25 दिसम्बर का सच जानकर आप छोड़ देंगे क्रिसमस मनाना, इस दिन होती थी सूर्योपासना

21 December 2022

azaadbharat.org

🚩यूरोप, अमेरिका आदि ईसाई देशों में इस समय क्रिसमस डे की धूम है, लेकिन अधिकांश लोगों को तो ये पता ही नहीं है कि यह क्यों मनाया जाता है!

🚩भारत में भी कुछ भोले-भाले हिन्दू आदि लोग क्रिसमस की बधाई देते हैं और ईसाइयों के साथ क्रिसमस मनाते हैं पर उनको भी नहीं पता है कि क्रिसमस क्यों मनाई जाती है ?

🚩कुछ लोगों का भ्रम है कि इस दिन यीशु मसीह का जन्मदिन होता है पर सच्चाई यह है कि 25 दिसम्बर का ईसा मसीह के जन्मदिन से कोई सम्बन्ध ही नहीं है। एन्नो डोमिनी (AD) काल प्रणाली के आधार पर यीशु का जन्म 7 ई.पू. से 2 ई.पू. के बीच 4 ई.पू. में हुआ था। जीसस के जन्म का वार, तिथि, मास, वर्ष, समय तथा स्थान- सभी बातें अज्ञात हैं। इसका बाईबल में भी कोई उल्लेख नहीं है। यदि वह इतने प्रसिद्ध संत, महात्मा या अवतारी व्यक्ति होते तो सारा ब्यौरा तत्कालीन जनता जानने का यत्न करती।

🚩विलियम ड्यूरेंट ने यीशु मसीह का जन्म वर्ष ईसापूर्व चौथा वर्ष लिखा है। यह कितनी असंगत बात है ? भला ईसा का ही जन्म ईसा पूर्व में कैसे हो सकता है ? कालगणना अगर यीशु मसीह के जन्म से शुरू होती है, जन्म से पूर्व ई.पू. और बाद में ई. में की जाती है तो यीशु मसीह का जन्म 4 ई.पू. में कैसे हुआ ?

🚩और एक असंगति देखें। ईसा का जन्म 25 दिसम्बर को मनाया जाता है और नववर्ष का दिन होता है 1 जनवरी। तो क्या ईसा का जन्म ईसवी सन से 1 सप्ताह पहले हुआ और यदि हुआ तो उसी दिन से वर्ष गणना शुरू क्यों नहीं की गई ?

🚩हाल ही में बीबीसी पर एक रिपोर्ट छपी थी उसके अनुसार यीशु का जन्म कब हुआ- इसे लेकर एक राय नहीं है। कुछ धर्मशास्त्री मानते हैं कि उनका जन्म बसंत में हुआ था, क्योंकि इस बात का जिक्र है कि जब ईसा का जन्म हुआ था, उस समय गड़रिये मैदानों में अपने झुंडों की देखरेख कर रहे थे। अगर उस समय दिसंबर की सर्दियां होतीं, तो वे कहीं शरण लेकर बैठे होते और अगर गड़रिये मैथुनकाल के दौरान भेड़ों की देखभाल कर रहे होते तो वे उन भेड़ों को झुंड से अलग करने में मशगूल होते, जो समागम कर चुकी होतीं। ऐसा होता तो ये पतझड़ का समय होता। मगर बाईबल में यीशु मसीह के जन्म का कोई दिन नहीं बताया गया है।

🚩वास्तव में, पूर्व में 25 दिसम्बर को ‘मकर संक्रांति’ (शीतकालीन संक्रांति) पर्व मनाया जाता था और यूरोप-अमेरिका आदि देश धूमधाम से इस दिन सूर्य उपासना करते थे। सूर्य और पृथ्वी की गति के कारण मकर संक्रांति लगभग 80 वर्षों में एक दिन आगे खिसक जाती है।

🚩सायनगणना के अनुसार 22 दिसंबर को सूर्य उत्तरायण की ओर व 22 जून को दक्षिणायन की ओर गति करता है।सायनगणना ही प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होती है जिसके अनुसार 22 दिसंबर को सूर्य क्षितिज वृत्त में अपने दक्षिण जाने की सीमा समाप्त करके उत्तर की ओर बढ़ना आरंभ करता है। यूरोप शीतोष्ण कटिबंध में आता है इसलिए यहां सर्दी बहुत पड़ती है। जब सूर्य उत्तर की ओर चलता है, यूरोप उत्तरी गोलार्द्ध में पड़ता है तो यहां से सर्दी कम होने की शुरुआत होती है, इसलिए 25 दिसंबर को मकर संक्रांति मनाते थे।

🚩विश्व-कोष में दी गई जानकारी के अनुसार सूर्य-पूजा को समाप्त करने के उद्देश्य से क्रिसमस डे को प्रारम्भ किया गया।

