महाराणा प्रताप जयंती पर शत्-शत् नमन।

9 मई 2022

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🚩महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो था और लंबाई 7 ‘5” फिट थी,वे दो म्यान वाली तलवार और 80 किलो का भाला रखते थे।

🚩हल्दीघाटी युद्ध में राणा के 20,000 सैनिकों ने अकबर के 80,000 सैनिकों को भगा दिया था।

🚩महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन को काट डालते थे।

🚩अकबर महाराणा प्रताप के युद्ध कौशल से इतना घबरा गया था कि वह सपने में भी महाराणा प्रताप का नाम लेकर कांपने लगता था।

🚩महाराणा प्रताप आज भी अमरता के गौरव तथा मानवता के विजय सूर्य है। एक सच्चे शूरवीर ,महान पराक्रमी, देशभक्त ,वीर योद्धा ,मातृ भूमि के रखवाले के रूप में महाराणा प्रताप दुनिया में सदैव के लिए अमर हो गए।

🚩महाराणा प्रताप ने मुगलों को कईं बार युद्ध में हराया और हिंदुस्थान के पुरे मुगल साम्राज्य को घुटनो पर ला दिया था।

🚩दिवेर का महायुद्ध में तो महाराणा प्रताप ने बहलोल खान को घोड़े समेत 2 टुकड़ों में काट दिया था।

🚩आज भी महाराणा प्रताप का नाम असंख्य भारतीयों लिए प्रेरणास्रोत है। महाराणा प्रताप का स्वाभिमान भारत माता की पूंजी है।

🚩वे अजर अमरता के गौरव तथा मानवता के विजय सूर्य है। महाराणा प्रताप की देशभक्ति ,पत्थर की अमिट लकीर है ।

🚩ऐसे पराक्रमी भारत माँ के वीर सपूत महाराणा प्रताप को राष्ट्र का शत्- शत् नमन।

🚩महाराणा प्रताप के जीवनकाल को देखते है,तो देशभक्ति का संचार स्वाभाविक होने लगता है और आँखों में भक्ति के आँसू आ जाते है।

🚩महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया उदयपुर, मेवाड में सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा थे। उनका नाम इतिहास में वीरता, शौर्य, त्याग, पराक्रम और दृढ प्रण के लिये अमर है।

🚩महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को हुआ था। महाराणा प्रताप के पिता का नाम राणा उदयसिंह एवं माता जयवंताबाई था।

🚩 महाराणा प्रताप का बचपन भील समुदाय के साथ बिता , भीलों के साथ ही वे युद्ध कला सीखते थे , भील अपने पुत्र को कीका कहकर पुकारते है, इसलिए भील महाराणा को कीका नाम से पुकारते थे।

🚩महाराणा प्रताप के शासनकाल में सबसे रोचक तथ्य यह है कि मुगल सम्राट अकबर बिना युद्ध के प्रताप को अपने अधीन लाना चाहता था इसलिए अकबर ने प्रताप को समझाने के लिए चार राजदूत नियुक्त किए।

🚩जिसमें सर्वप्रथम सितम्बर 1572 ई. में जलाल खाँ प्रताप के खेमे में गया, इसी क्रम में मानसिंह (1573 ई. में ), भगवानदास ( सितम्बर, 1573 ई. में ) तथा राजा टोडरमल ( दिसम्बर,1573 ई. ) प्रताप को समझाने के लिए पहुँचे, लेकिन राणा प्रताप ने चारों को निराश किया, इस तरह राणा प्रताप ने मुगलों की अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया जिसके परिणामस्वरूप हल्दी घाटी का ऐतिहासिक युद्ध हुआ।

🚩हल्दीघाटी युद्ध 18 जून 1576 ईस्वी में मेवाड़ तथा मुगलों के मध्य हुआ था। इस युद्ध में मेवाड़ की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया था ।

