‘कोरोना’ महासंकट क्यों आया और इससे निपटने के लिए क्या उपाय हैं?

25 अप्रैल 2020
 
🚩आज हम सभी जन ‘कोरोना’ नामक एक महासंकट का सामना कर रहे हैं। गत सदी में पोलिओ, प्लेग, मलेरिया जैसी भयंकर महामारी के कारण लाखों लोगों की मृत्यु हुई थी, ऐसा हमने केवल सुना था। उसके उपरांत शास्त्रज्ञों ने विभिन्न शोध कर उन पर टीका, दवाईयां खोज कर निकाली। इससे इन महामारीयों का उपाय भी मिला। विज्ञान की प्रगति की यह कहानियां सुनने के पश्‍चात सभी की ऐसी मानसिकता ही बन गई थी कि अब भविष्य में ऐसी स्थिति का निर्माण ही नहीं हो सकता। उसके साथ मानवी बुद्धि और प्रभुत्व के अहंकार के कारण हमे देवता-धर्म यह संकल्पना पिछडी, अंधश्रद्धा लगने लगी। ऐसे समय ही प्रकृति मानव को उसकी मर्यादा का भान करवाती है।
 
🚩अनेक संत-महापुरुष सतत स्वार्थ त्यागकर धर्म के मार्ग पर चलने का आह्वान कर रहे है, अन्यथा आगामी काल मे नैसर्गिक आपत्तियां तथा महामारी जैसा संकट आने की पूर्वसूचना वो दे रहे थे। हम सभी ने उनकी ओर ध्यान ही नहीं दिया। आज प्रत्यक्ष में ‘कोरोना’ (कोविड-१९) नामक एक वायरस के कारण मानव ने की हुई प्रगति, विज्ञान की आधुनिकता के अहंकार के चिथडे उड गए हैं।
 
🚩मानव द्वारा ही निर्मित इस आपत्ति के कारण आधुनिक हवाई जहाज भूमि पर उतर आए हैं, बुलेट ट्रेनें यार्ड में खडी हैं, कारें-बसें बंद हैं और इनका निर्माण करनेवाला मानव आज अपने ही घर में कैद हो बैठा है। इस वायरस का संसर्ग न हो इसलिए वह सारे प्रयास कर रहा है, क्योंकि आज के दिन तक तो इस भयंकर महामारी पर आधुनिक विज्ञान के पास भी कोई दवाई उपलब्ध नहीं है। ऐसी स्थिति में प्रकृति में विद्यमान दैवी शक्ति की शरण जाने के सिवाय हम मानवों के पास अन्य कोई पर्याय भी तो नहीं है।
 
🚩यह प्रकृति ईश्‍वर निर्मित माया है तथा उसका निर्माता ईश्‍वर, विश्‍व का चालक है। यद्यपि हम ईश्‍वर और प्रकृति को भिन्न मानते हैं, पर धर्म के अनुसार ईश्‍वर और प्रकृति एक ही है। इसलिए विश्‍व का यह संकट दूर होने के लिए हम सामान्य जन उस सर्वशक्तिमान ईश्‍वर की शरण तो निश्‍चितरूप से जा सकते हैं। ईश्‍वर सूक्ष्म, अर्थात आखों से दिखाई न पडनेवाला होने के कारण उसे हमसे नारियल, फूल, मिठाई, धन ऐसे किसी चीज की अपेक्षा नहीं होती। वह तो चाहता है कि हम अपने जीवन को जन्म-मृत्यु के फेर से मुक्त होने के लिए प्रयास करें ।
 
मनुष्य के स्वभाव में छुपा है, आपत्तियों का कारण !
 
🚩आज विश्‍व की आपत्तियों का कारण कहीं न कहीं हमारे अनुचित व्यवहार का यह परिणाम है। लोग पृथ्वी पर उपलब्ध संसाधनों का बिना सोचे-समझे दुरुपयोग करते हैं। अनेकों को पता होते हुए भी वो अनुचित व्यवहार करते हैं, इसलिए कि उनका अहंकार और स्वार्थ उनको समाज का विचार नहीं करने देता। तीव्र अहंकार तथा स्वार्थी वृत्ति होने से, वें प्रकृति, मनुष्य तथा अन्य जीवों को कष्ट देकर अधिकतर समय केवल अपने लिए ही सुख जुटाने में लगे रहते हैं। सरकार कितना भी प्रयास करे, कानून बना ले, परंतु जब तक वह स्वयं अपने समाज ऋण को नहीं पहचानेगा, तब तक परिवर्तन असंभव है।
 
🚩समाज में चुनिंदा लोग ही प्रकृति और समाज का विचार करते हैं। यदि उनके जीवन में हम झांककर देखें, तो वें धर्माचरण करनेवाले, दयालु स्वभाव के और सभी के प्रति प्रेम रखनवाले हैं। उनके व्यवहार में व्यापकता है। उनका आचरण हम सबको लोककल्याण करने की प्रेरणा देता है। उन्हें अधर्म का परिणाम पता है। कानून के दंड से भी अधिक प्रभावी है, व्यक्ति का आत्मसंयम ! जो केवल धर्म को समझने से और उसको जीवन में उतारने से आ सकता है।
 
 
🚩कोरोना महामारी से हम बच जाए और आगे ऐसी आपदाएं न आये इसलिए हमें महापुरुषों द्वारा बताये गये सनातन धर्म के अनुसार आचरण करना चाहिए और ईश्वर की उपासना करनी चाहिए तभी हम ऐसी आपदाओं से बच सकते है नही तो आने वाले समय मे भयंकर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
 
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