आइए जानें क्या सचमुच वीर सावरकरजी ने अंग्रेजों से माफी मांगी थी…! ???

26 February 2023

azaadbharat.org

🚩हमारे देश में एक विशेष जमात यह राग अलापती रहती है , कि जिन्नाह अंग्रेजों से लड़े थे , इसलिए महान थे। जबकि वीर सावरकर गद्दार थे , क्योंकि उन्होंने अंग्रेजों से माफ़ी मांगी थी। वैसे शायद ये लोग यह बात भूल गए हैं या इस सच को छुपाकर देश को भ्रमित कर के अंधेरे में रखना चाहते हैं , कि जिन्नाह ने ही देश का बंटवारा करवाया था और वीर सावरकर जी ने देश की अखंडता के लिये जीवन पर्यंत कार्य किये , उनका तो सारा जीवन ही राष्ट्र को समर्पित था।

🚩जो तथाकथित बुद्धिजीवी उनको अंग्रेजों का चाटुकार बता रहे हैं , वे पहले सावरकर को जान तो लें , कि उन्होंने क्या-क्या किया था ?

🚩1. वीर सावरकर ही ऐसे पहले क्रांतिकारी देशभक्त थे , जिन्होंने 1901 में ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया की मृत्यु पर नासिक में शोक सभा का विरोध किया और कहा कि वो हमारे शत्रु देश की रानी थी, फिर हम शोक क्यों करें ? क्या किसी भारतीय महापुरुष के निधन पर ब्रिटेन में कभी शोक सभा हुई है ?

🚩2. वीर सावरकर ही ऐसे पहले देशभक्त थे , जिन्होंने एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह का उत्सव मनाने वालों को त्र्यम्बकेश्वर में बड़े बड़े पोस्टर लगाकर कहा था , कि गुलामी का उत्सव मत मनाओ…

🚩3. विदेशी वस्त्रों की पहली होली पूना में 7 अक्टूबर 1905 को वीर सावरकर ने ही जलाई थी…।

🚩4. वीर सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी थे , जिन्होंने विदेशी वस्त्रों का दहन किया, तब बाल गंगाधर तिलक ने अपने पत्र केसरी में उनको शिवाजी के समान बताकर उनकी प्रशंसा की थी ।

🚩5. वीर सावरकर द्वारा विदेशी वस्त्र दहन की इस प्रथम घटना के 16 वर्ष बाद गाँधी जी उनके मार्ग पर चले और उन्होंने 11 जुलाई 1921 को मुंबई के परेल में विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया…।

🚩6. वीर सावरकर पहले भारतीय थे , जिनको 1905 में विदेशी वस्त्र दहन के कारण पुणे के फर्म्युसन कॉलेज से निकाल दिया गया और दस रूपये जुर्माना लगाया । इसके विरोध में हड़ताल हुई, स्वयं तिलक जी ने ‘केसरी’ पत्र में सावरकर के पक्ष में सम्पादकीय लिखा…।

🚩7. वीर सावरकर ने 1909 में ब्रिटेन में “ग्रेज-इन परीक्षा” पास करने के बाद ब्रिटेन के राजा के प्रति वफादार होने की शपथ नहीं ली। परिणामस्वरूप उन्हें बैरिस्टर होने की उपाधि का पत्र कभी नहीं दिया गया…।

🚩8. वीर सावरकर ही वो महान देशभक्त थे , जिन्होंने अंग्रेजों द्वारा ग़दर कहे जाने वाले संघर्ष को ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ नामक ग्रन्थ लिखकर सुप्रसिद्ध कर दिया…।

🚩9. सावरकर के लिखे ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ पुस्तक पर ब्रिटिश संसद ने प्रकाशित होने से पहले प्रतिबन्ध लगाया था…।

🚩10. ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ विदेशों में छापा गया और भारत में भगत सिंह ने इसे छपवाया था । जिसकी एक-एक प्रति तीन-तीन सौ रूपये में बिकी थी। यह सिर्फ एक पुस्तक नहीं वरन् भारतीय क्रांतिकारियों के लिए यह पवित्र गीता सिद्ध हुई । पुलिस छापों में देशभक्तों के घरों में यही पुस्तक मिलती थी…।

🚩11. जब वीर सावरकर को समुद्री जहाज में बंदी बनाकर ब्रिटेन से भारत लाया जा रहा था , वो 8 जुलाई 1910 को समुद्र में कूद पड़े थे और तैरकर फ्रांस पहुँच गए थे…।

