Democracy और जनसंख्या पर धर्म का प्रभाव
लोकतंत्र में सबसे महत्वपूर्ण अधिकार होता है — वोट का अधिकार। यह अधिकार सबको समान रूप से दिया जाता है, लेकिन जब किसी देश, राज्य या शहर में जनसंख्या के धार्मिक या सांस्कृतिक स्वरूप में बड़ा बदलाव आता है, तो उसका सीधा असर लोकतांत्रिक ढांचे पर दिखता है। BBC की रिपोर्ट इसी विषय को उजागर करती है।
लंदन चुनाव का उदाहरण
2024 में लंदन के मेयर सादिक खान ने तीसरी बार जीत दर्ज की। कुछ विश्लेषक उनकी जीत को शहर में धार्मिक और सांस्कृतिक जनसंख्या बदलाव से जोड़कर देख रहे हैं।
यह सवाल उठता है — क्या भविष्य में जनसंख्या के अनुपात के आधार पर राजनीतिक निर्णय लिए जाएंगे?
धर्म और पहचान की राजनीति
आजकल धर्म आधारित ध्रुवीकरण लोकतंत्र को कमजोर कर रहा है। नेता विकास के बजाय पहचान पर राजनीति कर रहे हैं। भारत, अमेरिका और फ्रांस जैसे लोकतंत्रों में भी यही ट्रेंड दिख रहा है।
यह लेख भारत में धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में और जानकारी देता है।
भारत में जनसंख्या असंतुलन की बहस
भारत में कुछ समुदायों की जनसंख्या तेज़ी से बढ़ने को लेकर चिंता जताई जा रही है। इसके कारण संभावित राजनीतिक असंतुलन और वोट बैंक की राजनीति पर चर्चा हो रही है।
- क्या बहुसंख्यक समुदाय अल्पसंख्यक सोच में चला जाएगा?
- क्या लोकतंत्र केवल संख्याबल पर आधारित रह जाएगा?
- क्या योग्यता की भूमिका घटेगी?
मुख्य समस्याएँ
- अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि
- धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण
- शिक्षा और जानकारी की कमी
क्या हो सकते हैं समाधान?
- समान जनसंख्या नियंत्रण नीति बनाना
- धर्म के बजाय विकास आधारित राजनीति को बढ़ावा देना
- नागरिकों को जागरूक करना कि मतदान योग्यता के आधार पर करें
- मीडिया द्वारा जिम्मेदार रिपोर्टिंग
निष्कर्ष
Democracy की शक्ति उसकी समावेशिता और विविधता में है। लेकिन अगर राजनीति केवल जनसंख्या और पहचान पर आधारित हो जाए, तो लोकतांत्रिक मूल्य खतरे में आ जाते हैं। सच्चे लोकतंत्र में धर्म नहीं, काम बोलता है।
“संख्या ज़रूरी है, लेकिन राष्ट्रहित सर्वोपरि है।”
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