Teej significance in Vedas and Puranas
भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला हरतालिका तीज स्त्रियों के लिए विशेष महत्त्व रखता है। यह पर्व माता पार्वती की तपस्या और भगवान शिव के साथ उनके दिव्य संयोग की स्मृति में मनाया जाता है। विवाहित स्त्रियाँ इसे पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्य के लिए करती हैं, जबकि अविवाहित कन्याएँ इच्छित वर की प्राप्ति हेतु इसका पालन करती हैं।
यद्यपि वेदों में “हरतालिका” का प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं है, लेकिन स्त्री-धर्म, पतिव्रता और संयम की जो भावना वेदों में वर्णित है, वही इस पर्व की आत्मा है। Azaad Bharat पर आप धर्म और संस्कृति से जुड़े अन्य संदर्भ भी पढ़ सकते हैं।
Teej significance in Vedas
वेदों में स्त्री को केवल गृहिणी नहीं, बल्कि परिवार और समाज की धुरी माना गया है।
ऋग्वेद (१०/८५/४६):
“सम्राज्ञी श्वशुरे भव सम्राज्ञी श्वश्र्वां भव।
ननांदरी सम्राज्ञी भव सम्राज्ञी अधि देवरि॥”
भावार्थ: विवाहिता स्त्री अपने पतिव्रत से पूरे परिवार में सौहार्द और सौभाग्य स्थापित करती है। यही Teej का मूल संदेश है।
Teej significance in Puranas
स्कंदपुराण में Teej
भाद्रपद शुक्ल तृतीया को माता पार्वती ने भगवान शिव की प्राप्ति हेतु कठोर तप किया। स्कंदपुराण के अनुसार वही व्रत हरतालिका नाम से प्रसिद्ध हुआ।
पद्मपुराण में Teej की कथा
पद्मपुराण में वर्णित है कि हिमवान ने पार्वती का विवाह विष्णु से तय किया, किंतु पार्वती जी ने शिव को पति रूप में पाने हेतु वन में कठोर तप किया। उनकी सहेलियों ने उन्हें वहाँ पहुँचाया, इसलिए इसका नाम पड़ा “हर-आलिका” यानी सखियों द्वारा ले जाई गई पार्वती।
Importance of Teej
(क) विवाहित स्त्रियों के लिए: यह व्रत पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्य देता है।
(ख) अविवाहित कन्याओं के लिए: यह व्रत इच्छित वर की प्राप्ति हेतु किया जाता है।
(ग) आध्यात्मिक दृष्टि: Teej संयम, धैर्य और भक्ति का प्रतीक है।
Conclusion: Teej significance in Vedas and Puranas
हरतालिका तीज केवल धार्मिक व्रत नहीं बल्कि स्त्री-शक्ति और पतिव्रता धर्म का प्रतीक पर्व है। वेद इसे स्त्री धर्म और पारिवारिक स्थिरता का आधार मानते हैं, जबकि पुराण इसकी कथा से इसे सरल और लोकमान्य रूप प्रदान करते हैं।
इस प्रकार Teej significance in Vedas and Puranas स्पष्ट होता है कि यह पर्व स्त्रियों के संकल्प, भक्ति और त्याग का अनोखा उदाहरण है।