भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ती कैसे हुई? पूजन से क्या लाभ होगा?

17 September 2022

azaadbharat.org

🚩भारतवर्ष में भगवान विश्वकर्मा की जयंती धूमधाम से मनाई जाती है,परंतु बहुत सारे लोगों का मानना है कि भगवान विश्वकर्मा सिर्फ विश्वकर्मा समाज के आराध्य देव है। कई लोग नहीं जानते कि भगवान विश्वकर्मा कौन हैं, सृष्टि के निर्माण में उनका क्या योगदान है और भगवान विश्वकर्मा की पूजा से क्या फल प्राप्त होता है।

🚩भगवान विश्वकर्मा कौन है…

🚩यदि सरल शब्दों में कहें तो भगवान विश्वकर्मा सृष्टि के पहले इंजीनियर हैं। शास्त्रों में भगवान विश्वकर्मा के महत्व को विस्तार से बताया गया है लेकिन यदि संक्षिप्त में महत्व समझना हो तो इतना काफी है कि समस्त देवी-देवताओं के लिए अस्त्र-शस्त्र से लेकर भव्य भवन का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने किया था। प्रभु विश्वकर्मा ने ही सर्व सुविधा युक्त एवं प्रकृति की हर आपदा से सुरक्षित इंद्रलोक, भगवान श्री कृष्ण की भव्य द्वारिका नगरी, जिस में निवास करने के लिए लोग जीवन भर दान पुण्य करते रहते हैं- स्वर्गलोक, जिसके वैभव से धृतराष्ट्र भी मोहित हुए- हस्तिनापुर, विश्व का अद्वितीय नगर, न भूतो न भविष्यति- लंका, बिना पायलट के मन की गति से चलने वाला पुष्पक विमान, भगवान विष्णु का चक्र और भगवान शिव एवं मां दुर्गा का त्रिशूल आदि का निर्माण श्री विश्वकर्मा ने ही किया था।

🚩प्राचीन वैदिक विद्वान् कहते हैं
‘विश्वानि कर्माणि येन यस्य वा स विश्वकर्मा अथवा विश्वेषु कर्म यस्य वा स विश्वकर्मा”
अर्थात् जगत के सम्पूर्ण कर्म जिसके द्वारा सम्पन्न होते हैं अथवा सम्पूर्ण जगत में जिसका कर्म है वह सब जगत् का कर्ता परमपिता परमेश्वर विश्वकर्मा है।

🚩वेद शिल्प विद्या अर्थात श्रम विद्या का अत्यंत गौरव करते हुए हर एक मनुष्य के लिए निरंतर पुरुषार्थ की आज्ञा देते हैं। वेदों में निठल्लापन पाप है। वेदों में कर्म करते हुए ही सौ वर्ष तक जीने की आज्ञा है। (यजुर्वेद ४०.२)

🚩जन्म कथा
पुराण की कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में सर्वप्रथम नारायण अर्थात ‘साक्षात विष्णु भगवान’ क्षीर सागर में शेषशैय्या पर आविर्भूत हुए। उनके नाभि-कमल से चर्तुमुख ब्रह्मा दृष्टिगोचर हो रहे थे। ब्रह्मा के पुत्र ‘धर्म’ तथा धर्म के पुत्र ‘वास्तुदेव’ हुए। कहा जाता है कि धर्म की ‘वस्तु’ नामक स्त्री[१] से उत्पन्न ‘वास्तु’ सातवें पुत्र थे, जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे। उन्हीं वास्तुदेव की ‘अंगिरसी’ नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए थे। अपने पिता की भांति ही विश्वकर्मा भी आगे चलकर वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य बने।

🚩रूप
भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूप बताए जाते हैं। उन्हें कहीं पर दो बाहु, कहीं चार, कहीं पर दस बाहुओं तथा एक मुख, और कहीं पर चार मुख व पंचमुखों के साथ भी दिखाया गया है। उनके पाँच पुत्र- मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ हैं। यह भी मान्यता है कि ये पाँचों वास्तुशिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे और उन्होंने कई वस्तुओं का आविष्कार भी वैदिक काल में किया। इस प्रसंग में मनु को लोहे से, तो मय को लकड़ी, त्वष्टा को कांसे एवं तांबे, शिल्पी ईंट और दैवज्ञ को सोने-चाँदी से जोड़ा जाता है।

🚩निर्माण कार्य
आदि काल से ही विश्वकर्मा अपने विशिष्ट ज्ञान एवं विज्ञान के कारण ही न देवल मानवों अपितु देवगणों द्वारा भी पूजित और वंदनीय हैं। भगवान विश्वकर्मा के आविष्कार एवं निर्माण कार्यों के सन्दर्भ में इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी और शिवमण्डलपुरी का उल्लेख है। पुष्पक विमान का निर्माण तथा सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुएँ भी इनके द्वारा ही निर्मित हैं। कर्ण का ‘कुण्डल’, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान का त्रिशूल और यमराज का कालदण्ड इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भी भगवान विश्वकर्मा ने ही किया है।

🚩पूजा से लाभ

🚩भगवान विश्वकर्मा के पूजन से शिल्पकला का विकास, कारोबार में बढ़ोत्तरी होती है। साथ ही धन-धान्य और सुख-समृद्धि का आगमन होता है।

🚩विवाहदिषु यज्ञषु गृहारामविधायके।
सर्वकर्मसु संपूज्यो विशवकर्मा इति श्रुतम॥
स्पष्ट है कि विशवकर्मा पूजा जन कल्याणकारी है। अतएव प्रत्येक प्राणी सृष्टिकर्ता, शिल्प कलाधिपति, तकनीकी ओर विज्ञान के जनक भगवान विशवकर्मा जी की पुजा-अर्चना अपनी व राष्ट्रीय उन्नति के लिए अवश्य करनी चाहिए।

🔺 Follow on

🔺 Facebook
https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/

🔺Instagram:
http://instagram.com/AzaadBharatOrg

🔺 Twitter:
twitter.com/AzaadBharatOrg

🔺 Telegram:
https://t.me/ojasvihindustan

🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg

🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Translate »