आधुनिक भारतीय समाज में लिव-इन संबंधों की प्रवृत्ति: एक चिंतन

प्रकाशित तिथि: 19/04/2025
स्रोत: https://azaadbharat.org/

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आधुनिक भारतीय समाज में लिव-इन संबंधों की प्रवृत्ति: एक चिंतन

प्रस्तावना

हाल के वर्षों में भारतीय समाज में लिव-इन संबंधों की प्रवृत्ति में वृद्धि देखी गई है। शहरी क्षेत्रों में विशेषकर, युवा महिलाएँ शिक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त कर रही हैं। इसी कारण वे पारंपरिक विवाह की बजाय लिव-इन संबंधों को प्राथमिकता दे रही हैं। इसके विपरीत, पश्चिमी देशों में महिलाएँ विवाह को स्थिरता और बच्चों की सुरक्षा का माध्यम मानती हैं।

इस परिदृश्य में, वेब सीरीज़ और ऑनलाइन सामग्री का प्रभाव भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह सामग्री युवा पीढ़ी की मानसिकता और संबंधों के प्रति दृष्टिकोण को प्रभावित कर रही है।

लिव-इन संबंधों की ओर रुझान के कारण

  • आर्थिक स्वतंत्रता और करियर प्राथमिकता: शिक्षित और आर्थिक रूप से स्वतंत्र महिलाएँ अपने करियर पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही हैं। वे विवाह की जिम्मेदारियों से बचना चाहती हैं।
  • प्रतिबद्धता से बचाव: कुछ युवा महिलाएँ विवाह से जुड़ी दीर्घकालिक प्रतिबद्धताओं से बचना चाहती हैं। इसलिए वे लिव-इन संबंधों को एक सुविधाजनक विकल्प मानती हैं।
  • वेब सीरीज़ का प्रभाव: वेब सीरीज़ और ऑनलाइन सामग्री में अक्सर लिव-इन संबंधों को सामान्य और आकर्षक रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इससे युवा दर्शकों के विचार और व्यवहार प्रभावित होते हैं। इन सीरीज़ में दिखाए गए संबंधों के पैटर्न युवा पीढ़ी की वास्तविक जीवन की अपेक्षाओं को बदल सकते हैं।

विवाह के लाभ

  • कानूनी और आर्थिक सुरक्षा: विवाह से पति-पत्नी को कानूनी अधिकार और आर्थिक लाभ प्राप्त होते हैं, जैसे संपत्ति अधिकार, कर में छूट, और विरासत के अधिकार।
  • स्वास्थ्य लाभ: अध्ययनों से पता चला है कि विवाहित लोग अविवाहित लोगों की तुलना में बेहतर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का आनंद लेते हैं। वे स्वस्थ जीवनशैली अपनाते हैं और दीर्घायु होते हैं।
  • सामाजिक स्वीकृति और समर्थन: विवाह सामाजिक रूप से स्वीकार्य है और इससे परिवार और समाज का समर्थन मिलता है। यह समर्थन जीवन की विभिन्न चुनौतियों से निपटने में मदद करता है।
  • बच्चों के लिए स्थिर वातावरण: विवाह बच्चों को स्थिर और सुरक्षित पारिवारिक वातावरण प्रदान करता है। यह उनके समग्र विकास के लिए महत्वपूर्ण है।

भारतीय समाज के लिए चुनौतियाँ और समाधान

  • संस्कृति और मूल्यों का संरक्षण: भारतीय संस्कृति में विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है। यह न केवल दो व्यक्तियों, बल्कि दो परिवारों को जोड़ता है। लिव-इन संबंधों की बढ़ती प्रवृत्ति से पारिवारिक संरचना और सामाजिक ताने-बाने पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • युवाओं में जागरूकता: युवाओं को विवाह की महत्ता, उसके सामाजिक, व्यक्तिगत, और कानूनी लाभों के बारे में शिक्षित करना आवश्यक है। उन्हें समझाना चाहिए कि विवाह केवल जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि एक स्थायी संबंध है। यह जीवन में स्थिरता और संतोष प्रदान करता है।
  • वेब सीरीज़ की सामग्री का विवेकपूर्ण उपभोग: युवाओं को वेब सीरीज़ और ऑनलाइन सामग्री का विवेकपूर्ण उपभोग करना चाहिए। इससे वे वास्तविक जीवन और काल्पनिक प्रस्तुतियों के बीच अंतर समझ सकें। मीडिया साक्षरता को बढ़ावा देना इस संदर्भ में सहायक हो सकता है।
  • सामाजिक समर्थन और मार्गदर्शन: समाज को चाहिए कि वह युवाओं को सही मार्गदर्शन प्रदान करे। इससे वे अपने निर्णयों के दीर्घकालिक प्रभावों को समझ सकें और भारतीय संस्कृति के मूल्यों का सम्मान करें।

क्या कहते हैं संत?

संतों के मार्गदर्शन में जीवन को संयम, मर्यादा और संस्कृति से जोड़ा जाता है। संत श्री आशारामजी बापू जैसे महान संतों ने सदैव समाज को सच्चे प्रेम, विवाह की मर्यादा, और पारिवारिक जीवन की गरिमा के विषय में जागरूक किया है। उनका स्पष्ट संदेश है कि लिव-इन संबंध केवल क्षणिक आकर्षण होते हैं, जबकि विवाह एक पवित्र, स्थायी और जिम्मेदारीपूर्ण बंधन है। संतों का जीवनदर्शन हमें यह सिखाता है कि यदि हम पारिवारिक मूल्यों का पालन करें, तो न केवल हमारा जीवन सुखमय होगा, बल्कि समाज भी सशक्त और संतुलित बनेगा।

निष्कर्ष

भारतीय समाज में लिव-इन संबंधों की बढ़ती प्रवृत्ति, वेब सीरीज़ के प्रभाव, और जिम्मेदारियों से बचने की मानसिकता एक गंभीर विषय है। इस पर ध्यानपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। अत्यधिक स्वतंत्रता और सशक्तिकरण की आड़ में, कुछ युवा बिना भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं की गहराई से समझे, पश्चिमी प्रवृत्तियों का अंधानुकरण कर रहे हैं। यह प्रवृत्ति पारिवारिक संरचना और सामाजिक ताने-बाने को कमजोर कर सकती है।

हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत और मूल्यों को संरक्षित रखते हुए युवाओं को विवाह की महत्ता और उसके लाभों के प्रति जागरूक करना होगा। साथ ही, मीडिया साक्षरता और जिम्मेदार उपभोग को बढ़ावा देकर, उन्हें स्वस्थ और स्थायी संबंधों की ओर प्रेरित करना आवश्यक है। इससे वे अपनी सांस्कृतिक विरासत का सम्मान करते हुए समाज में सकारात्मक योगदान दे सकेंगे।

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