51 शक्तिपीठ: देवी सती कथा और पुराण प्रमाण

51 Shakti Peeth : देवी सती की कथा, पुराण प्रमाण और महत्त्व

23 September 2025 | https://www.azaadbharat.org

शक्ति पीठों की उत्पत्ति की कथा

51 शक्तिपीठों की उत्पत्ति की कथा हिंदू धर्म की अमर गाथा है, जो हमें देवी सती और भगवान शिव के पावन जीवन प्रसंग से जोड़ती है।

सती और शिव का विवाह

सती, प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं। वे भगवान शिव की महान भक्त थीं और अंततः उनसे विवाह कर लिया, यद्यपि दक्ष इस विवाह से प्रसन्न नहीं थे। दक्ष को शिव का वैराग्यपूर्ण, तपस्वी जीवन स्वीकार्य नहीं था।

शिवपुराण (विद्येश्वर संहिता, अध्याय 7) में वर्णन आता है कि दक्ष ने इस विवाह को परिवार और समाज के लिए अपमानजनक माना।

दक्ष यज्ञ और सती का आत्मदाह

एक बार दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया। उन्होंने सभी देवताओं को आमंत्रित किया, किंतु जानबूझकर शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया। सती ने आग्रह के बावजूद अपने पिता के अपमानजनक व्यवहार को सहन नहीं किया और यज्ञ वेदी पर आत्मदाह कर लिया।

देवी भागवत पुराण (7.30) और स्कंदपुराण (काशी खंड) इस प्रसंग को विस्तार से बताते हैं।

शिव का तांडव

सती के देहांत से शिव व्यथित हो उठे। उन्होंने सती का शरीर उठाकर प्रलयकारी तांडव नृत्य आरंभ कर दिया। लिंगपुराण के अनुसार, देवताओं और ऋषियों ने भय से ब्रह्मा और विष्णु से प्रार्थना की।

विष्णु का हस्तक्षेप

विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया। जहाँ-जहाँ ये अंग, आभूषण या वस्त्र गिरे, वहाँ-वहाँ शक्ति पीठ प्रकट हुए।

वेदों और उपनिषदों में शक्ति का उल्लेख

  • ऋग्वेद (10.125) – देवी स्वयं कहती हैं कि मैं संपूर्ण सृष्टि को चलाने वाली शक्ति हूँ।
  • अथर्ववेद (19.71) – भुवनेश्वरी रूप का वर्णन।
  • श्वेताश्वतर उपनिषद (6.8) – शक्ति को ईश्वर की अनिवार्य ऊर्जा बताया गया।
  • काठक उपनिषद – शिव और शक्ति की अद्वैत सत्ता का प्रतिपादन।

51 शक्तिपीठों की सूची

इन शक्तिपीठों का उल्लेख देवी भागवत पुराण, तंत्रचूड़ामणि और स्कंदपुराण में मिलता है।

    • कालिघाट काली मंदिर – कोलकाता, पश्चिम बंगाल (दाहिने पैर की उंगलियाँ)
    • कामाख्या मंदिर – गुवाहाटी, असम (योनि)
    • विशालाक्षी मंदिर – वाराणसी, उत्तर प्रदेश (कर्णफूल)
    • तारातरणी मंदिर – ब्रह्मपुर, ओडिशा (स्तन)
    • भीमला मंदिर – पुरी, ओडिशा (पाँव)

अतिरिक्त महत्त्व और मान्यताएँ

  • तांत्रिक साधना – प्रत्येक पीठ एक शक्ति-चक्र है जो साधक को विशेष सिद्धियाँ प्रदान करता है।
  • लोककथाएँ – कामाख्या: अंबुवाची मेला, ज्वालामुखी: जिह्वा ज्योति, नैना देवी: नेत्र पूजन, छिन्नमस्ता: मस्तक हाथ में।
  • तीर्थाटन – देवी भागवत पुराण (11.11): सभी पीठ यात्रा करने वाला भक्त सप्तजन्मों के पापों से मुक्त।
  • नवरात्रि और पर्व – शारदीय एवं चैत्र नवरात्रि में विशेष पूजा और मेले।

निष्कर्ष

51 शक्तिपीठ केवल मंदिर या भूभाग नहीं हैं, वे दिव्य चेतना के केंद्र हैं। यह स्मरण कराते हैं कि शक्ति के बिना शिव भी शव हैं। यह स्थान भक्ति, साधना और मुक्ति के अद्वितीय धाम हैं।