पर गिरे। शिव के तांडव और विष्णु के चक्रकर्म से उत्पन्न ये शक्तिपीठ सिर्फ धार्मिक स्थल नहीं बल्कि ब्रह्मांडीय ऊर्जा केंद्र हैं। ऋग्वेद और देवी भागवत पुराण में इन शक्तिपीठों को ऊर्जा और चेतना के केंद्र के रूप में वर्णित किया गया है।
shaktipeeth 21 से 30
नीचे भाग 3 में वर्णित शक्तिपीठ (21–30) दिए जा रहे हैं — शास्त्रीय उल्लेख, गिरा अंग, विशेषता और वैज्ञानिक/भौगोलिक पहलुओं के साथ।
1. करवपुर शक्तिपीठ – महाराष्ट्र
- गिरा अंग : बायाँ कलाई
- शास्त्रीय उल्लेख : तंत्रचूड़ामणि, स्कंदपुराण
- विशेषता : कलाई का गिरना कार्य क्षमता और साधना में सफलता का प्रतीक।
- वैज्ञानिक पहलू : पश्चिम घाट की पर्वतीय ऊर्जा और चुंबकीय क्षेत्र ध्यान साधना को बल प्रदान करता है।
2. श्रीनाक्षी शक्तिपीठ – करूर, तमिलनाडु
- गिरा अंग : गाल
- शास्त्रीय उल्लेख : देवी भागवत, कालिका पुराण
- विशेषता : गाल का गिरना मातृशक्ति और करुणा का प्रतीक है।
- वैज्ञानिक तथ्य : नहर और जल स्रोतों के समीप स्थित यह क्षेत्र ऊर्जा संतुलन के लिए उपयुक्त है।
3. विभाष शक्तिपीठ – तामलक, पश्चिम बंगाल
- गिरा अंग : बायाँ टखना
- शास्त्रीय उल्लेख : स्कंदपुराण, देवी भागवत
- विशेषता : टखने का गिरना स्थिरता और मानसिक संतुलन का प्रतीक।
- वैज्ञानिक पहलू : गंगा नदी की उप-शाखाओं से मिलने वाली ऊर्जा ध्यान साधना को तीव्र बनाती है।
4. हर्षत माता मंदिर – आभानेरी, राजस्थान
- गिरा अंग : उंगली
- शास्त्रीय उल्लेख : देवी भागवत, तंत्रग्रंथ
- विशेषता : उंगली गिरने से कर्म और जीवन कौशल का प्रतीक।
- वैज्ञानिक तथ्य : यह क्षेत्र लाल मिट्टी और खनिज ऊर्जा से युक्त है।
5. महाकाली मंदिर – उज्जैन, मध्य प्रदेश
- गिरा अंग : ऊपरी ओंठ
- शास्त्रीय उल्लेख : कालिका पुराण, स्कंदपुराण
- विशेषता : ऊपरी ओंठ का गिरना वाणी शक्ति और शक्ति के संचार का प्रतीक।
- वैज्ञानिक पहलू : उज्जैन के भूगर्भीय क्षेत्र साधना को प्रबल करते हैं।
6. दक्षिणा कालीका मंदिर – कोलकाता, पश्चिम बंगाल
- गिरा अंग : दाहिना अंगूठा
- शास्त्रीय उल्लेख : तंत्रचूड़ामणि
- विशेषता : अंगूठे का गिरना आत्मविश्वास और शक्ति का प्रतीक।
- वैज्ञानिक तथ्य : गंगा डेल्टा की ऊर्जा और चुंबकीय क्षेत्र साधना के लिए अनुकूल।
7. चिंतपूर्णी मंदिर – ऊना, हिमाचल प्रदेश
- गिरा अंग : पाँव
- शास्त्रीय उल्लेख : स्कंदपुराण
- विशेषता : पाँव गिरना जीवन पथ और स्थिरता का प्रतीक।
- वैज्ञानिक पहलू : हिमालय की पर्वतीय ऊर्जा और झीलों के पास चुंबकीय प्रभाव साधना को बल देता है।
8. रामगिरि शक्तिपीठ – चित्रकूट, उत्तर प्रदेश
- गिरा अंग : दाहिना स्तन
- शास्त्रीय उल्लेख : मार्कंडेय पुराण, देवी भागवत
- विशेषता : स्तन गिरना मातृत्व, करुणा और संरक्षण शक्ति का प्रतीक।
- वैज्ञानिक तथ्य : चित्रकूट की पहाड़ियाँ और तटबंध ऊर्जा संतुलन व मानसिक शांति के लिए प्रसिद्ध हैं।
9. मणिबंध शक्तिपीठ – पुष्कर, राजस्थान
- गिरा अंग : कलाई
- शास्त्रीय उल्लेख : स्कंदपुराण, तंत्रचूड़ामणि
- विशेषता : कलाई का गिरना कार्य शक्ति और साधना में संतुलन का प्रतीक।
- वैज्ञानिक पहलू : पुष्कर झील और आसपास के खनिज क्षेत्र ध्यान साधना को ऊर्जा प्रदान करते हैं।
10. पूर्णागिरि शक्तिपीठ – उत्तराखंड
- गिरा अंग : नाभि
- शास्त्रीय उल्लेख : देवी भागवत, तंत्रग्रंथ
- विशेषता : नाभि गिरना जीवन ऊर्जा, प्राण शक्ति और ध्यान का प्रतीक।
- वैज्ञानिक तथ्य : गढ़वाल हिमालय की ऊर्जा, पर्वतीय और जल स्रोतों का सम्मिलन यहाँ साधना को अधिक प्रबल करता है।
निष्कर्ष
भाग 3 में वर्णित शक्तिपीठ 21–30 यह स्पष्ट करते हैं कि शास्त्रीय पौराणिक कथाएँ, भूगोल और प्राकृतिक ऊर्जा केंद्र आपस में घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं। ये शक्तिपीठ न केवल पूजा के स्थान हैं, बल्कि ध्यान और आध्यात्मिक विकास के लिए ऊर्जा केंद्र भी हैं।
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