22 December 2025
🧑🏻वीर बाल दिवस (26 दिसंबर): चार साहिबज़ादों का इतिहास, संघर्ष और अमर बलिदान
🇮🇳भारत का इतिहास केवल राजाओं और साम्राज्यों की गाथाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह धर्म, सत्य, आत्मसम्मान और बलिदान के लिए अडिग खड़े होने वाले असंख्य वीरों की अमर कहानी है। इन्हीं गाथाओं में एक ऐसा स्वर्णिम अध्याय है जो मानव इतिहास में साहस, त्याग और धर्मनिष्ठा की चरम सीमा को उजागर करता है—सिखों के दसवें गुरु, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के चार साहिबज़ादों का बलिदान। इन चार बाल-वीरों की स्मृति में प्रतिवर्ष 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस मनाया जाता है, जो न केवल स्मरण का माध्यम है बल्कि चरित्र निर्माण, नैतिक साहस और राष्ट्रधर्म की जीवंत शिक्षा का प्रतीक भी है।
🧑🏻वीर बाल दिवस की ऐतिहासिक घोषणा
भारत सरकार ने वर्ष 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के माध्यम से 26 दिसंबर को प्रतिवर्ष वीर बाल दिवस के रूप में चिह्नित किया। यह तिथि विशेष रूप से चुनी गई क्योंकि 26 दिसंबर 1705 को गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे पुत्रों—साहिबज़ादा जोरावर सिंह (लगभग 9 वर्ष) और साहिबज़ादा फतेह सिंह (लगभग 6-7 वर्ष)—ने सरहिंद के नवाब वज़ीर खान के अत्याचारों के सामने झुकने से साफ इंकार करते हुए अपना अमर बलिदान दिया। इस दिवस के प्रमुख उद्देश्य हैं:
🔅बच्चों और युवाओं को भारत के वीर इतिहास से जोड़ना तथा प्रेरित करना।
🔅नैतिक साहस, धर्मनिष्ठा और सत्य के प्रति अटल प्रतिबद्धता की शिक्षा देना।
🔅यह संदेश प्रसारित करना कि वीरता उम्र की मोहताज नहीं, बल्कि चरित्र और संकल्प की उपज है।
🚩17वीं शताब्दी का भारत: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भारत मुग़ल शासन के चंगुल में था, जहाँ धार्मिक असहिष्णुता, जबरन धर्मांतरण और जनता पर अत्याचार चरम पर पहुँच चुके थे। ऐसी विषम परिस्थितियों में गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज ने अन्याय के विरुद्ध सशक्त संघर्ष का मार्ग अपनाया। 1699 में उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की, जिसका मूल मंत्र था—“सत्य के लिए जीना और धर्म की रक्षा हेतु आवश्यकता पड़ने पर प्राण न्योछावर करना।” यही मूल्य उनके चारों साहिबज़ादों के जीवन और बलिदान में जीवंत रूप से प्रतिबिंबित होते हैं।
🧑🏻चार साहिबज़ादों का जीवन और संस्कार
गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने पुत्रों को राजकुमारों की भाँति नहीं, अपितु धर्मयोद्धाओं के रूप में पाला। उन्हें बाल्यावस्था से ही वेद-पुराण, गुरबाणी, शस्त्र विद्या, युद्ध कौशल के साथ-साथ सत्य, करुणा, निर्भीकता और अन्याय के प्रति अडिगता का संस्कार दिया गया।
🧑🏻 साहिबज़ादा अजीत सिंह जी: शौर्य और नेतृत्व का प्रतीक
🔅जन्म : 26 जनवरी 1687, पावंटा साहिब।
🔅बलिदान की आयु : लगभग 18 वर्ष।
साहिबज़ादा अजीत सिंह जी बचपन से असाधारण साहसी और कुशल नेता सिद्ध हुए। आनंदपुर साहिब की रक्षा में उन्होंने अनेक युद्ध लड़े। 1705 के चमकौर युद्ध में मुग़ल सेना के घेराव के दौरान गुरु जी के पास मात्र 40 सिख शिष्य बचे थे। उन्होंने स्वयं युद्धभूमि में उतरने की अनुमति माँगी और सीमित सैनिकों संग बार-बार शत्रु पर धावा बोलकर भारी क्षति पहुँचाई, अंततः वीरगति प्राप्त की।
🧑🏻साहिबज़ादा जुझार सिंह जी: बाल वीरता का अद्भुत उदाहरण
🔅जन्म: 1691।
🔅बलिदान की आयु : लगभग 14 वर्ष।
स्वभाव से शांत किंतु साहस में अद्वितीय, साहिबज़ादा जुझार सिंह जी ने बड़े भाई के बलिदान के पश्चात् युद्ध में प्रवेश की इच्छा जताई। इतनी कम उम्र में उन्होंने शत्रु सेना के बीच घुसकर निर्भीक युद्ध किया और धर्म रक्षा हेतु प्राण त्यागे। उनका जीवन प्रमाणित करता है कि वीरता संस्कारों से जन्म लेती है, अनुभव से नहीं।
🧑🏻साहिबज़ादा जोरावर सिंह जी: अडिग धर्मनिष्ठा
🔅जन्म: 1696।
🔅बलिदान की आयु: लगभग 9 वर्ष।
आनंदपुर छोड़ते समय वे अपनी दादी माता गुजरी जी संग बिछड़ गए। गंगू नामक सेवक के विश्वासघात से सरहिंद में पकड़े गए। वहाँ भय, लालच और दबाव के बावजूद उन्होंने धर्म परिवर्तन से स्पष्ट इंकार किया।
🧑🏻साहिबज़ादा फतेह सिंह जी: नन्हा वीर, महान संकल्प
🔅जन्म: 1699।
🔅बलिदान की आयु: लगभग 6-7 वर्ष।
अल्पायु में भी बड़े भाई संग अटल खड़े रहे, धर्म त्यागने से इनकार किया।
🚩26 दिसंबर 1705: अमर बलिदान की करुण गाथा
छोटे साहिबज़ादों को सरहिंद में जीवित दीवार में चुनवा दिया गया—मानव इतिहास का सबसे क्रूर बाल बलिदान। इस घटना ने माता गुजरी जी को भी प्राण त्यागने के लिए विवश कर दिया। यह नैतिक साहस और धर्मनिष्ठा का सर्वोच्च प्रतीक है।
🧑🏻वीर बाल दिवस का वर्तमान महत्व
आज के भौतिकवादी युग में, जहाँ मूल्य क्षीण हो रहे हैं और युवा दिशाहीन हैं, यह दिवस सिखाता है—सत्य के लिए खड़ा होना, अन्याय से समझौता न करना तथा आत्मसम्मान को सर्वोपरि रखना। विद्यालयों में निबंध-क्विज़, गुरुद्वारों में कीर्तन-अरदास तथा सरकारी कार्यक्रमों में बाल पुरस्कार वितरण के माध्यम से इसे मनाया जाता है।
🚩निष्कर्ष: भविष्य का मार्गदर्शन
वीर बाल दिवस अतीत की स्मृति मात्र नहीं, अपितु भविष्य निर्माण का शाश्वत स्वर है। चार साहिबज़ादों ने सिद्ध किया कि धर्म, सत्य और स्वाभिमान की रक्षा का बलिदान ही सच्ची विजय है। 26 दिसंबर भारत की आत्मा का अमर संदेश है।
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