क्यों मनाया जाता है धनतेरस का त्योहार ? जानिए

21 October 2022
azaadbharat.org

🚩भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धन से ऊपर माना जाता रहा है। यह कहावत आज भी प्रचलित है कि ‘पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया’ इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है। जो भारतीय संस्कृति के हिसाब से बिल्कुल अनुकूल है।

🚩शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। मान्यता है कि भगवान धन्वंतरि विष्णु के अंशावतार हैं। संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धन्वंतरि का अवतार लिया था। भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने के उपलक्ष्य में ही धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।

🚩धनतेरस के दिन संध्या के समय घर के बाहर हाथ में जलता हुआ दिया लेकर भगवान यमराज की प्रसन्नता हेतु उन्हें इस मंत्र से दीपदान करना चाहिए । इससे अकाल मृत्यु नहीं होती । मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह । त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतामिति ।।(स्कंद पुराण, वैष्णव खंड)यमराज को दो दीपक दान करने चाहिए तथा तुलसी के आगे दीपक रखना चाहिए, इससे दरिद्रता मिटती है।

🚩धनतेरस के दिन अपने सामर्थ्य के अनुसार किसी भी रूप में चांदी एवं अन्य धातु का खरीदना अति शुभ है। संपत्ति की प्राप्ति हेतु कुबेर देवता के लिए घर के पूजा स्थल पर दीप दान करें एवं मृत्यु देवता यमराज के लिए मुख्य द्वार पर भी दीप दान करें।

🚩यमदीपदान करनेके संदर्भ में बताते हैं कि यम, मृत्यु एवं धर्म के देवता हैं । हमें सतत भान होना आवश्यक है कि, प्रत्येक मनुष्य की मृत्यु निश्चित है । ऐसे भान से मनुष्य के हाथों कभी बुरा कर्म अथवा धन का अपव्यय नहीं होता । यमदेव के लिए दीपदान करकर कहें कि, हे यमदेव, इस दीप समान हम सतर्क हैं, जागरूक हैं । जागरुकता व प्रकाश का प्रतीक दीप हम आपको अर्पित कर रहे हैं, इसका स्वीकार करें । मृत्यु का भान सदैव रखकर हम जीवन बिताएंगे, तो हमसे अवश्य ही धर्मपालन होगा ।

🚩व्यापारियों द्वारा किया जाने वाला द्रव्यकोष पूजन

🚩व्यापारी लोगोंके लिए यह दिन विशेष महत्त्वका है । व्यापारी वर्ष, एक दीवाली से दूसरी दीवाली तक होता है । नए वर्ष की लेखा-बहियां इसी दिन लाते हैं । कुछ स्थानों पर इस दिन व्यापारी द्रव्य कोष का अर्थात तिजोरी का पूजन करते हैं ।

🚩पूर्वकाल में साधना के एक अंग के रूप में ही व्यापारी वर्ग इस दिन द्रव्य कोष का पूजन करते थे । परिणाम स्वरूप उनके लिए श्री लक्ष्मी जी की कृपा से धन अर्जन एवं उसका विनियोग उचित रूप से करना संभव होता था । इस प्रकार वैश्य वर्ण की साधना द्वारा परमार्थ पथ पर अग्रसर होना व्यापारी जनों के लिए संभव होता है ।

🚩यहां ध्यान रखने योग्य बात यह है कि, धनत्रयोदशी के दिन अपनी संपत्ति का लेखा-जोखा कर शेष संपत्ति ईश्वरीय अर्थात सत्कार्य के लिए अर्पित करने से धनलक्ष्मी अंत तक रहती है ।

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