नरक चतुर्दशी (रूप चौदस) – पाप विनाश और सौंदर्य का पर्व

नरक चतुर्दशी (रूप चौदस) – पाप विनाश और सौंदर्य का पर्व

19 अक्टूबर 2025 | AzaadBharat.org

प्रस्तावना

दीपावली से एक दिन पूर्व आने वाली नरक चतुर्दशी, जिसे रूप चौदस या छोटी दीपावली भी कहा जाता है, भारतीय संस्कृति में अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह दिन केवल बाहरी सौंदर्य और स्वच्छता का प्रतीक नहीं, बल्कि आंतरिक पवित्रता, सदाचार और आत्मशुद्धि का संदेश देने वाला पर्व है।
यह उत्सव हर वर्ष कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है।

धार्मिक महत्त्व

पुराणों के अनुसार, इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध कर सोलह हजार कन्याओं को उसके अत्याचार से मुक्त कराया था। इस विजय के उपलक्ष्य में लोगों ने दीप जलाकर उत्सव मनाया। तभी से दीपदान की परंपरा प्रारंभ हुई, जिसे आज “छोटी दीपावली” कहा जाता है।

रूप चौदस का अर्थ

“रूप चौदस” शब्द दो भागों से बना है —

‘रूप’ अर्थात सौंदर्य

‘चौदस’ अर्थात चतुर्दशी की तिथि

इस दिन स्नान, तैलाभ्यंग (तेल मालिश) और रूप-संवर्धन का विशेष महत्त्व माना गया है। मान्यता है कि सूर्योदय से पूर्व उबटन, तेल स्नान और ध्यान करने से शरीर और मन दोनों शुद्ध होते हैं और रोगों से रक्षा होती है।

पौराणिक कथा

कथाओं में वर्णन है कि राजा रंतिदेव ने यमराज को प्रसन्न करने के लिए इस दिन विधिपूर्वक स्नान और पूजा की थी। इससे उन्हें यमलोक नहीं जाना पड़ा। तभी से यम-तर्पण और यमदीपदान का विशेष महत्त्व प्राप्त हुआ।
संध्या समय घर के बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर यमराज की आराधना की जाती है, जिससे अकाल मृत्यु से रक्षा होती है।

नरक चतुर्दशी पर विशेष करणीय कार्य

✅ सूर्योदय से पूर्व उठें और तिल तेल से अभ्यंग स्नान करें।
✅ मंत्रजप, साधना और जागरण करें — यह मंत्रसिद्धि के लिए अत्यंत शुभ रात्रि मानी जाती है।
✅ सरसों के तेल या घी का दीपक जलाएं, और उससे काजल बनाकर रखें। मान्यता है कि यह नजर दोष और भूतबाधा से रक्षा करता है।
✅ संध्या के समय चौमुखी दीपक जलाकर चौराहे पर रखना शुभ होता है। इससे यमराज की कृपा प्राप्त होती है।
✅ जो व्यक्ति सूर्योदय के बाद स्नान करता है, उसके पुण्यों का क्षय होता है।

‍♂️ आध्यात्मिक संदेश

नरक चतुर्दशी का गूढ़ अर्थ केवल राक्षस वध या रूप-सज्जा तक सीमित नहीं है। यह पर्व हमें सिखाता है कि असली नरक हमारे भीतर का अज्ञान, क्रोध, लोभ और अहंकार है। जब हम इन नकारात्मक भावों का नाश कर देते हैं, तभी सच्चा आध्यात्मिक सौंदर्य और प्रकाश प्रकट होता है।

✳️ सामाजिक और सांस्कृतिक पक्ष

इस दिन लोग अपने घरों की सफाई, सजावट और दीप प्रज्ज्वलन करते हैं। यह पर्व समाज को स्वच्छता, अनुशासन और सौहार्द का संदेश देता है।
रूप चौदस आज आरोग्य, सौंदर्य और सादगी का सुंदर संगम बन चुका है।

स्वास्थ्य दृष्टि से महत्त्व

आयुर्वेद के अनुसार इस दिन तैलाभ्यंग और उबटन का प्रयोग शरीर के लिए अत्यंत लाभदायक होता है।
यह न केवल त्वचा को सुंदर बनाता है बल्कि शरीर से विषैले तत्वों को भी निकालता है।
इसी कारण इस पर्व को “आरोग्य पर्व” भी कहा जाता है — यह ऋतु परिवर्तन के समय स्वास्थ्य संतुलन बनाए रखने का वैज्ञानिक तरीका है।

दीपदान का संदेश

शाम को घर, आँगन और तुलसी चौरे पर दीप जलाना शुभ माना जाता है।
ये दीप केवल रोशनी नहीं, बल्कि अंधकार पर प्रकाश, असत्य पर सत्य और निराशा पर आशा की विजय के प्रतीक हैं।
यह संदेश देता है कि चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों, जीवन में प्रकाश और सत्य का दीपक जलाए रखें।

आधुनिक समय में प्रासंगिकता

आज के व्यस्त और तनावपूर्ण जीवन में नरक चतुर्दशी का संदेश अत्यंत प्रासंगिक है।
यह हमें सिखाती है कि वास्तविक सौंदर्य भीतर की शुद्धता में है। बाहरी रूप तभी निखरता है जब मन और आचरण निर्मल हों।
यह दिन आत्मावलोकन, आत्मसंवर्धन और आत्मशुद्धि का अवसर प्रदान करता है।

निष्कर्ष

नरक चतुर्दशी केवल धार्मिक या पौराणिक पर्व नहीं, बल्कि एक जीवनदर्शन है।
यह हमें सिखाता है कि जब हम अपने भीतर के अंधकार को मिटाकर सत्य, प्रेम और प्रकाश का दीप जलाते हैं, तभी सच्चे अर्थों में “रूप चौदस” का उद्देश्य सिद्ध होता है।

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