🚩आपको बता दें कि सबसे पहले 25 दिसंबर के दिन क्रिसमस का त्यौहार ईसाई रोमन सम्राट (First Christian Roman Emperor) के समय में 336 ईसवी में मनाया गया था। इसके कुछ साल बाद पोप जुलियस (Pop Julius) ने 25 दिसंबर को ईसा मसीह के जन्म दिवस के रूप में मनाने का ऐलान कर दिया, तब से दुनियाभर में 25 दिसंबर को क्रिसमस का त्यौहार मनाया जाता है।

🚩आपको बता दें- बाईबल में भी जिक्र नहीं है कि यीशु मसीह 13 साल से 29 साल की उम्र के बीच कहाँ रहे? यीशु ने भारत के कश्मीर में ऋषि मुनियों से साधना सीखकर 17 साल तक योग किया था, बाद में वे रोम देश में गये तो वहाँ उनके स्वागत में पूरा रोम शहर सजाया गया और मेग्डलेन नाम की प्रसिद्ध वेश्या ने उनके पैरों को इत्र से धोया और अपने रेशमी लंबे बालों से यीशु के पैर पोछे थे।

🚩बाद में यीशु के अधिक लोक संपर्क से योगबल खत्म हो गया और उनको सूली पर चढ़ा दिया गया तब पूरा रोम शहर उनके खिलाफ था। रोम शहर में से केवल 6 व्यक्ति ही उनके सूली पर चढ़ने से दुःखी थे।

🚩एक नए शोध के अनुसार यीशु ने उनकी शिष्या मेरी मेग्दलीन से विवाह किया था, जिनसे उनको दो बच्चे भी हुए थे। ब्रिटिश दैनिक ‘द इंडिपेंडेंट’ में प्रकाशित रिपोर्ट में ‘द संडे टाइम्स’ के हवाले से बताया गया है कि ब्रिटिश लाइब्रेरी में 1500 साल पुराना एक दस्तावेज मिला है, जिसमें एक दावा किया गया है कि ईसा मसीह ने ना सिर्फ मेरी से शादी की थी, बल्कि उनके दो बच्चे भी थे।

🚩साहित्यकार और वकील लुईस जेकोलियत (Louis Jacolliot) ने 1869 ई. में अपनी एक पुस्तक ‘द बाइबिल इन इंडिया’ (The Bible in India, or the Life of Jezeus Christna) में कृष्ण और क्राइस्ट पर एक तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। ‘जीसस’ शब्द के विषय में लुईस ने कहा है कि क्राइस्ट को ‘जीसस’ नाम भी उनके अनुयायियों ने दिया है। इसका संस्कृत में अर्थ होता है- ‘मूल तत्व’।

🚩इन्होंने अपनी पुस्तक में यह भी कहा है कि ‘क्राइस्ट’ शब्द कृष्ण का ही रूपांतरण है, हालांकि उन्होंने कृष्ण की जगह ‘क्रिसना’ शब्द का इस्तेमाल किया। भारत में गांवों में कृष्ण को क्रिसना ही कहा जाता है। यह क्रिसना ही यूरोप में क्राइस्ट और ख्रिस्तान हो गया। बाद में यही क्रिश्चियन हो गया। लुईस के अनुसार, ईसा मसीह अपने भारत भ्रमण के दौरान भगवान जगन्नाथ के मंदिर में रुके थे। एक रूसी अन्वेषक निकोलस नोतोविच ने भारत में कुछ वर्ष रहकर प्राचीन हेमिस बौद्ध आश्रम में रखी पुस्तक ‘द लाइफ ऑफ संत ईसा’ पर आधारित फ्रेंच भाषा में ‘द अननोन लाइफ ऑफ जीजस क्राइस्ट’ नामक पुस्तक लिखी है। इसमें ईसा मसीह के भारत भ्रमण के बारे में बहुत कुछ लिखा हुआ है।

🚩मॉनेस्ट्री के एक अनुभवी लामा ने एक न्यूज एजेंसी को बताया था कि ईसा मसीह ने भारत में बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी और वह बुद्ध के विचार और नियमों से बहुत प्रभावित थे। यह भी कहा जाता है कि जीसस ने कई पवित्र शहरों, जैसे- जगन्नाथ पुरी, राजगृह और बनारस में दीक्षा दी और इसकी वजह से ब्राह्मण नाराज हो गए और उन्हें बहिष्कृत कर दिया गया। इसके बाद जीसस हिमालय भाग गए और बौद्ध धर्म की दीक्षा लेना जारी रखा। जर्मन विद्वान होल्गर केर्सटन ने जीसस के शुरुआती जीवन के बारे में लिखा था और दावा किया था कि जीसस सिंध प्रांत में आर्यों के साथ जाकर बस गए थे।

