माता-पिता की सेवा न करने पर संपत्ति हो सकती है वापस: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

07 January 2025

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माता-पिता की सेवा न करने पर संपत्ति हो सकती है वापस: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

 

माता-पिता की सेवा और देखभाल भारतीय संस्कृति की नींव मानी जाती है। लेकिन आधुनिक समय में कुछ लोग अपने कर्तव्यों को भूलकर बुजुर्ग माता-पिता की उपेक्षा करते हैं। इस गंभीर समस्या पर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसला दिया है। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि जो बच्चे माता-पिता से संपत्ति प्राप्त करने के बाद उनकी देखभाल नहीं करते, उनसे संपत्ति वापस ली जा सकती है।

 

क्या है मामला?

 

मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में एक वृद्ध महिला ने अपनी संपत्ति गिफ्ट डीड के जरिए अपने बेटे को दे दी थी। बेटे ने संपत्ति तो ले ली, लेकिन अपनी मां की देखभाल करने में विफल रहा। महिला ने अदालत का रुख किया और बताया कि बेटे ने संपत्ति देने की शर्तों का पालन नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाते हुए गिफ्ट डीड को रद्द कर दिया और बेटे को आदेश दिया कि वह 28 फरवरी तक मां को संपत्ति पर कब्जा लौटा दे।

 

2007 का वरिष्ठ नागरिक संरक्षण कानून

 

यह फैसला वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत दिया गया है। इस कानून की धारा 23 स्पष्ट रूप से कहती है कि:

 

⚖️यदि कोई बुजुर्ग अपनी संपत्ति किसी को इस शर्त पर देता है कि वह उसकी देखभाल करेगा, और वह शर्त पूरी नहीं होती, तो यह संपत्ति का ट्रांसफर अमान्य माना जाएगा।

 

⚖️ ट्रिब्यूनल को अधिकार है कि वह ऐसे मामलों में संपत्ति का हस्तांतरण रद्द कर दे।

 

सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्यों महत्वपूर्ण है?

 

⚖️बुजुर्गों के अधिकारों की रक्षा:

 

यह फैसला उन बुजुर्गों को सुरक्षा प्रदान करता है जो अपनी संपत्ति देकर भी बच्चों की उपेक्षा का शिकार होते हैं।

 

⚖️संस्कृति का संरक्षण:

 

यह कदम माता-पिता की सेवा और देखभाल के प्रति बच्चों की जिम्मेदारी को दोबारा याद दिलाता है।

 

⚖️कानून की सख्ती:

 

यह फैसला स्पष्ट संदेश देता है कि बुजुर्गों की उपेक्षा बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

 

भारतीय समाज और माता-पिता की सेवा

 

भारतीय संस्कृति में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ा धर्म माना गया है। लेकिन समय के साथ, इस मूल सिद्धांत का महत्व कुछ लोगों के जीवन से कम हो गया है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल कानूनी रूप से बल्कि नैतिक दृष्टिकोण से भी बेहद आवश्यक है।

 

क्या करें यदि बुजुर्गों के साथ अन्याय हो?

 

यदि कोई बुजुर्ग माता-पिता अपने बच्चों से उपेक्षित महसूस करते हैं, तो वे इन कदमों का पालन कर सकते हैं:

 

वरिष्ठ नागरिक ट्रिब्यूनल में शिकायत दर्ज करें।

 

2007 के कानून का सहारा लेकर संपत्ति वापस लेने की प्रक्रिया शुरू करें।

 

स्थानीय सामाजिक संस्थाओं और एनजीओ से मदद लें।

 

निष्कर्ष

 

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उन लोगों के लिए चेतावनी है जो माता-पिता को उपेक्षित करते हैं। यह समाज के लिए एक सकारात्मक संदेश है कि माता-पिता की सेवा न केवल नैतिक जिम्मेदारी है, बल्कि अब कानूनी तौर पर भी इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती।

आइए, हम सब इस पहल का समर्थन करें और माता-पिता के सम्मान और सेवा के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाएं।

 

 

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