महिला सुरक्षा कानून का दुरुपयोग चरम सीमा पर…

 माना कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए राष्ट्र व समाजहित में बलात्कार कानून की अत्यंत आवश्यकता है पर उसका उचित प्रयोग और पालन भी आवश्यक है। परंतु इस कानून में अनेकों अपभ्रंश है जिसे नकारा नहीं जा सकता क्योंकि ऐसे तथ्य भी सामने आ रहे हैं कि इस कानून का दुरुपयोग कर कई निर्दोष, सामाजिक, प्रतिष्ठासम्पन्न व्यक्तियों या सामान्य नागरिकों पर झूठे आरोप दर्ज करायें जा रहे हैं और आरोप मात्र से बिना किसी सबूत या जांच के जेल भेजने की कार्रवाई भी हो रही है। ऐसे कृत्य में असामाजिक तत्वों की संलिप्तता है जो रंजिशवश, बदले की भावना से या पैसे ऐंठने के लिए किसी निर्दोष पर झूठे आरोप लगाकर बेहिचक जेल की सजा दिलाने में कामयाब हो जाते हैं। किसी निर्दोष को फंसाने में इन्हें कोई न शर्म महसूस होती है और न ही आत्मग्लानि होती है। इनका एकमात्र लक्ष्य पैसा कमाना होता है।

 

 
बलात्कार कानून के अनियमितता एवं अपभ्रंशता पर स्वयं महिला जज निवेदिता शर्मा ने कहा है कि वर्तमान बलात्कार कानून में झूठे आरोपों में फंसे पुरुषों को भी बचाने का कोई प्रावधान नहीं है। और भी कई  कानून के जानकार, न्यायविद् एवं अधिवक्ताओं का मानना है कि वर्तमान बलात्कार कानून में अनेकों अनियमितताएँ हैं – यह कानून एकतरफा है।
 
किसी भी राष्ट्र में महिला एवं पुरुष समाज के अभिन्न अंग होते हैं। एक दूसरे के बिना सामाजिक विकास की कल्पना कपोल कल्पित है। महिला एवं पुरुष दोनों की अथक परिश्रम एवं योगदान से स्वस्थ, सुंदर एवं गौरवपूर्ण राष्ट्र का निर्माण होता है। यदि इस प्रकार बलात्कार कानून को एकतरफा बनाया गया है तो उसकी वजह से पुरुष वर्ग के साथ महा अन्याय एवं राष्ट्रीय विघटन की कल्पना भी कोई अतिश्योक्ति नहीं है।  कानून निर्माताओं से इस पहलू पर भूल क्यों हुआ कि जब किसी निर्दोष को बलात्कार कानून का मोहरा बनाया जाएगा तो उसके साथ उसका पूरा परिवार, रिश्तेदार सभी बिखर जाएंगे उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल हो जाएगी, उनके बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा आदि आदि…
 
इसी वर्तमान बलात्कार कानून की वजह से भारतीय संस्कृति की गरिमा की रक्षा करने वाले, देशहित में अनेकों महत्वपूर्ण योगदान देने वाले विश्व सुप्रसिद्ध संत श्री आशाराम जी बापू पर मिथ्या आरोप लगाकर उनको कारावास में डाला गया है जबकि उन्हें मेडिकल रिपोर्ट में क्लीनचिट मिली हुई है एवं उनके निर्दोषिता के अनेक प्रमाणित सबूत न्यायालय में पेश किए गए हैं फिर भी 7+ वर्ष हो गए अभी तक उन्हें उचित न्याय नही दिया जा रहा है न ही जेल से मुक्त किया जा रहा है। इसी प्रकार स्वामी नित्यानंद जी, कृपालु जी महाराज एवं नामी-अनामी कई निर्दोषों को भी मिथ्या आरोप में कानूनी यातनाएं सहनी पड़ी है। 
 
सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर भी यौन शोषण का आरोप लगा था हालांकि विशेष सेलिब्रिटी एवं राष्ट्रीय गरिमा को देखते हुए साजिश है कहकर उनका केस खारिज कर दिया गया। अब प्रश्न यह है उठता है कि जब कोई जज जैसे विशेष सेलिब्रिटी पर आरोप लगता है तो साजिश है कहकर केस खारिज कर दिया जाता है तो फिर करोड़ों लोगों को धर्म के मार्ग पर प्रशस्त कर व्यसन छुड़ाने वाले उनके जीवन में आशातीत परिवर्तन लाकर सच्चाई के मार्ग पर चलाने वाले निर्दोष संतो के मामले में न्याय व्यवस्था की उत्तरदायित्व रखने वाले अर्थात न्याय व्यवस्था संचालन करने वालों की कदाचित निष्क्रियता आखिर क्यों?
 
इन सब कारणों का अवलोकन करने से राष्ट्र की गरिमा को सुदृढ़ करने एवं राष्ट्रहितैषी सन्तों की रक्षा करने हेतु एक तथ्य सामने आ रहा है कि वर्तमान एकतरफा बलात्कार कानून पर आवश्यक संशोधन के साथ देश में पुरुष आयोग की स्थापना एकमात्र विकल्प है।
 
बसन्त कुमार मानिकपुरी 
स्थान – पाली (कोरबा)
छत्तीसगढ़
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