09 July 2025
गुरु: आत्मज्ञान का दीप — वेद, पुराण और आध्यात्मिक परंपरा में गुरु का दिव्य स्थान
प्रस्तावना
भारतीय अध्यात्म और संस्कृति में गुरु को केवल एक शिक्षक नहीं, बल्कि आत्मा के जागरण का स्रोत माना गया है। वेद, उपनिषद, पुराण और संत परंपरा — सभी में गुरु को ईश्वर तुल्य माना गया है। गुरु शिष्य के जीवन में अज्ञान के अंधकार को मिटाकर आत्मज्ञान का दीप जलाते हैं।
️ गुरु का वेदों और उपनिषदों में स्थान
ऋग्वेद, यजुर्वेद, कठ उपनिषद, और मुंडक उपनिषद जैसे ग्रंथों में गुरु को परम ब्रह्म तक पहुँचने का माध्यम बताया गया है।
कठ उपनिषद (1.2.8) में स्पष्ट कहा गया है कि ब्रह्मज्ञान केवल गुरु की कृपा से ही प्राप्त होता है, तर्क से नहीं।
“तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत्,
समित्वान् श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम्।” — मुंडक उपनिषद (1.2.12)
अर्थात, ब्रह्म को जानने के लिए ऐसे गुरु की शरण में जाओ जो वेदों का ज्ञाता हो और स्वयं ब्रह्म में स्थित हो।
पुराणों में गुरु की महिमा
श्रीमद्भागवत पुराण और शिवपुराण में गुरु को परम तत्व कहा गया है।
“गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥” — गुरु गीता, स्कंद पुराण
इस श्लोक में गुरु को त्रिदेवों के स्वरूप और साक्षात ब्रह्म कहा गया है — यह उनके चरम स्थान को दर्शाता है।
भगवद्गीता में गुरु का स्थान
भगवद्गीता (अध्याय 4, श्लोक 34) में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं:
“तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया,
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः।” — श्रीमद्भगवद्गीता 4.34
यह श्लोक बताता है कि केवल विनम्रता, सेवा और जिज्ञासा के साथ ही गुरु से वास्तविक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। गुरु वही होता है जो तत्त्व का दर्शन कर चुका होता है।
संत साहित्य में गुरु की महिमा
कबीरदास, तुलसीदास, रविदास, गुरु नानक आदि संतों ने गुरु को सर्वोपरि स्थान दिया।
“गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥” — कबीरदास
यहां गुरु को ईश्वर से भी ऊपर रखा गया है, क्योंकि उन्होंने ही ईश्वर का मार्ग दिखाया।
“बिनु हरि कृपा मिलहिं नहिं संता।
बिनु संता हरि भक्ति न बंता॥” — तुलसीदास
गुरु के बिना ईश्वर की भक्ति भी अधूरी है।
गुरु–शिष्य परंपरा: जीवन का आधार
भारत में गुरु–शिष्य परंपरा हजारों वर्षों पुरानी है। वैदिक युग के गुरुकुलों में शिक्षा केवल विद्या तक सीमित नहीं थी, बल्कि चरित्र, संयम, सेवा और ध्यान का संपूर्ण विकास होता था।
गुरु के निर्देश पर ही शिष्य स्वाध्याय, ध्यान, सेवा और आत्मानुशासन का अभ्यास करता था। उपनिषद में गुरु को “जीवन रूपांतरक” कहा गया है — जो शिष्य को अहंकार से आत्मज्ञान तक की यात्रा कराता है।
✨ गुरु पूर्णिमा: गुरु की उपासना का पर्व
गुरु पूर्णिमा महर्षि वेदव्यास की जयंती के रूप में मनाई जाती है। वेदों का विभाजन कर उन्हें व्यवस्थित करने वाले वेदव्यास को “आदि गुरु” कहा जाता है। इस दिन शिष्य गुरु के प्रति श्रद्धा, समर्पण और आभार प्रकट करते हैं।
गुरु पूर्णिमा के दिन ध्यान, व्रत, गुरु पद वंदना, गुरु गीत का पाठ, तथा गुरु चरणामृत का सेवन किया जाता है।
समकालीन दृष्टिकोण: गुरु और मानसिक विकास
आधुनिक मनोविज्ञान भी इस बात को स्वीकार करता है कि जीवन में एक मार्गदर्शक, मेंटर या spritual teacher की उपस्थिति जीवन की दिशा और स्थिरता दोनों को मजबूती देती है।
स्वामी विवेकानंद कहते थे:
“यदि मुझे एक हजार युवा मिल जाएं जो अपने गुरु के लिए प्राण देने को तैयार हों, तो मैं भारत को विश्वगुरु बना सकता हूं।”
निष्कर्ष
गुरु केवल एक नाम नहीं, वह आत्मा की आँखें हैं। वह हमारी चेतना का विस्तार करता है और भीतर के सोए हुए दिव्य को जागृत करता है।
गुरु वह दीपक है जो बाहर नहीं, भीतर जलता है।
गुरु वह शक्ति है जो शब्दों से नहीं, मौन से शिक्षा देता है।
गुरु वह प्रेम है जो बिना शर्त, बिना अपेक्षा के देता है।
“गुरु बिना गति नाहीं।”
गुरु वह द्वार है, जिससे होकर आत्मा परमात्मा तक पहुँचती है।
जय गुरुदेव।
गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं।
Follow on