21 May 2025
भारत के प्राचीन विश्वविद्यालय: जब दुनिया भारत से पढ़ने आती थी!
जी हाँ! जब यूरोप अंधकार युग में था, तब भारत ज्ञान का दीपक जलाए हुए था।
भारत वह भूमि है जहाँ ज्ञान, साधना और संस्कृति ने मिलकर ऐसे विश्वविद्यालयों का निर्माण किया, जो न केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में शिक्षा के मंदिर माने जाते थे। आइए, जानते हैं ऐसे ही भारत के 6 प्राचीन और गौरवशाली विश्वविद्यालयों के बारे में, जिनका नाम आज भी इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है।
नालंदा विश्वविद्यालय – ज्ञान की नगरी
बिहार की पवित्र भूमि पर स्थित नालंदा विश्वविद्यालय 5वीं शताब्दी में बना और यह अपने समय का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र था। यहाँ एक समय में 10,000 से अधिक छात्र और 2,000 शिक्षक रहते थे।
यहाँ सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि चीन, कोरिया, जापान, श्रीलंका जैसे देशों से छात्र पढ़ने आते थे।
चीनी विद्वान ह्वेनसांग ने यहाँ अध्ययन किया और लिखा कि “नालंदा धरती पर स्वर्ग के समान है।”
यहाँ प्रवेश पाना बहुत कठिन था और विद्यार्थी मौखिक परीक्षा पास करके ही दाखिला ले सकते थे।
तक्षशिला विश्वविद्यालय – भारत का ऑक्सफोर्ड
तक्षशिला विश्वविद्यालय को विश्व का सबसे पहला विश्वविद्यालय माना जाता है, जिसकी स्थापना 600 BCE के आसपास हुई थी। यह आज के पाकिस्तान में स्थित था।
यहाँ पर चाणक्य (कौटिल्य), पाणिनी (संस्कृत के व्याकरणाचार्य), चरक (आयुर्वेदाचार्य) जैसे महान शिक्षक पढ़ाते थे।
यहाँ वेद, युद्धनीति, चिकित्सा, गणित, राजनीति, खगोलशास्त्र जैसे अनेक विषय पढ़ाए जाते थे।
यूनानी और फारसी ग्रंथों में भी तक्षशिला का उल्लेख मिलता है, जिससे इसकी अंतरराष्ट्रीय ख्याति का प्रमाण मिलता है।
विक्रमशिला विश्वविद्यालय – योग और तंत्र का केंद्र
बिहार के भागलपुर जिले में स्थित विक्रमशिला विश्वविद्यालय 8वीं शताब्दी में पाल वंश के राजा धर्मपाल द्वारा स्थापित किया गया था। यह बौद्ध धर्म और तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र था।
यहाँ से पढ़े विद्वान तिब्बत, भूटान और नेपाल जाकर बौद्ध धर्म और ज्ञान का प्रचार करते थे।
अतीश दीपंकर श्रीज्ञान, जो तिब्बती बौद्ध धर्म के एक महान गुरु बने, यहीं के छात्र थे।
यह विश्वविद्यालय तिब्बती और चीनी ग्रंथों में विशेष रूप से वर्णित है।
वल्लभी विश्वविद्यालय – सौराष्ट्र की शान
वल्लभी विश्वविद्यालय गुजरात राज्य में स्थित था और 6वीं शताब्दी में इसकी स्थापना हुई थी।
यहाँ धर्म, राजनीति, प्रशासन, न्यायशास्त्र, साहित्य और कला की शिक्षा दी जाती थी।
इस विश्वविद्यालय में लगभग 6,000 छात्र और 300 शिक्षक थे।
चीनी यात्री इत्सिंग (Yijing) ने इसे नालंदा के समकक्ष बताया और कहा कि यहाँ की शिक्षा प्रणाली अत्यंत प्रभावशाली थी।
यह एक विकसित समाज और उच्च शिक्षा का प्रमाण है।
ओदंतपुरी विश्वविद्यालय – नालंदा का छोटा भाई
ओदंतपुरी विश्वविद्यालय भी बिहार में स्थित था और इसे 8वीं शताब्दी में स्थापित किया गया था।
यह नालंदा और विक्रमशिला के समकक्ष माना जाता है और यहाँ लगभग 12,000 छात्र पढ़ाई करते थे।
तिब्बती ग्रंथों में इस विश्वविद्यालय का नाम ‘उदंतपुर’ बताया गया है।
यह बौद्ध शिक्षा और ध्यान का एक प्रमुख केंद्र था और तिब्बत के कई गुरु यहीं से शिक्षा लेकर गए थे।
पुष्पगिरि विश्वविद्यालय – ओडिशा की त्रिरत्न धरोहर
पुष्पगिरि विश्वविद्यालय ओडिशा के रत्नगिरि, उदयगिरि और ललितगिरि पहाड़ियों पर फैला हुआ था।
यह विश्वविद्यालय विशेष रूप से बौद्ध शिक्षा का केंद्र था और यहाँ ध्यान, योग, चिकित्सा, और तंत्र विद्या की गहन शिक्षा दी जाती थी।
ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृतांत में पुष्पगिरि विश्वविद्यालय की भव्यता का वर्णन किया है।
यहाँ की संरचनाएं आज भी पुरातात्विक दृष्टि से मूल्यवान मानी जाती हैं।
️ दुनिया को भारत से ज्ञान मिला!
