चीफ जस्टिस का केस बंद हो सकता है, आम जनता व साधु-संतों का क्यों नही?

25 फरवरी 2021

 
 सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर 19 अप्रैल 2019 को यौन उत्पीड़न के आरोप लगाया गया, उसके बाद सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक समिति बनाई गई । जिसमें जस्टिस बोबड़े, जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस इंदू मल्होत्रा शामिल थी, जिन्होंने जांच करके 6 मई 2019 को मुख्य न्यायाधीश को क्लीनचिट दे दी गई।
 

 

 
आरोपों के बाद जस्टिस गोगोई ने कहा था कि शिकायतकर्ता के पीछे कुछ बड़ी ताकतें हैं जो सुप्रीम कोर्ट को अस्थिर करना चाहती हैं।
 
क्लीनचिट के बाद मामला अब बंद किया
 
सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व चीफ जस्टिस (CJI) रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न मामले में खुद के नोटिस (स्वत: संज्ञान) पर शुरू की गई सुनवाई गुरुवार को बंद कर दी। अदालत ने कहा कि पूर्व जस्टिस एके पटनायक की जांच किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है। उनकी रिपोर्ट के आधार पर यह केस बंद किया जा रहा है। उन्हें साजिश की जांच करने का काम सौंपा गया था।
 
कोर्ट ने कहा कि केस को दो साल बीत चुके हैं, ऐसे में साजिश की जांच के लिए जरूरी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड हासिल करने की संभावना बहुत कम रह गई है। सुप्रीम कोर्ट के वकील उत्सव बैंस ने जस्टिस गोगोई पर लगे यौन शोषण के आरोपों के पीछे साजिश होने का दावा किया था। रिपोर्ट में साजिश को स्वीकार किया गया है अदालत ने कहा कि इस मामले में साजिश से इनकार नहीं किया जा सकता।
 
पूर्व चीफ जस्टिस की बात को नकार नहीं सकते कि यह एक षड्यंत्र है, क्योंकि देशहित में जो भी कार्य कर रहे हैं उनको फंसाने के लिए बलात्कार कानून का अंधाधुंध उपयोग किया जा रहा है, यह बात हम तो सालों से बता रहे हैं पर इस पर ध्यान किसी का नहीं जा रहा। लेकिन सवाल ये ही कि जैसे आम जनता में किसी अथवा हिंदुनिष्ठ अथवा हिंदू साधु-संतों पर जूठे रेप केस जब लगते है तब उनको सीधा जेल भेज दिया जाता है और उनको निर्दोष होने के प्रमाण इकट्ठे करने के लिए जमानत तक नही दी जाती है यहाँ गलत हो रहा है कानुन समान है तो सबके लिए एक जैसा व्यवहार भी होना चाहिए।
 
 
बता दे कि पिछले कुछ सालों से देश में रेप केस की बाढ़ सी आ गई है, एक तरफ इंटरनेट, टीवी, फिल्मों, चलचित्रों व अखबारों द्वारा ऐसी अश्लीलता भरी सामग्री परोसी जा रही है, जिससे रेप केस बढ़ रहे हैं दूसरी ओर कड़े कानून बनाए जा रहे हैं, अब तो ऐसा हो रहा है कि जो वास्तविकता में पीड़िता होती है उसको न्याय नही मिल पाता और बलात्कार के कड़े कानून का कुछ मनचली महिलाओं द्वारा बदला लेने या पैसे ऐठने या प्रसिद्ध व्यक्ति को फंसाने के लिए षडयंत्र के तरत भयंकर दुरुपयोग किया जा रहा है, ये समाज के लिए बहुत खरतनाक ट्रेंड है।
 
बलात्कार के कड़े कानून के शिकार सबसे पहले हिंदू संत आशाराम बापू हुए, उन पर शाहजहांपुर (उ.प्र) की रहने वाली, छिंदवाड़ा (म.प्र)में पढ़ने वाली, जोधपुर (राजस्थान) की घटना बताकर  दिल्ली में FIR दर्ज करवाती है, वो भी घटना के 5 दिन बाद, लेकिन उस FIR की रिकॉर्डिंग गायब कर दी गई, हेल्पलाइन रजिस्टर के कई पन्ने फाड़ दिए गए, मेडिकल जांच में एक खरोंच का भी निशान नहीं और बड़ी बात कि घटना की रात लड़की किसी संदिग्ध व्यक्ति से लगातार संपर्क में थी, उस संदिग्ध व्यक्ति की कॉल डिटेल को कोर्ट में पेश भी किया गया फिर भी बापू आसारामजी को उम्रकैद की सजा दी गई । इससे साफ पता चलता है कि उनके खिलाफ कोई बड़ी साजिश रची गई है क्योंकि उन्होंने धर्मान्तरण पर रोक लगाई और देश-विदेश में हिन्दू धर्म का बड़े पैमाने पर प्रचार-प्रसार किया था।
 
अब सवाल उठता है कि जैसे चीफ जस्टिस पर आरोप लगे और तुरंत जांच कमेटी बनाई और 17 दिन में ही क्लीनचिट मिल गई, महिला झूठी साबित हुई वैसे ही हर नागरिक, हिंदुनिष्ठ, हिंदू साधु-संतों पर जो झूठे आरोप लग रहे हैं उसके लिए भी स्पेशल जांच कमेटी बनाकर जांच करनी चाहिए । बिना सबूत सालों से जेल में रखना फिर उनको उम्रकैद दे देना वो भी बिना किसी सबूत के, क्या ये उनके साथ अन्याय नहीं ???
 
जैसे चीफ जस्टिस पर आरोप लगने के बाद मीडिया को इस मामले में संयम बरतने को कहा गया वैसे ही हिन्दू साधु-संतों के खिलाफ जो मीडिया 24 घंटे डिबेट चलाकर खबरें दिखाती है उसपर भी रोक लगनी चाहिए ।
 
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