रामचरितमानस मनुष्य को क्या देती है ?

10 February 2023

azaadbharat.org

🚩पाकिस्तान जैसे मुस्लिम बाहुल्य देशों में ईशनिंदा करने से फांसी तक की सजा दी जाती है लेकिन भारत हिंदु बाहुल्य देश है फिर भी हिंदुओं के अराध्य देवी, देवताओं, मंदिरों, धर्म ग्रंथो और साधु संतो का आए दिन अपमान किया जा रहा है फिर भी उनपर कोई कार्यवाही नही की जाती है क्योंकि हिंदुओं ने अपनी संस्कृति से सीखा है की प्राणी मात्र का हित करना, करुणा करना, सभी पर दया करना इसका फायदा उठाकर आसुरी स्वभाव के लोग हिंदुओं की अस्थाओ पर प्रहार करते रहते है।

🚩रामचारिस मानस की महिमा….
महामोह महिषेसु बिसाला।* *रामकथा कालिका कराला ।।
रामकथा ससि किरन समाना।* *संत चकोर करहिं जेहि पाना।।

🚩जीव महामोह में पड़ा हुआ है । यह मोह विशालकाय महिषासुर की तरह है और श्रीराम कथा इस राक्षस का वध करन के लिये काली देवी के समान समर्थ और शक्तिशाली हैं । अपने स्वरूप का ज्ञान न होना और उसके स्थान पर शरीर आदि से तादात्म्य कर लेना ही मोह है । यह मोह आक्रमण करने वाले व्यक्ति को निरस्त कर देता है और रूप बदल-बदल कर उत्पन्न होता रहता है । इस मोह को दूर करने का सबसे सुन्दर उपाय भगवान की कथा का एकाग्रतापूर्वक नित्य श्रवण है। कथा सुनते समय यह भाव सतत बनाये रखना चाहिये कि कथा सुनने से हमारा मोह दूर हो जायेगा।

🚩वेदान्त का एक ग्रन्थ ‘पंचदशी’ है। इसके आरम्भ में ऋषि कहते हैं कि मोह तो एक मगरमच्छ है जिसने जीव के पैर को मजबूती से अपने दाँतों में जकड़ रखा है । जीव व्याकुल है और छुटकारा पाने के लिये तड़प रहा है । गुरू की कृपा से वेदान्त का ज्ञान उस मोह रूपी मगरमच्छ को नष्ट करके जीव को मुक्त कर देता है । भक्ति ग्रन्थ श्री रामचरितमानस का भी यही प्रयोजन है ।

🚩भक्त लोग राम कथा को बड़े प्रेम के साथ सुनते हैं । यह कथा चन्द्रमा की शीतल मधुर किरणों के समान है और भक्त चकोर पक्षी के समान । जैसे चकोर को चन्द्रमा अति प्रिय लगता है और चन्द्रमा की किरणें शरीर पर पड़ते ही नाचने लगता है, ठीक उसी प्रकार भक्तों को भी श्री राम कथा बहुत प्रिय लगती है । वे निरन्तर इसको सुनते हैं । राम कथा तो भव रोग (मोह) को दूर करने की एक औषधि है जिसका पान हमेशा करते रहना चाहिये।

🚩तुलसीदास जी राम कथा की महिमा बताते हुये कहते हैं।

🚩रामचरितमानस एहि नामा। सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
मन करि बिषय अनल बन जरई। होई सुखी जौं एहिं सर परई ।।
रामचरितमानस मुनि भावन। बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।

🚩वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम ‘श्री रामचरितमानस’ इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।

🚩श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।

🚩मानस के दो अर्थ हैं – एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन्द्रियग्राह्य है, रामचरित सूक्ष्म है इसलिये केवल मानसिक दृष्टि से ही अनुभव किया जा सकता है ।

🚩भगवान का वर्णन निर्गुण रूप में भी होता और सगुण रूप में भी । जब साधु सगुण रूप में भगवान का वर्णन करते हैं तो वो चित्त को शुद्ध करता है । चित्त शुद्ध होने पर ही साधक निर्गुण ब्रह्म की बातें समझने का अधिकारी बनता है । भगवान की सगुण लीला हृदय की मलिनता दूर करके उसे निर्मल बना देती है । जैसे बरसात में पानी बरसने से भूमि की गन्दगी बह जाती है और भूमि स्वच्छ हो जाती है, ऐसे ही भगवान की कथा जब हृदय में पहुँचती है तो चित्त के मल (काम, क्रोधादि विकार) दूर हो जाते हैं। श्रीराम कथा रूपी वर्षा की महिमा बतलाते हुये श्री तुलसीदास जी कहते हैं –

प्रेम भगति जो बरनि न जाई । सोइ मधुरता ससीतलताई ।।
सो जल सुकृत सालि हित होई । राम भगत जन जीवन सोई ।।
मेघा महि गत सो जल पावन । सकिलि श्रवन मग चलेउ सुहावन ।।

🚩इस कथा में जो वर्णनातीत प्रेम व भक्ति है वही इसकी मधुरता है और कथा सुनकर जो हृदय के विक्षेप दूर होकर हृदय में शांति आयेगी वही मानो इस कथा रूपी वर्षा के जल की शीतलता है । जैसे खेतों पर वर्षा का जल बरसता है तो धान की फसल लहलहाने लगती है और अच्छी उपज होती है, वैसे ही कथा श्रवण से पुण्य रूपी धान लहलहाने लगती है । व्यक्ति ने पूर्व जन्मों में पाप पुण्य सभी किये होंगे परन्तु भगवान की कथा सुनने से पुण्य बलिष्ठ होकर अपना प्रभाव दिखाने लगते हैं । इस प्रकार से यह कथा मंगलकारी है । भगवान के भक्तों के लिये यह कथा जीवन दायनी शक्ति है ।

🚩भगवान की कथा रूपी वर्षा का पवित्र जल कानों के रास्ते होकर हृदय में पहुँचकर सद्बुद्धि रूपी गले में एकत्र हो जाता है । वर्षा का जल जब बहकर गले में पहुँचता है तो साथ में मिट्टी भी पहुँचती है । प्रारंभ में जल मैला होता है किन्तु जैसे-जैसे जल थिराता है मिट्टी नीचे बैठती जाती है और जल स्वच्छ दिखलाई पड़ने लगता है । इसी प्रकार जब कथा शुरू-शुरू में सुनते हैं तो लोगों के मानसिक विकार भी उसमें मिल जाते हैं । यदि कुछ काल तक कथा चित्त में बनी रहे तो शुद्ध स्वच्छ हो जाती है। इसलिये भगवान की कथा सुनकर मनन के द्वारा चित्त में धारण करो । कालांतर में वह कल्याणकारी सिद्ध होगी और चित्त में स्वच्छता, शाँति व प्रसन्नता आयेगी । त्रिताप दूर होंगे तथा भक्ति व प्रेम से हृदय परिपूर्ण हो जायेगा।

🚩जो प्राणिमात्र का कल्याण करने का सामर्थ रखता है ऐसे पवित्र ग्रंथ श्री रामचरितमानसके मानस के बारे में गलत बोलना भी भयंकर पाप है इसलिए इस पवित्र ग्रंथ का जितना आदर करो उतना कम है क्योंकि सही जीवन जीने की राह यही ग्रंथ देता है और मरने के बाद मोक्ष तक की यात्रा करवा देता हैं।

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