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June 2025
जब 18 साल का एक भारतीय लड़का शतरंज की दुनिया के सबसे कठिन टूर्नामेंट्स में भाग लेता है, और एक के बाद एक दिग्गजों को हराकर विश्व चैंपियन बन जाता है — तब वह न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरी युवा पीढ़ी के लिए एक प्रतीक बन जाता है।
यही कहानी है गुकेश डोम्माराजू की — जो अब शतरंज की दुनिया के सबसे ऊँचे सिंहासन पर विराजमान हैं।
कैंडिडेट्स टूर्नामेंट 2024: पहला बड़ा मोड़
विश्व चैंपियनशिप में खेलने का मौका तभी मिलता है जब खिलाड़ी FIDE Candidates Tournament जीतता है — यह टूर्नामेंट शतरंज की दुनिया के 8 सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों के बीच होता है।
गुकेश ने 2024 के कैंडिडेट्स में इन दिग्गजों को हराया:
इयान नेपोमनियाची (रूस) – दो बार के वर्ल्ड चैंपियनशिप फाइनलिस्ट
हिकारी नाकामुरा (अमेरिका) – तेज-तर्रार खिलाड़ी, ऑनलाइन शतरंज का राजा
अलीरेज़ा फिरौज़जा (फ्रांस) – युवा ईरानी-फ्रांसीसी सुपर टैलेंट
फबियानो कारुआना (अमेरिका) – पूर्व विश्व चैंपियनशिप फाइनलिस्ट
राडोस्लाव वोज्ताशेक, परहम मगसूदलू, और अन्य अनुभवी खिलाड़ी
गुकेश ने ना केवल इन खिलाड़ियों के खिलाफ बेहतरीन मुकाबले खेले, बल्कि पूरे टूर्नामेंट में एक परिपक्वता दिखाई, जो उनकी उम्र से कहीं आगे की थी।
वे Candidates जीतने वाले पहले भारतीय बने, और सबसे युवा विजेता भी।
विश्व चैंपियनशिप 2024: डिंग लिरन को हराकर इतिहास रचा
कैंडिडेट्स जीतने के बाद, गुकेश का मुकाबला हुआ डिंग लिरन से — चीन के दिग्गज खिलाड़ी, और मौजूदा विश्व चैंपियन।
यह मैच 14 बाजियों का था, जिसमें शुरुआत में स्कोर बराबरी पर चल रहा था। लेकिन जैसे-जैसे मुकाबला आगे बढ़ा, गुकेश ने मानसिक संतुलन बनाए रखा। निर्णायक बाजियों में उन्होंने डिंग की रणनीतियों को धैर्य और गहराई से जवाब दिया, और अंतिम दो बाजियों में बढ़त बनाकर खिताब जीत लिया।
इस जीत के साथ वे बन गए — इतिहास के सबसे कम उम्र के विश्व शतरंज चैंपियन।
️ उनका प्रतिक्रिया: जब विनम्रता बोले
जीत के बाद उनसे पूछा गया, “आप दुनिया के सबसे बड़े खिताब के बारे में कैसा महसूस कर रहे हैं?”
गुकेश ने मुस्कुराकर कहा:
“यह मेरी जीत नहीं है। यह मेरे माता-पिता की, मेरे कोचों की, और पूरे देश की जीत है।”
न कोई शोर, न कोई दिखावा — बस सादगी और सच्ची भावना। यह विनम्रता ही उन्हें सिर्फ विजेता नहीं, बल्कि आदर्श बनाती है।
परिवार: चुपचाप खड़ा वो आधार
गुकेश के पिता, ENT डॉक्टर डॉ. राजन, और उनकी माँ, माइक्रोबायोलॉजिस्ट श्रीमती पद्मिनी, ने गुकेश को वो स्पेस, समर्थन और स्थिरता दी, जिसकी उन्हें ज़रूरत थी। उनकी माँ तो हर टूर्नामेंट में साथ गईं, खाना, दिनचर्या और मानसिक संतुलन तक संभाला — ताकि गुकेश सिर्फ एक ही चीज़ पर ध्यान दे सकें: खेल।
युवाओं के लिए सीख
गुकेश की कहानी हमें बताती है:
अपने लक्ष्य को लेकर स्पष्ट रहो, चाहे उम्र कितनी भी कम हो।
धैर्य रखो — हर हार एक नई तैयारी का मौका है।
अपने माता-पिता और कोचों की कद्र करो।
और सबसे महत्वपूर्ण — विनम्र बने रहो, चाहे जितनी भी ऊँचाई मिल जाए।
निष्कर्ष
गुकेश डोम्माराजू की सफलता सिर्फ चालों की नहीं, चरित्र की जीत है। उन्होंने दिखा दिया कि साधारण परिवारों से निकलकर भी कोई बच्चा दुनिया जीत सकता है, अगर उसमें जिद हो, सही मार्गदर्शन हो, और दिल में सच्ची लगन हो।
“गुकेश ने दिग्गजों को हराया — लेकिन अपनी विनम्रता से हम सबका दिल जीत लिया।”
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