- ❇️ चीन के ह्वेनसांग और इत्सिंग जैसे विद्वान भारत आकर शिक्षा प्राप्त कर गए।
- ❇️ तिब्बत को अतीश दीपंकर जैसे गुरु भारत से मिले, जिन्होंने वहाँ बौद्ध धर्म फैलाया।
- ❇️ श्रीलंका, कोरिया, जापान, भूटान और इंडोनेशिया तक भारतीय शिक्षण प्रणाली का प्रभाव पड़ा।
इन संस्थानों से शिक्षा पाकर कई विदेशी विद्वानों ने अपने-अपने देशों में भारतीय ज्ञान, संस्कार और संस्कृति को फैलाया।
निष्कर्ष: जब शिक्षा थी आत्मा का उत्थान, न कि सिर्फ नौकरी पाने का साधन
भारत के प्राचीन विश्वविद्यालय केवल इमारतें या शिक्षण संस्थान नहीं थे — वे थे ज्ञान, संस्कृति, चरित्र और आध्यात्मिकता के मंदिर।
आज जब हम शिक्षा को केवल एक डिग्री, नौकरी या मार्क्स तक सीमित कर रहे हैं, हमें नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला जैसे शिक्षा केंद्रों से सीखने की जरूरत है।
वहाँ शिक्षा का उद्देश्य था:
- सत्य की खोज (search for truth)
- आत्मा की उन्नति (spiritual upliftment)
- समाज की सेवा (service to society)
- वैश्विक कल्याण (global harmony)
इन विश्वविद्यालयों का सबसे बड़ा योगदान यह था कि वे धर्म, विज्ञान, कला, आयुर्वेद, खगोलशास्त्र, तर्कशास्त्र और ध्यान – सब कुछ संतुलित रूप से सिखाते थे।
विद्यार्थी सिर्फ ज्ञानी नहीं बनते थे, वे चरित्रवान और जिम्मेदार नागरिक बनते थे।
इतिहास गवाह है कि जब तक भारत में ऐसे विश्वविद्यालय रहे, तब तक भारत विश्वगुरु था। लेकिन जैसे ही ये संस्थान नष्ट किए गए (खासकर बख्तियार खिलजी जैसे आक्रमणकारियों द्वारा), भारत की ज्ञान-दीपशिखा बुझने लगी।
आज, जब हम ‘डिजिटल इंडिया’, ‘नए भारत’ की बात कर रहे हैं, तो समय आ गया है कि हम अपने गौरवशाली अतीत से प्रेरणा लें और ऐसे शिक्षा केंद्रों की पुनर्स्थापना करें:
- जहाँ शिक्षा संस्कारों से जुड़ी हो
- जहाँ भाषा का बंधन न हो, बल्कि मूल्यों का बंधन हो
- जहाँ विद्यार्थी सिर्फ नौकरी के लिए नहीं, राष्ट्रनिर्माण के लिए पढ़ें
- जहाँ फिर से विदेशों से छात्र भारत आने को लालायित हों।
भारत का भविष्य उसी दिन उज्ज्वल होगा, जब उसकी शिक्षा प्राचीन जड़ों से जुड़कर आधुनिकता से संवाद करेगी।