🚩12. वीर सावरकर पहले ऐसे क्रान्तिकारी थे , जिनका मुकद्दमा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग में चला, मगर ब्रिटेन और फ्रांस की मिलीभगत के कारण उनको न्याय नहीं मिला और बंदी बनाकर भारत लाया गया…।

🚩13. वीर सावरकर विश्व के पहले क्रांतिकारी और भारत के पहले ऐसे राष्ट्रभक्त थे , जिन्हें अंग्रेजी सरकार ने दो आजन्म कारावास की सजा सुनाई थी…।

🚩14. वीर सावरकर दो जन्म कारावास की सजा सुनते ही हंसकर बोले थे- “चलो, ईसाई सत्ता ने हिन्दू धर्म के पुनर्जन्म सिद्धांत को मान लिया…”।

*🚩15. वीर सावरकर ने काला पानी की सजा के समय 10 साल से भी अधिक समय तक आजादी के लिए कोल्हू चलाकर 30 पौंड तेल प्रतिदिन निकाला।

🚩16. वीर सावरकर ने काला पानी की सज़ा के समय काल कोठरी की दीवारों पर कंकड़ और कोयले से कविताएं लिखीं और 6000 पंक्तियाँ याद भी रखीं…।

🚩17. वीर सावरकर की लिखी हुई पुस्तकों पर आजादी के बाद भी कई वर्षों तक प्रतिबन्ध लगा रहा…।

🚩18. आधुनिक इतिहास में वीर सावरकर एक ऐसे विद्वान लेखक थे , जिन्होंने हिन्दू को परिभाषित करते हुए लिखा कि-“आसिन्धु सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारत भूमिका.पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितीस्मृतः.” अर्थात “समुद्र से हिमालय तक भारत भूमि जिसकी पितृभू है , जिसके पूर्वज यहीं पैदा हुए हैं व जिसके लिए यही पुण्य भू है, जिसके तीर्थ भारत भूमि में ही हैं, वही हिन्दू है”…।

🚩19. वीर सावरकर प्रथम राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सत्ता ने 30 वर्षों तक जेलों में रखा तथा आजादी के बाद 1948 में नेहरु सरकार ने गाँधी हत्या की आड़ में लाल किले में बंद रखा पर आरोप झूठे पाए जाने के बाद न्यायालय द्वारा ससम्मान रिहा कर दिया गया… देशी-विदेशी दोनों सरकारों को उनके राष्ट्रवादी विचारों से डर लगता था…।

🚩20. महान क्रांतिकारी , राष्ट्रभक्त , स्वतंत्रता सेनानी , वीर सावरकर के मरणोपरांत 26 फरवरी 2003 को उसी संसद में उनकी मूर्ति लगी , जिसमे कभी उनके निधन पर शोक प्रस्ताव भी रोका गया था….।

🚩21. वीर सावरकर एक ऐसे राष्ट्रवादी विचारक थे , जिनके चित्र को संसद भवन में लगाने से रोकने के लिए कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा, लेकिन तत्कालीन माननीय राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम आजाद ने सुझाव पत्र नकार दिया और वीर सावरकर के चित्र का अनावरण राष्ट्रपति ने स्वयं अपने कर-कमलों से किया…।

🚩22. वीर सावरकर एक ऐसे राष्ट्रभक्त हुए , जिनके शिलालेख को अंडमान द्वीप की सेल्युलर जेल के कीर्ति स्तम्भ से UPA सरकार के मंत्री मणिशंकर अय्यर ने हटवा दिया था और उसकी जगह गांधीजी का शिलालेख लगवा दिया…

🚩23. महान स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी-देशभक्त, उच्च कोटि के साहित्यकार, “हिंदी-हिन्दू-हिन्दुस्थान” मंत्र के दाता, हिंदुत्व के सूत्रधार वीर विनायक दामोदर सावरकर एक ऐसे भव्य-दिव्य पुरुष, भारत माता के एक सच्चे सपूत थे, जिनसे 1947 तक तो अंग्रेजी सत्ता भय खाती थी और आजादी के बाद तत्कालीन सरकार भी भयभीत रहती थी।

🚩24. वीर सावरकर माँ भारती के ऐसे सपूत हुए , जिन्हें जीते जी और मरने के बाद भी आगे बढ़ने से रोका गया… पर आश्चर्य की बात यह है , कि इन सभी विरोधों के घोर अँधेरे को चीरकर आज वीर सावरकर के राष्ट्रवादी विचारों का सूर्योदय हो रहा है….।

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