भारत की टूटती जड़ें Breakdown of Joint Families in India

 

संयुक्त परिवार को तोड़कर उपभोक्ता बनाया गया भारत: एक खतरनाक साजिश की सच्चाई (Breakdown of Joint Families in India)

(Breakdown of Joint Families in India) आज का भारत उपभोक्तावाद की ओर बढ़ता हुआ देश बन गया है — और इस बदलाव की सबसे बड़ी कीमत चुकाई है हमारे संयुक्त परिवारों ने। “जब परिवार टूटते हैं, तभी बाजार फलते हैं” — ये सिर्फ विचार नहीं, पूरी रणनीति है।

अगर आप जानना चाहते हैं कि उपभोक्तावाद का भारतीय समाज पर क्या असर पड़ा, तो यह लेख ज़रूर पढ़ें।

इसके साथ ही मानसिक स्वास्थ्य और परिवार की भूमिका पर यह विश्लेषण भी आपके लिए उपयोगी रहेगा।

आधुनिकता या छुपी हुई ग़ुलामी? (Breakdown of Joint Families in India)

भारत की सबसे मजबूत चीज क्या थी?

भारत पर मुग़ल आए, अंग्रेज़ आए, और कई हमलावर आए — लेकिन एक चीज़ कभी नहीं टूटी:

      • हमारा संयुक्त परिवार
      • 3 पीढ़ियाँ एक छत के नीचे
      • बुज़ुर्गों का अनुभव
      • बच्चों में संस्कार
      • खर्च में सामूहिकता
      • त्यौहारों में गर्माहट

यह हमारी असली “Social Security” थी। कोई पेंशन की ज़रूरत नहीं थी, कोई अकेलापन नहीं, कोई Mental Health Crisis नहीं।

पश्चिम को यह चीज़ क्यों खटकने लगी? (Breakdown of Joint Families in India)

पश्चिमी देश उपनिवेशवादी रहे हैं — उनके लिए बाज़ार सबसे बड़ा धर्म है।

लेकिन भारत जैसे देश, जहाँ लोग साझा करते हैं, कम खर्च करते हैं — वहां वे अपने उत्पाद बेच ही नहीं पा रहे थे।

इसलिए एक शातिर रणनीति बनाई गई:

“इनके परिवार ही तोड़ दो, हर कोई अकेला हो जाएगा, और हर कोई ग्राहक बन जाएगा।”

कैसे हुआ ये हमला?

1. मीडिया के ज़रिए (Breakdown of Joint Families in India)

संयुक्त परिवार को “झगड़ों का अड्डा”, “बोझ” और “रुकावट” दिखाया गया।

न्यूक्लियर परिवार को “फ्रीडम”, “मॉर्डन”, “Self-made” बताकर ग्लैमराइज किया गया।

टीवी शोज़ में बहू-सास की लड़ाई और हल – “अलग हो जाओ!”

️ 2. उपभोक्तावाद के ज़रिए (Breakdown of Joint Families in India)

      • 1 परिवार = अब 4 घर
      • 1 टीवी = अब 4 टीवी
      • 1 रसोई = अब 4 किचन सेट
      • 1 कार = अब 4 स्कूटर + 2 कार

बाजार में बूम आया — और समाज में टूटन।

भारत में क्या हुआ इस “सोचलेवा हमले” के बाद?

सामाजिक पतन:

      • बुज़ुर्ग अब बोझ हैं
      • बच्चे अकेले हैं (और स्क्रीन में गुम)
      • रिश्तेदार “उपलब्ध नहीं” हैं
      • संस्कारों की जगह “Influencers” ने ले ली

मानसिक स्वास्थ्य संकट:

      • पहले जो बात नानी-दादी से होती थी, अब काउंसलर से होती है
      • अकेलापन अब इलाज़ मांगता है

बाजार का फायदे:

      • हर समस्या का एक उत्पाद
      • हर भावना का एक ऐप
      • हर उत्सव का एक “ऑनलाइन ऑर्डर”

“संस्कार की जगह सब्सक्रिप्शन ने ले ली है”

विश्वस्त स्रोत:

संयुक्त परिवार के महत्व पर इस अध्ययन में भी ज़िक्र किया गया है।

बाजारवाद और समाज पर प्रभाव के लिए Harvard Business Review का यह लेख भी देखें।

आज का सवाल — हम क्या बनते जा रहे हैं?

      • संयुक्तता को “Outdated” कहा
      • माता-पिता को “Obstacles” कहा
      • परिवार को “फालतू भावना” कहा
      • रिश्तों को “Unfollow” कर दिया

लेकिन क्या आपने सोचा?

      • Amazon तभी कमाएगा जब आप Diwali पर अकेले हों
      • Zomato तभी कमाता है जब माँ का खाना न खाया जाए
      • Netflix तभी चलेगा जब दादी की कहानी कोई न सुने

समाधान: हम अभी भी वापसी कर सकते हैं

      1. संयुक्त परिवार को पुनः “संपत्ति” मानें
      2. बच्चों को उपभोक्ता नहीं, संस्कारी बनाएं
      3. बुज़ुर्गों को बाहर न करें — वे Google से बेहतर हैं
      4. त्यौहार मनाएं, सामान नहीं
      5. अकेलापन कम करने के लिए App नहीं, अपनापन बढ़ाइए

निष्कर्ष:

“पश्चिम ने व्यापार के लिए परिवार तोड़े,
और हम ‘आधुनिक’ बनने के लिए अपना वजूद बेच आए।”

अब समय है रुकने का, सोचने का, और अपने संस्कारों को फिर से अपनाने का — नहीं तो अगली पीढ़ी को ‘संयुक्त परिवार’ शब्द का अर्थ बताने के लिए भी शायद Google की ज़रूरत पड़ेगी।