मानव जीवन के शास्त्रों में बताए गए 8 सुख

17 July 2025

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मानव जीवन के शास्त्रों में वर्णित 8 प्रकार के सुख

शास्त्रों में मानव जीवन के लिए आठ प्रकार के सांसारिक सुख बताए गए हैं। ये सुख व्यक्ति के जीवन को समृद्ध और संतुलित बनाने के लिए आवश्यक माने जाते हैं:

पहला सुख – निरोगी काया

अर्थ: शरीर स्वस्थ हो, कोई रोग न हो।

व्याख्या: स्वस्थ शरीर होने से ही अन्य सुख संभव होते हैं। रोगी व्यक्ति किसी भी भौतिक सुख का आनंद नहीं ले सकता।

दूसरा सुख – घर में माया

अर्थ: घर में धन-संपत्ति का होना।

व्याख्या: आर्थिक समृद्धि से जीवन चलता है, यह दूसरा बड़ा सुख है।

तीसरा सुख – कुलवती नारी

अर्थ: एक चरित्रवान और संस्कारी पत्नी।

व्याख्या: जीवनसाथी का सहचर्य मानसिक शांति और स्थिरता देता है।

चौथा सुख – सुत आज्ञाकारी

अर्थ: आज्ञाकारी संतान।

व्याख्या: ऐसे बच्चे जो माता-पिता का सम्मान करें, जीवन का गौरव बढ़ाते हैं।

पाँचवाँ सुख – सदन हो अपना

अर्थ: स्वयं का घर होना।

व्याख्या: यह स्थायित्व और सुरक्षा का प्रतीक है।

छठा सुख – सिर पर कोई ऋण ना हो

अर्थ: कर्ज़-मुक्त जीवन।

व्याख्या: मानसिक शांति का प्रमुख स्रोत।

सातवाँ सुख – व्यापार चलता रहे

अर्थ: आजीविका का स्थिर स्रोत।

व्याख्या: आय का नियमित होना अन्य सुखों को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

आठवाँ सुख – सबका प्यारा हो

अर्थ: समाज में सम्मानित होना।

व्याख्या: सामाजिक संतुलन और आत्म-संतुष्टि का सुख।

विषय-सुख – इन्द्रियों से मिलने वाले 8 सुख

  • शब्द – सुनने का सुख
  • स्पर्श – छूने का सुख
  • रूप – देखने का सुख
  • रस – चखने का सुख
  • गंध – सूँघने का सुख
  • मान – प्रतिष्ठा का सुख
  • बड़ाई – प्रशंसा का सुख
  • आराम – विलासिता का सुख

⚠️ इनका आकर्षण पतन का कारण बन सकता है: जैसे भँवरा, मृग, मछली आदि।

तुलसीदास जी:

“अलि पतंग मृग मीन गज, एक एक रस आँच।
तुलसी तिनकी कौन गति, जिनको ब्यापे पाँच॥”

️ भगवत्सुख – इन्द्रिय सुखों से ऊँचा

  • भगवत्सत्संग का सुख
  • भगवद्भाव का सुख
  • भगवन्नाम का सुख
  • भगवद्ज्ञान का सुख
  • भगवद्बड़ाई
  • भगवद्विलास
  • भगवद्रस
  • भगवद्राम

भगवत्प्राप्ति में विघ्न डालनेवाले 7 कारण

  • ❇️ उत्साह की कमी
  • ❇️ श्रद्धा की कमी
  • ❇️ अविश्वासी संग
  • ❇️ दृढ़ निश्चय का अभाव
  • ❇️ सत्संग की उपेक्षा
  • ❇️ विषय-वासनाओं का चिंतन
  • ❇️ लापरवाही

समाधान – साधना और संयम

गुरुदीक्षा लेकर:

  • ✔️ प्रतिदिन 15 मिनट ओंकार का गुंजन
  • ✔️ 10 माला गुरुमंत्र का जप
  • ✔️ संयम और नियम का पालन

➡️ फलस्वरूप व्यक्ति को भगवत्सुख की प्राप्ति होती है – शांति, करुणा और आनंद के रूप में।

✨ निष्कर्ष:

भौतिक सुख आवश्यक हैं, लेकिन जीवन का अंतिम लक्ष्य नहीं। शाश्वत सुख – केवल भगवत्सुख में है।

सच्चा सुख – केवल भगवदप्राप्ति में है।


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