आम आदमी कैसे भरेगा वकीलों की 15 लाख की फीस ?

21 July 2022

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🚩कुछ वकील प्रति सुनवाई के लिए 10-15 लाख रुपए लेते हैं, तो एक आम आदमी इतनी अधिक फीस कैसे भुगतान कर सकता है ? इससे गरीबों और हाशिए के लोगों के लिए न्याय पहुँच से बाहर हो गया।

🚩3.5 लाख कैदी बिना अपराध साबित हुए जेल में है।

🚩सरकार और न्यायालय को हमारे देश की जेलों में वर्षों से बंद उन कैदियों के बारे में भी कभी सोचना चाहिए, जो रिहाई के लिए भी वर्षों से तरस रहे हैं । न्यायालय को हमारे देश की जेलों में वर्षों से बंद उन कैदियों के बारे में भी कभी सोचना चाहिए, जो रिहाई के लिए भी वर्षों से तरस रहे हैं । रिहाई की बाट जोहते न जाने कितनी आंखें पथरा गयीं, कितने जिस्मों में झुर्रियां चढ़ आयीं और कितनी ही जिंदगियां काल का ग्रास बन गईं ।

🚩केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju) ने शनिवार (16 जुलाई 2022) को अदालतों में केवल अंग्रेजी भाषा का ही इस्तेमाल किए जाने पर चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि निचली अदालतों और हाई कोर्ट में हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं को प्रमुखता दी जानी चाहिए। अदालत की भाषा अगर आम होगी तो हम कई तरह की समस्याओं का निराकरण कर सकते हैं। इसके साथ ही केंद्रीय मंत्री कहा कि संसद के अगले सत्र में 71 अलग-अलग कानूनों को खत्म किया जाएगा।

🚩किरेन रिजिजू ने यह बात राजस्थान के जयपुर में रही 18 वीं अखिल भारतीय कानूनी सेवा प्राधिकरण की बैठक को संबोधित करते हुए कही। इसके साथ ही कानून मंत्री ने देश के टॉप वकीलों द्वारा एक केस के 10-15 लाख रुपए की फीस लिए जाने पर चिंता जाहिर की और कहा कि इससे गरीबों और हाशिए के लोगों के लिए न्याय पहुँच से बाहर हो गया।

🚩उन्होंने आगे कहा, “संसाधनवान लोग बड़े वकीलों का खर्च उठा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट में ऐसे वकील हैं जिनकी फीस आम आदमी नहीं उठा सकता। अगर वे प्रति सुनवाई के लिए 10-15 लाख रुपए लेते हैं, तो एक आम आदमी कैसे भुगतान कर सकता है?” मंत्री ने ये भी स्पष्ट किया कि 18 जुलाई से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में अप्रचलित 71 कानूनों को निरस्त कर दिया जाएगा।

🚩केंद्रीय मंत्री ने सभी राज्यों की कानूनी एजेंसियों से इस साल 15 अगस्त,2022 तक अंडर ट्रायल कैदियों की रिहाई के लिए प्रयास करने की अपील की है। उन्होंने स्पष्ट किया कि देश में 3.5 लाख कैदी विचाराधीन हैं। हर जिले में जिला मजिस्ट्रेट के तहत एक रिव्यू कमिटी है। हम सभी हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से प्रोएक्टिव काम करने का अनुरोध करते हैं। वे कर रहे हैं। उनसे और प्रो एक्टिव काम की अपील करते हैं ताकि जिला जज उनसे प्रभावित हों।

🚩भगत सिंह भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों के संदर्भ में देखा जाये, तो कानून की नजर में जब तक किसी व्यक्ति का अपराध साबित नहीं हो जाता, उसे ‘अपराधी’ नहीं माना जा सकता । इसके बावजूद हजारों विचाराधीन कैदी आज अपराधियों की तरह जेल की यातनाएं सहने पर मजबूर हैं । आये दिन उन्हें जेल के अंदर होनेवाली हिंसा का भी शिकार होना पड़ता है । इन सबका सीधा असर उनके मनोवैज्ञानिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है । जेल में रहने के दौरान कई कैदियों की मौत हो जाती है, कई अपने परिवार या पड़ोसियों को खो देते हैं, कईयों के घर की पीढ़ियां बचपन से जवानी या जवानी से बुढ़ापे की दहलीज पर पहुंच जाती हैं । इसके अलावा हमारे समाज में जेल की सजा काट कर आये कैदी को हमेशा से ही हिकारत भरी नजरों से देखा जाता रहा है । यहां तक कि जेल से लौटने के बाद उन्हें अपने परिवार या समुदाय से भी वह सम्मान नहीं मिलता, जो पहले मिला करता था । अगर किसी को जमानत मिल भी गयी, तो भी बार-बार अदालत में पेशी होने की वजह से उसे कहीं जॉब मिलने में परेशानी होती है ।

🚩विचाराधीन कैदियों को कानूनी सहायता भी मुश्किल से मिल पाती है। ऐसे ज्यादातर कैदी गरीब हैं, जिन पर छोटे-मोटे अपराध करने का आरोप है । बावजूद इसके वे लंबे समय से जेलों में बंद है, क्योंकि न तो उन्हें अपने अधिकारों की जानकारी है और न ही कानूनी सलाहकारों तक उनकी पहुंच है ।

🚩भारतीय संविधान की धारा-21 ने भी भारत के हर व्यक्ति को सम्मानपूर्वक जीने के अधिकार दिया है । संविधान यह कहता है कि किसी भी व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जायेगा । इसी को ध्यान में रखते हुए कुछ वर्ष पूर्व माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक अहम फैसले में अधीनस्थ न्यायालयों को सभी आपराधिक मामलों की जल्द-से-जल्द स्पीडी ट्रायल के लिए सुलझाने का निर्देश जारी किया था । यह फैसला निश्चित रूप से स्वागतयोग्य है, किंतु पर्याप्त बुनियादी सुविधाओं के अभाव में इस फैसले को वास्तविक रूप से अमलीजामा पहनाना उतना ही मुश्किल है ।

🚩 क्षमता से अधिक कैदियों का भार एनसीआरबी द्वारा जारी भारतीय जेल सांख्यिकी के अनुसार, भारतीय जेलों में उनकी वास्तविक क्षमता से करीब 14% अधिक कैदी रह रहे हैं । इनमें से करीब दो-तिहाई से भी अधिक कैदी विचाराधीन हैं।

🚩सरकार और न्यायायल को इसपर ध्यान देना चाहिए और जो विचारधीन कैदी है, जिनको झूठे मामलों में सेशन कोर्ट ने सजा भी सुना दी है ऐसा जिस केस में लगता है उनको तुंरत रिहा करना चाहिए ।

🚩सरकार का एक ऐसा भी कर्तव्य बनता है कि समाज को श्रीमद्भागवतगीता अनुसार शिक्षा दी जाए जिससे देश मे कम अपराध हो जिससे न्यायालय, सरकार और जेल प्रशासन को ज्यादा परेशानी न हो सब अपने दिव्य कर्म करके मनुष्य जीवन को सफल बनाए ।

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