वेद–पुराणों में वर्णित भारतीय साम्राज्यों की अनंत गौरवगाथा

15 November 2025

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वेद–पुराणों में वर्णित भारतीय साम्राज्यों की अनंत गौरवगाथा

सनातन भारत का दिव्य साम्राज्य-चक्र: आदि से अनंत तक

भारत केवल भूमि नहीं—धर्म, अध्यात्म, ज्ञान, तप, त्याग और शौर्य का वह केंद्र है जो प्रलय और सृष्टि के अनगिनत चक्रों में भी अक्षुण्ण रहा है।
वेदों, उपनिषदों, महाभारत, रामायण, स्मृतियों और अनेकों पुराणों में वर्णित यह सत्य है कि “भारतं तु धर्मस्य जन्मभूमि”
भारत स्वयं धर्म की जन्मभूमि है।

धर्म का यह फूल कभी मुरझाया नहीं—और इस फूल को सींचने का कार्य भारत के अनगिनत दिव्य साम्राज्यों ने किया है।

आइए इस अकल्पनीय लंबे, वैदिक व पुराणाधारित कालक्रम की अद्भुत यात्रा पर चलें।

सृष्टि के आदिकाल में भारत: मनु और इक्ष्वाकु का प्रथम शासन

ब्राह्मण ग्रंथ, विष्णु पुराण, भागवत पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण आदि में वर्णित है कि सृष्टि के आरंभ में प्रथम राजा थे—
स्वायंभुव मनु
उनके पुत्र उत्तानपाद, प्रियव्रत
और आगे चलकर वैवस्वत मनु

इसी वंश में इक्ष्वाकु का जन्म हुआ—और इन्हीं से भारत में पहला दीर्घ, संगठित, धर्म-आधारित साम्राज्य प्रारम्भ माना जाता है।
इक्ष्वाकु वंश को ही पुराणों में सूर्यवंश कहा गया है, जिसमें आगे चलकर—
भगवान श्रीराम का जन्म हुआ।

यह वही साम्राज्य था जिसमें—
राजधर्म सर्वोपरि
प्रजा का हित परम
सत्य और नियम का पालन निष्ठा से किया जाता

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का सूर्यवंशी साम्राज्य

रामायण केवल कथा नहीं—आदर्श शासन का शाश्वत मॉडल है। वाल्मीकि रामायण, अध्यात्म रामायण और रामचरितमानस में वर्णित रामराज्य की विशेषताएँ:
न्याय आधारित शासन
सर्वसमावेशी नीति
अपराधियों पर कठोरता
स्त्री, बालक, वृद्ध, सेवक—सभी की समान रक्षा
युद्धशास्त्र, धनुर्वेद, आयुर्वेद, ज्योतिष का उत्कर्ष

रामराज्य को ही पुराणों में धर्म का भौतिक रूप , और स्वर्ग का पृथ्वी पर अवतरण कहा गया।

लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न—चारों भाइयों के अधीन चार उप-राज्य थे।
लव–कुश आगे चलकर महान सूर्यवंशी सम्राट बने।

चंद्रवंश की महिमा: ययाति से लेकर कुरु, पांडव और श्रीकृष्ण तक

पुराणों में दो महान वंशों का विशेष उल्लेख है—
सूर्यवंश और चंद्रवंश।

चंद्रवंश में उत्पन्न हुए:
ययाति
पुरु
दुष्यंत
भरत (जिनके नाम पर भारतवर्ष)
हस्तिनापुर के पितामह भीष्म
पांडव
कौरव
भगवान श्रीकृष्ण

महाभारत काल भारत का सबसे व्यापक राजनीतिक व दार्शनिक युग था।

श्रीकृष्ण की “राजनीतिशास्त्र”, “दानधर्म”, “न्याय”, “आत्मज्ञान” और गीता का उपदेश—आज भी राजनेताओं व राष्ट्रों के लिए मार्गदर्शक है।

वेदों में वर्णित भारत: जनपदों से महाजनपदों तक

ऋग्वेद, अथर्ववेद और ब्राह्मणों में भारत के प्राचीन राजनैतिक ढाँचों का उल्लेख है:
✴️कुरु
✴️पांचाल
✴️विदेह
✴️अयोध्या
✴️गांधार
✴️काम्बोज

बाद में यही महाजनपद बने:
मगध
वत्स
अवन्ति
कश्मीर
अंग
कोसल

इन जनपदों के पास—

उन्नत कृषि
अग्निवेदी के अनुरूप प्रशासन
सभायें, समितियाँ
सैन्य व्यवस्था
व्यापार मार्ग

यह सब वेदों में मिलते हुए वैदिक भारत के साम्राज्यों के वैज्ञानिक स्वरूप को दर्शाता है।

पुराणों में वर्णित महान सम्राट

विष्णु पुराण, वायु पुराण और ब्रह्माण्ड पुराण में अनेक सम्राटों का वर्णन है:

