बच्चे, युवा, बूढ़े और महिलाओं के लिए विशेष लेख, इसका पालन करने से कभी नही होंगे बीमार

28  February 2023
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🚩धरती के घूमने पर अंगों की कार्यप्रणाली बदलती रहती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक पृथ्वी 24 घंटे अपनी धुरी पर घूमती रहती है। इससे मनुष्य शरीर के आंतरिक रसायन बुरी और अच्छी तरह प्रभावित होते रहते हैं। इस दौरान दिमाग, लिवर, दिल और कोशिकाओं के काम करने का तरीका तेजी से बदलता रहता है। वैज्ञानिक गहराई से अध्ययन कर रहे हैं ताकि समय और अंगों के काम करने के तरीके के संबंध में ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल की जा सके, लेकिन भारतीय ऋषियों ने इसे पहले ही खोज लिया था।

 

🚩हमारे पूर्वजों ने सभ्यता के विकास के प्रारंभ में ही समय के महत्व को समझ लिया था। उन्होंने सूर्य, चंद्रमा, ग्रहों एवं नक्षत्रों की गतिविधियों द्वारा समय का हिसाब-किताब रखने का एक विज्ञान विकसित किया। उन्होंने घड़ी के आविष्कार के पूर्व ही समय को भूत, भविष्य एवं वर्तमान, दिन-रात, प्रात:काल, मध्यकाल, संध्याकाल, क्षण, प्रहर आदि में बांटकर सोने-जागने, खाने-पीने, काम-आराम, मनोरंजन आदि सभी क्रियाकलापों को समयबद्ध तरीके से करने पर बल देकर संपूर्ण दिनचर्या को धार्मिक परंपरा में बांध दिया था। हमारे ऋषियों और आयुर्वेदाचार्यों ने जो जल्दी सोने-जागने एवं आहार-विहार की बातें बताई हुई हैं, उन पर अध्ययन व खोज करके आधुनिक वैज्ञानिक और चिकित्सक अपनी भाषा में उसका पुरजोर समर्थन कर रहे हैं।
🚩आपने नाम सुना होगा कलाई घड़ी, दीवार घड़ी, इलेक्ट्रॉनिक घड़ी और इलेक्ट्रॉनिक क्वार्ट्ज घड़ियां आदि का, लेकिन ‘जैविक घड़ी’ का नाम आपने शायद ही सुना होगा। दरअसल, यह घड़ी आपके भीतर ही होती है। इस घड़ी के भी 3 प्रकार हैं- एक है शारीरिक समय चक्र और दूसरा मानसिक समय चक्र और तीसरा आत्मिक समय चक्र। यहां हम बात करेंगे शारीरिक समय चक्र की जिसे ‘जैविक घड़ी’ कहा जाता है।
🚩प्रत्येक व्यक्ति का जन्म, जीवन और मृत्यु समय तय है। यह उसने खुद ही प्रकृति के साथ मिलकर तय किया है। हालांकि इसे समझना छोड़ा मुश्किल है। सिर्फ यह समझें कि प्रकृति की अपनी एक घड़ी है, जो संपूर्ण धरती के पेड़-पौधों, प्राणी जगत और मनुष्यों पर लागू होती है। प्रत्येक जीव-जगत उस घड़ी अनुसार ही कार्य करता है, लेकिन मानव ने उसके अनुसार कार्य करना ही छोड़ दिया है।
🚩प्रकृति ने हमें यह जो घड़ी दी है वह हमें दिखती तो नहीं है, लेकिन अपना काम सुनिश्चित रूप से निरंतर करती रहती है। प्रकृति में सभी जीव अपने बाह्य एवं आंतरिक वातावरण में हो रहे इन दैनिक, मासिक तथा वार्षिक परिवर्तनों के प्रति सचेत रहते हैं, लेकिन मानव नहीं। वातावरण में होने वाले इन परिवर्तनों की समय-सारिणी के अनुरूप ही उनकी यह आंतरिक ‘जैविक घड़ी’ शरीर के विभिन्न क्रियाकलापों का संचालन करती है।
🚩सूर्य के उदयकाल की शुरुआत से सूर्यास्त के बाद तक और फिर सूर्यास्त के बाद से सूर्य उदय के काल तक समय एक चक्र की भांति चलता रहता है और उसी के अनुसार शरीर भी जागता, जीता और सोता रहता है। इस दौरान शरीर में उसी तरह परिवर्तन होते रहते हैं, जैसे कि प्रकृति में होते रहते हैं। प्रत्येक प्राणी सूर्य उदय के पूर्व उठ जाता है लेकिन मानव सोया रहता है। बिजली के आविष्कार के बाद तो मानव की संपूर्ण दिनचर्या ही बदल गई है। सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है और उसी के उदय के साथ हमारे शरीर का तापमान बढ़ता और उसके अस्त के बाद घटता जाता है।