🚩”फिफ्त गॉस्पल” फिदा हसनैन और देहन लैबी द्वारा लिखी गई एक किताब है जिसका जिक्र अमृता प्रीतम ने अपनी किताब ‘अक्षरों की रासलीला’ में विस्तार से किया है। ये किताब जीसस की जिन्दगी के उन पहलुओं की खोज करती है जिसको ईसाई जगत मानने से इन्कार कर सकता है। जैसे- मसलन कुँवारी माँ से जन्म और मृत्यु के बाद पुनर्जीवित हो जाने वाले चमत्कारी मसले। किताब का भी यही मानना है कि 13 से 29 वर्ष की उम्र तक ईसा भारत भ्रमण करते रहे।

🚩बीबीसी (BBC) ने “Jesus Was A Buddhist Monk” नाम से एक डॉक्युमेंट्री बनाई थी जिसमें बताया गया था कि यीशु मसीह को सूली पर नहीं चढ़ाया गया था। जब वह 30 वर्ष के थे तो वह अपनी पसंदीदा जगह वापस चले गए थे। डॉक्युमेंट्री के मुताबिक, यीशु मसीह की मौत नहीं हुई थी और वह यहूदियों के साथ अफगानिस्तान चले गए थे। रिपोर्ट के मुताबिक स्थानीय लोगों ने इस बात की पुष्टि की कि यीशु मसीह ने कश्मीर घाटी में कई वर्ष व्यतीत किए थे और 80 की उम्र तक वहीं रहे। अगर यीशु मसीह ने 16 वर्ष किशोरावस्था में और जिंदगी के आखिरी 45 साल व्यतीत किए तो इस हिसाब से वह भारत, तिब्बत और आस-पास के इलाकों में करीब 61 साल रहे। कई स्थानीय लोगों का मानना है कि कश्मीर के श्रीनगर में रोजा बल श्राइन में जीसस की समाधि बनी हुई है। हालांकि, आधिकारिक तौर पर यह मजार एक मध्यकालीन मुस्लिम उपदेशक यूजा आसफ का मकबरा है। अगर इस बात को सत्य माना जाए तो इसका मतलब है कि यीशु मसीह को कील ठोककर क्रॉस पर लटकाना आदि बातें झूठ है। ईसाई मिशनरियां इसी बात को बोलकर यीशु मसीह को भगवान का बेटा बताती हैं। इसका मतलब- ईसाई मिशनरियां केवल धर्मांतरण के लिए ये सफेद झूठ बोलती हैं।

🚩यदि यीशु मसीह ने धार्मिक प्रवचन करते अपना जीवन बिताया होता तो उनके प्रवचनों की कोई बड़ी पुस्तक जरूर होती या कम से कम बाइबिल में ही उनके प्रवचन होते पर बाईबल में तो उनके किसी प्रवचन का जिक्र ही नहीं है? अब प्रश्न ये है कि वे सारे भाषण कहाँ हैं? इसका उत्तर आज तक किसी के पास नहीं है।

🚩25 दिसंबर क्रिसमस का न यीशु से कोई लेना देना है और न ही संता क्‍लॉज से; फिर भी भारत में पढ़े-लिखे लोग बिना कारण का पर्व मनाते हैं। भारतीय संस्कृति को खत्म करने और ईसाईकरण के लिए भारत में क्रिसमस डे मनाया जाता है, इसलिये आप सावधान रहें ।

🚩ध्यान रहे- हिन्दुओं का नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरु होता है। हिन्दू महान भारतीय संस्कृति के महान ऋषि -मुनियों की संतानें हैं इसलिये दारू पीने वाला, मांस खाने वाला अंग्रेजों का नववर्ष मनायें- ये भारतीयों को शोभा नहीं देता है।

🚩आपको बता दें कि वर्ष 2014 से देश में सुख, सौहार्द, स्वास्थ्य व शांति से जनमानस का जीवन मंगलमय हो- इस लोकहितकारी उद्देश्य से हिदू संत आशाराम बापूजी ने 25 दिसम्बर “तुलसी पूजन दिवस” के रूप में मनाना शुरू करवाया। समस्त भारतवासी भी 25 दिसम्बर तुलसी पूजन करके ही मनायें।

🚩तुलसी के पूजन से मनोबल, चारित्र्यबल व आरोग्यबल बढ़ता है, मानसिक अवसाद व आत्महत्या आदि से रक्षा होती है। तुलसी माता पर्यावरण शुद्ध करती है, हवा को साफ करती है और तुलसी के घर में होने से नकारात्मक ऊर्जा दूर रहती है।

🚩मरने के बाद भी मोक्ष देनेवाली तुलसी पूजन की महत्ता बताकर जन-मानस को भारतीय संस्कृति के इस सूक्ष्म ऋषि विज्ञान से परिचित कराया हिन्दू संतों ने।

🚩धन्य हैं ऐसे संत जो अपने साथ हो रहे अन्याय, अत्याचार को ना देखकर संस्कृति की सेवा में आज भी सेवारत हैं।

🚩सभी भारतीय, 25 दिसम्बर को प्लास्टिक के पेड़ पर बल्ब जलाने की बजाय 24 घण्टे ऑक्सीजन देने वाली माता तुलसी का पूजन करें।

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