सम्राट भरत

संपूर्ण भारत के प्रथम एकीकर्ता
असाधारण योग्यता वाले धर्मप्रिय राजा

सम्राट रघु

रघुवंश की महिमा का विस्तार
“रघुकुल रीति सदा चली आई” इन्हीं पर आधारित

सम्राट दिलीप

गौ-रक्षा, धर्मरक्षा, प्रजावत्सलता

सम्राट विक्रमादित्य

न्यायप्रिय, दयालु, मेंढ़क न्याय और सिंहासन-बत्तीसी की परंपरा

इन सम्राटों के कारण भारत धर्म–नीति, शौर्य और दानशीलता में अग्रगण्य रहा।

महाभारत के बाद भारत का पुनर्निर्माण: जनमेजय से मौर्यों तक

युद्ध के बाद:

परीक्षित
जनमेजय
शौनकादि ऋषियों का पुनर्वेद-स्थापन
युधिष्ठिर के वंशजों द्वारा राज्य पुनर्गठन

इसी पुनर्जागरण से आगे जाकर नंद वंश और फिर मौर्य साम्राज्य की स्थापना हुई।

चाणक्य–चन्द्रगुप्त मौर्य और अशोक का युग—

✴️वेद पर आधारित न्याय व्यवस्था
✴️गुप्तचर तंत्र
✴️विशाल सेना
✴️उत्तम सड़कों, व्यापार मार्गों
✴️धातु विज्ञान
✴️वन व पशु संरक्षण का स्वर्ण युग था।

पुराणसम्मत “चक्रवर्ती” सम्राट: भारत की राजकीय परंपरा

पुराणों में १२ चक्रवर्ती सम्राटों का उल्लेख है, जिनमें:
मन्दाता
हरिश्चंद्र
सगर
रघु
अशोक (चक्रवर्ती समान)
विक्रमादित्य
युधिष्ठिर

चक्रवर्ती वह होता है
“जिसका चक्र पृथ्वी पर अविराम घूमें और जिसका शासन धर्म के अनुरूप हो।”

भारत ऐसे अद्भुत सम्राटों की परंपरा का देश रहा है।

देव–दानव युद्धों का भूगोल: भारत का दिव्य महा-नाटक

पुराणों में भारत को देव-शक्ति का मुख्य आधार बताया गया:

हिमालय—देवताओं का निवास
गंगा—स्वर्ग से लाई गई दिव्य धारा
काशी—विश्वनाथ की कालातीत राजधानी
अयोध्या, मथुरा, द्वारिका—धर्म प्रत्यक्ष रूप में

देव–असुर युद्धों में भारत की भौगोलिक संरचना , नदियों का प्रवाह, पर्वतों की स्थिति, और समुद्रों की सीमा का वर्णन मिलता है।

यही संकेत देता है कि भारत के साम्राज्य अध्यात्म व भौतिक शक्ति दोनों में अग्रणी थे।

दक्षिण भारत: पुराणों से इतिहास तक

पुराणों में पहाड़ों, नदियों और वन्यप्रदेशों के वर्णन दक्षिण भारत के दिव्य साम्राज्यों से जुड़ते हैं:
चोल —अग्नि तत्त्व, समुद्र-नौकायन
पल्लव—शिव-भक्ति, कला
पाण्ड्य—संगम साहित्य
चेरा—वनस्पति, आयुर्वेद

इन साम्राज्यों के मंदिर—जैसे बृहदीश्वर, कन्याकुमारी, तिरुपति—सभी पुराणिक संस्कृत परंपरा से उत्पन्न हैं।

हिमालय से समुद्र तक: भारत के राज्यों की आध्यात्मिक संरचना

वेद और पुराण पूरे भारत को एक “धार्मिक राष्ट्र-तंत्र” में जोड़ते हैं:

उत्तर – शिव
दक्षिण – स्कंद
पूर्व – शक्ति
पश्चिम – सूर्य
मध्य – विष्णु

इसीलिए भारत के साम्राज्य देव-संस्कृति पर आधारित थे।
राज्य धर्म, अध्यात्म, तपस् और ऋषि-परंपरा के सहारे चलते थे।

भारत “सोने की चिड़िया” क्यों था? (वेद–पुराणोन्मुख उत्तर)

क्योंकि—

प्रकृति का संसाधन अपार
विज्ञान का विकास (धनुर्वेद, आयुर्वेद, वास्तु, ज्योतिष, योग)
कृषि व पशुपालन का सुविकसित ज्ञान
गुरु–शिष्य परंपरा
आध्यात्मिक और नैतिक जीवनशैली
न्यायमूलक शासन

वेद–पुराणों का भारत धन, धर्म और विज्ञान—तीनों का समन्वय था।

निष्कर्ष: भारतीय साम्राज्यों की महिमा अनंत है

वेद, पुराण, रामायण, महाभारत, स्मृतियाँ—इन सभी का सार यही कहता है कि:
भारत का उत्थान धर्म से , भारत की समृद्धि सत्य से और भारत की शक्ति आत्मज्ञान से उत्पन्न होती है।

भारत का इतिहास केवल राजनीति नहीं— यह अध्यात्म और आदर्शों से निर्मित “देवीय साम्राज्यों” की अमर कथा है।

आज भी यदि भारत को महान बनाना है तो उसी वेद–पुराण आधारित धर्मनीति को अपनाना होगा।

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