🚩जिस तरह सूर्य उदय और अस्त हो रहा है उसी तरह चन्द्र भी उदय और अस्त हो रहा है। मंगल, शुक्र, शनि, बुध और बृहस्पति भी उदय और अस्त हो रहे हैं। सभी के उदय और अस्त होने के बीच में जो एक छाया काल आता है, उसे कुछ लोग राहु और केतु का काल कहते हैं और इसका सबसे ज्यादा असर धरती के ध्रुवों पर होता है। हालांकि राहु और केतु की ज्योतिष में अलग व्याख्या है।
🚩इस संपूर्ण चलायमान जगत के साथ ही व्यक्ति की प्रकृति जुड़ी हुई है और उसी के आधार पर उसकी आंतरिक ‘जैविक घड़ी’ निर्मित हुई है। प्रकृति ने खुद ही व्यक्ति के सोने-जागने, खाने-पीने और अन्य क्रियाएं करने का समय निर्धारण कर रखा है, लेकिन मनुष्य उस समय के विपरीत कार्य करता है।
🚩सभी का प्राकृतिक समय निर्धारित :
सभी पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों व अन्य प्राणियों की ‍दिनचर्या आधारित है प्राकृतिक रूप से निर्मित जैविक घड़ी पर। पेड़-पौधों में निश्चित समय पर फूल एवं फल लगना, बसंत के समय पतझड़ में पुरानी पत्तियों का गिरना, पौधों का नई कोंपलें धारण करना, समय पर ही बीज विशेष का अंकुरण होना- ये सब जैविक घड़ी की सक्रियता का परिणाम हैं। विज्ञान इस बात को साबित कर चुका है कि इंसानों की तरह पेड़-पौधे भी रात और दिन पहचानते हैं।
🚩दोप. 3 से 5 बजे तक मे – ( मूत्राशय में ) 2-4 घंटे पहले पिये पानी से इस समय मूत्र-त्याग की प्रवृत्ति होगी ।
🚩शाम 5 से 7 बजे तक मे  – ( गुर्दे में ) इस समय हलका भोजन कर लेना चाहिए । सूर्यास्त के 10 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक (संध्याकाल में) भोजन न करें । शाम को भोजन के तीन घंटे बाद दूध पी सकते हैं ।
🚩रात्रि 7 से 9 बजे तक मे  – ( मस्तिष्क में ) इस समय मस्तिष्क विशेष रूप से सक्रिय रहता है । अतः प्रातःकाल के अलावा इस काल में पढ़ा हुआ पाठ जल्दी याद रह जाता है ।
🚩रात्रि 9 से 11 बजे – ( रीढ़ की हड्डी में स्थित मेरुरज्जू में ) इस समय की नींद सर्वाधिक विश्रांति प्रदान करती है । इस समय का जागरण शरीर व बुद्धि को थका देता है ।
🚩रात्रि 11 से 1 बजे तक मे  – ( पित्ताशय में ) इस समय का जागरण पित्त-विकार, अनिद्रा, नेत्ररोग उत्पन्न करता है व बुढ़ापा जल्दी लाता है । इस समय नई कोशिकाएँ बनती हैं ।
🚩रात्रि के 1 से 3 बजे तक मे  – ( यकृत में ) इस समय का जागरण यकृत (लीवर) व पाचन तंत्र को बिगाड़ देता है ।
🚩ऋषियों व आयुर्वेदाचार्यों ने बिना भूख लगे भोजन करना वर्जित बताया है । अतः प्रातः एवं शाम के भोजन की मात्रा ऐसी रखें, जिससे ऊपर बताये समय में खुलकर भूख लगे ।
🚩जिस समय शरीर नींद के वश में होकर नि‍ष्क्रिय रहता है उस समय जागते रहते से दृष्टि मंद होकर भ्रमित अवस्था में रहती है। ऐसे समय में ही अधिकतर सड़क दुर्घटनाएं होती हैं।
🚩अंत में उपरोक्त बताए गए नियम ‘जैविक घड़ी’ अनुसार हैं जिस पर विज्ञान के बहुत शोध किया है। आधुनिक युग में जेम्स एवं डोरोथी मूर ने ‘जैविक घड़ी’ के संबंध में महत्वपूर्ण प्रयोग किए हैं। दक्षिण जर्मनी के म्युनिख शहर में मशहूर माक्समिलियान यूनिवर्सिटी में भी इस संबंध में कई शोध किए गए हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार ‘जैविक घड़ी’ शुरू करने के लिए जिम्मेदार जीन की पहचान भी कर ली गई है।
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