🚩इस युद्ध में महाराणा प्रताप सिंह विजय हुए। अकबर की विशाल सेना के सामने मुट्ठीभर राजपूत कितनी देर तक टिक पाते, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ, ये युद्ध पूरे एक दिन चला ओेैर राजपूतों ने मुग़लों के छक्के छुड़ा दिया थे और सबसे बड़ी बात यह है कि युद्ध आमने सामने लड़ा गया था। महाराणा की सेना ने मुगलों की सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया था और मुगल सेना भागने लग गयी थी।

🚩जहां हल्दीघाटी का युद्ध नैतिक विजय और परीक्षण का युद्ध था, वहां दिवेर-छापली का युद्ध एक निर्णायक युद्ध बना। इसी विजय के फलस्वरूप संपूर्ण मेवाड़ पर महाराणा का अधिकार स्थापित हो गया।

🚩महाराणा प्रताप के सबसे प्रिय और प्रसिद्ध नीलवर्ण ईरानी मूल के घोड़े का नाम चेतक था। चेतक अश्व गुजरात के काठियावाड़ी व्यापारी ईरानी नस्ल के तीन घोडे चेतक,त्राटक और अटक लेकर मारवाड आया।

🚩अटक परीक्षण में काम आ गया। त्राटक महाराणा प्रताप ने उनके छोटे भाई शक्ती सिंह को दे दिया और चेतक को स्वयं रख लिया। हल्दी घाटी-(१५७६) के युद्ध में चेतक ने अपनी अद्वितीय स्वामिभक्ति, बुद्धिमत्ता एवं वीरता का परिचय दिया था। युद्ध में बुरी तरह घायल हो जाने पर भी महाराणा प्रताप को सुरक्षित रणभूमि से निकाल लाने में सफल वह एक बरसाती नाला उलांघ कर अन्ततः वीरगति को प्राप्त हुआ।

🚩हिंदी कवि श्याम नारायण पाण्डेय द्वारा रचित प्रसिद्ध महाकाव्य हल्दी घाटी में चेतक के पराक्रम एवं उसकी स्वामिभक्ति की मार्मिक कथा वर्णित हुई है। आज भी राजसमंद के हल्दी घाटी गांव में चेतक की समाधि बनी हुई है, जहाँ स्वयं प्रताप और उनके भाई शक्तिसिंह ने अपने हाथों से इस अश्व का दाह-संस्कार किया था।

🚩 एक अर्थ में हल्दीघाटी का युद्ध में राजपूतो ने रक्त का बदला दिवेर में चुकाया। दिवेर की विजय ने यह प्रमाणित कर दिया कि महाराणा का शौर्य, संकल्प और वंश गौरव अकाट्य और अमिट है, इस युद्ध ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि महाराणा के त्याग और बलिदान की भावना के नैतिक बल ने सत्तावादी नीति को परास्त किया।

🚩कर्नल टाॅड ने जहां हल्दीघाटी को ‘थर्मोपाली’ कहा है वहां के युद्ध को ‘मेरोथान’ की संज्ञा दी है।जिस प्रकार एथेन्स जैसी छोटी इकाई ने फारस की बलवती शक्ति को ‘मेरोथन’ में पराजित किया था, उसी प्रकार मेवाड़ जैसे छोटे राज्य ने मुगल राज्य के वृहत सैन्यबल को दिवेर में परास्त किया। महाराणा की दिवेर विजय की दास्तान सर्वदा हमारे देश की प्रेरणा स्रोत बनी रहेगी।

🚩मुगल शासक अकबर कभी भी महाराणा प्रताप को अपने अधीन नहीं कर पाया और जब 57 वर्ष की उम्र में 29 जनवरी, 1597 को अपनी राजधानी चावंड मे धनुष की डोर खींचते वक्त आँत में चोट लगने के कारण उनकी मृत्यु हो गई तो कहा जाता है कि अकबर इस खबर को सुनकर बहुत दुखी हुआ था।

🚩भारत के वीर सपूत महाराणा प्रताप के जीवन से हम सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए कि कैसे उन्होंने अपनी मातृ भूमि के रक्षा के लिए कितने संघर्ष किये।

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