सुप्रीम कोर्ट ने कहा मीडिया किसी एक समुदाय को निशाना नहीं बनायें, क्या हिंदू विरोधी अब रुकेंगे?

19 सितंबर 2020

 
सुदर्शन न्यूज़ के मुस्लिम अभ्यर्थियों के यूपीएससी में चुने जाने को लेकर दिखाए जा रहे कार्यक्रम पर सुप्रीम कोर्ट ने एतराज़ जताते हुए बचे हुए एपिसोड दिखाने पर रोक लगा दी थी। शुक्रवार (सितम्बर 18, 2020) को इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने मीडिया को सख्त संदेश दिया है कि किसी एक समुदाय को निशाना नहीं बनाया जा सकता है।
 

 

 
सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, “एक संदेश मीडिया में जाने देना चाहिए कि किसी विशेष समुदाय को लक्षित नहीं किया जा सकता है। हमें एक ऐसे राष्ट्र के भविष्य के बारे में देखना चाहिए, जो सामंजस्यपूर्ण और विविधतापूर्ण हो। हम राष्ट्रीय सुरक्षा को मान्यता देते हैं, लेकिन हमें व्यक्तिगत सम्मान भी करना चाहिए।”
 
लेकिन जस्टिस चंद्रचूड़ जिस ‘समुदाय’ को निशाना ना बनाए जाने को लेकर संदेश देना चाह रहे थे उन्होंने उसका नाम तक नहीं लिया। यानी इसका अर्थ यह लगाया जा सकता है कि मीडिया में बैठे हुए प्रोपेगेंडा प्रतिनिधि बीबीसी, शेखर गुप्ता का ‘दी प्रिंट’, दी वायर, एनडीटीवी और ऐसे ही न जाने कितने ही हिन्दूफोबिया से ग्रसित पत्रकारिता के समुदाय विशेषों को हिन्दुओं और उनकी आस्था को निशाना बनाने के बारे में सोचना चाहिए।
 
जिस तरह का बर्ताव मीडिया का यह गिरोह हिन्दू समुदाय से करता आया है, यह कहा जा सकता है कि जस्टिस चंद्रचूड़ ने हिन्दूफोबिक चैनलों को इशारा किया है कि उनके द्वारा हिन्दुओं की आस्था पर आक्रमण भविष्य के भारत के लिए खतरा है और न्यायपालिका उसे बचाने के लिए प्रतिबद्ध है।
 
वास्तव में, हमने ऐसे अनगिनत उदाहरण देखे, जब किसी दूसरे समुदाय विशेष द्वारा किए गए अपराधों को भ्रामक तरीके से हिन्दुओं द्वारा किए जाने वाले अपराध साबित करने के प्रयास किए गए। हिन्दुओं की आस्था को लगातार खास तरह के चैनलों और पोर्टलों द्वारा नीचा दिखाया जाता रहा है। जस्टिस चंद्रचूड द्वारा दिए गए इस संदेश के बाद तो अब यही लगता है कि अब किसी रेपिस्ट ‘असलम’ को ‘बाबा’ लिख कर, कार्टून में भगवा पहनाने वालों की खैर नहीं।
 
शेखर गुप्ता के दी प्रिंट ने पिछले साल ही एक लेख प्रकाशित किया था जिसमें दावा किया गया था कि दिल्ली में मौजूद हनुमान जी की विशाल प्रतिमा से समुदाय विशेष के लोगों में दहशत का माहौल है।
 
इससे पहले सभी लोगों ने सिर्फ यही सुना था कि हनुमान जी का नाम सिर्फ भूत-पिशाचों में ही दहशत पैदा करता है, लेकिन दी प्रिंट के इस लेख में खुलासा किया गया था कि यह भूत-पिशाच कोई और नहीं बल्कि समुदाय विशेष के लोग थे।
 
यह एक ऐसा ही प्रमुख उदाहरण था जब पत्रकारिता के समुदाय विशेष द्वारा हिन्दू प्रतीकों को अपमानित करने का नैरेटिव खुलकर चलाया गया। तब शायद ही किसी हिन्दू ने शेखर गुप्ता के खिलाफ कोर्ट जाने का फैसला लिया होगा। यही हिन्दू धर्म की सहिष्णुता भी है।
 
इंडिया टुडे ने एक ऐसी ही खबर प्रकाशित करते हुए समुदाय विशेष के लोगों में बाल विवाह को लेकर सवाल उठाए गए थे। लेकिन शातिर तरीके से इंडिया टुडे ने अज्ञात कारणों से इस लेख में किसी समुदाय विशेष की बच्ची की तस्वीर के बजाए एक हिन्दू बच्ची की तस्वीर इस्तेमाल की थी। शायद इंडिया टुडे जानता था कि उसे किन लोगों से खतरा मोल नहीं लेना है। इंडिया टुडे यह तक कह चुका है कि श्रीराम नाम के नारों से माहौल दूषित हुआ है।
 
ऐसे ही कई उदाहरण हैं जब मीडिया में हिन्दू धर्म को निशाना बनाते हुए इसे अपमानित और इसके दुष्प्रचार का एजेंडा चलाया जाता है। इन्हीं में से सबसे प्रचलित एजेंडा क्राइम रिपोर्ट्स में अपनाया जाता है। जब पत्रकारिता के समुदाय विशेष द्वारा किसी ढोंगी को, जो कि अक्सर कोई अब्दुल या असलम होता है, भूत-प्रेत या फिर जिन-जिन्नात भगाने के लिए महिलाओं का शोषण या उन पर अत्याचार करते हुए पकड़ा जाता है लेकिन मीडिया का यह गिरोह इसे ‘तांत्रिक’ ‘ओझा‘ या फिर NDTV जैसे समूह ‘बाबा’ लिखकर हिन्दू धर्म को अपमानित करता है और कोई ‘आह’ तक नहीं करता।
 
खैर, जस्टिस चंद्रचूड़ का यह सन्देश वास्तव में व्यापक है। मीडिया यदि वास्तव में किसी एक समुदाय के खिलाफ एजेंडा चलाने से बाज आए, तो हिन्दू धर्म मीडिया के इस गिरोह का बहुत आभारी रहेगा।
 
आज तक मीडिया “भगवा आतंकवाद” के नाम से हिंदुओं को बदनाम किया, हिंदू देवी-देवताओं, हिंदू साधु-संतों, हिंदू मंदिरों, हिंदू त्यौहार का खूब अपमान किया अंतराष्ट्रीय स्तर पर हिंदू संस्कृति को बदनाम किया अब इस संदेश से मीडिया को रुकना चाहिए नही तो सुप्रीम कोर्ट को इस पर सख्त कार्यवाही करनी चाहिए सिर्फ एकतरफ फैसले से तो नुकसान ही होगा।
 
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