शंकराचार्य की तपोभूमि जोशीमठ का हुआ ये क्या हाल हजारों लोगों की जान खतरे में

16 January 2023

azaadbharat.org

🚩उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित शहर जोशीमठ इन दिनों काफी चर्चा में हैं। समुद्रतल से 6000 फीट की ऊँचाई पर स्थित यह धार्मिक शहर आज दरकते जमीन, भूस्खलन और घरों में हो रहे दरारों की वजह से चर्चा में है। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि क्या यह गौरवशाली शहर हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा। क्या शंकराचार्य की तपोभूमि रहा यह ऐतिहासिक शहर अपने समाप्त होने की बाट जोह रहा है ? इस रिपोर्ट में हम ऐसे सभी सवालों का जवाब लेकर आए हैं।

🚩जोशीमठ न सिर्फ अपने धार्मिक महत्व के लिए बल्कि प्राकृतिक सुन्दरता के लिए भी प्रसिद्ध है। पहले हम इस शहर के धार्मिक महत्व के बारे में बात करते हैं। जोशीमठ की भूमि आदि शंकराचार्य के तप से पवित्र है। मान्यता है कि शंकराचार्य को यहीं शहतूत के पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। माना जाता है कि देश के विभिन्न कोनों में तीन और मठों की स्थापना से पहले यहीं उन्होंने प्रथम मठ की स्थापना की, इसलिए पहले इसका नाम ज्योतिर्मठ पड़ा था। फिर लोग आम बोलचाल की भाषा में इसे जोशीमठ के नाम से पुकारने लगे। जोशीमठ नरसिंह मंदिर के लिए भी प्रसिद्ध है। जोशीमठ कर्णप्रयाग बद्रीनाथ मार्ग पर बद्रीनाथ से 30 किमी पहले और कर्णप्रयाग से 72 किमी की दूरी पर मौजूद है।

🚩यह शहर चर्चा में क्यों आ गया

🚩जोशीमठ में लोग इन दिनों डर के साए में जी रहे हैं। करीबन 22 हजार लोगों की जान खतरे में। वजह है यहाँ हो रहा भूस्खलन और घरों में पड़ने वाले दरार। सोशल मीडिया पर ऐसे कई फोटोज देखे जा सकते हैं जहाँ साफ़ दिख रहा है कि कई घरों में दरार आ गई है। वहीं सड़क बीच में से फट गई है। इन घटनाओं को लेकर लोग काफी डर गए हैं और उन्हें अपना भविष्य अनिश्चित दिखाई दे रहा है। ऐसा नहीं है कि यहाँ भूस्खलन और जमीन धँसने की घटना पहली बार हुई है लेकिन 500 से ज्यादा घरों में दरार आने के बाद स्थिति चिंताजनक हो गई है। लोग इस कड़ाके की ठंड में अपना घर छोड़ कहीं और पनाह लेने को मजबूर हैं। राज्य सरकार ने भी लोगों के लिए अस्थायी आवासों का इंतजाम किया है।

🚩जोशीमठ में दरकती जमीन की वजह से सडकों व् अन्य जगहों पर दरार

🚩आखिर क्यों हो रही हैं इस तरह की घटनाएँ
ऐसा नहीं है कि जोशीमठ में इस तरह के खतरों के बारे में पहले आगाह नहीं किया गया था। वर्ष 1976 में गढ़वाल के तत्कालीन कमिश्नर एससी मिश्रा की अध्यक्षता में मिश्रा समिति ने जोशीमठ की स्तिथि को लेकर रिपोर्ट सौंपी थी। उन्होंने उस समय यहाँ की भौगोलिक स्थिति के चलते इस तरह के खतरों के बारे में बताया था। रिपोर्ट में सलाह दी गई थी कि कि यहाँ अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाएँ, पत्थरों को ब्लास्ट करके न हटाया जाए इत्यादि। इसके साथ आज जिस पक्के ड्रेनेज सिस्टम की माँग की जा रही है, उसकी भी सलाह मिश्रा समिति दे चुका था। इन हालातों के बाद तो अब यही समझ आता है कि सरकारों ने इसपर कभी ध्यान ही नहीं दिया।

🚩हालाँकि सिर्फ एक कारण को ही आज जोशीमठ की स्थिति के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। कई चीजें स्वभाविक भी होतीं हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, वरिष्ठ भूगर्भ वैज्ञानिक प्रोफेसर एसपी सती ने कहा कि जोशीमठ का पूरा इलाका मोरेन के ऊपर बसा है। मोरेन वो जगह होता है जो ग्लेशियर और ऊपर हजारों टन मिट्टी से मिलकर बना होता है। इस भौगोलिक घटना में कालांतर में मिट्टी पत्थर बन जाता है लेकिन नीचे का ग्लेशियर एक खास समय बाद पिघलने लगता है। क्योंकि जोशीमठ मोरेन पर स्थित है तो ग्लेशियर धीरे-धीरे पिघलेगा ही। हालाँकि उन्होंने कहा कि यहाँ होने वाले विकास कार्यों ने इन घटनाओं की रफ्तार और बढ़ा दी है।

🚩वहीं कई वैज्ञानिक इस तरह की घटनाओं के लिए अलकनंदा और धौलीगंगा नदी को भी जिम्मेदार ठहराया है। इस थ्योरी में विश्वास रखने वाले वैज्ञानिकों का मानना है कि जोशीमठ पहले से ही हिमालय के बेहद कमजोर क्षेत्र में बसा है और ऐसे में अलकनंदा और धौलीगंगा का पानी यहाँ की मिट्टी को काट रहा है। दूसरी और छोटे-छोटे भूकंप भी यहाँ की स्थिति और भयावह कर रहे हैं। वहीं कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि ‘तपोवन जलविद्युत परियोजना’ से भी काफी नुकसान हो रहा है। 2021 में आई बाढ़ से इस परियोजना को खासा नुकसान पहुँचा और जोशीमठ में जमीन के नीचे इसके 16 किलोमीटर सुरंग में भरा पानी अब ऊपर की ओर आ रहा है। इससे जमीन कमजोर हो रही है और इस तरह की घटनाएँ हो रही हैं।

🚩तो क्या समाप्त हो जाएगा जोशीमठ का अस्तित्व

🚩ऐसा नहीं है कि जोशीमठ एकदम से समाप्त हो जाएगा। लेकिन इस बात में पूरी सच्चाई है कि यह पवित्र शहर खतरे के मुहाने पर खड़ा है। जोशीमठ की भौगोलिक स्थिति ही ऐसी है कि यह जगह अब लंबे समय तक स्थिर नहीं रह सकता। लेकिन जैसा कि वैज्ञानिकों का मानना है कि भगौलिक स्थिति के अलावा यहाँ के विकास कार्यों की वजह से भी इस क्षेत्र की स्थिति ऐसी हो गई है कि लोगों को अपना घर-बार छोड़कर जाना पड़ रहा है। जरूरत है सरकार, भूगर्व वैज्ञानिक और एक्सपर्ट इस क्षेत्र की समस्या को गंभीरता से लें, हो सकता है सबके सामूहिक प्रयास से कुछ सकारात्मक परिणाम मिले और यहाँ के निवासी राहत की साँस लें सकें।

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