अक्षय फल देने वाली आवला नवमी पर क्या करें – क्या न करें ? जानिए:-

1 November 2022

azaadbharat.org

🚩इस वर्ष आंवला नवमी का पर्व 2 नवम्बर 2022 बुधवार को मनाया जाएगा।

🚩आंवला नवमी के दिन आंवला के पेड़ की पूजा,अर्चना,आरती और परिक्रमा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती हैं।

🚩इस दिन आंवले के वृक्ष के निकट बैठकर भोजन करने से आरोग्य की प्राप्ति होती हैं।

🚩आंवले के वृक्ष की पूजा करने से देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन व्रत रखने से संतान की प्राप्ति भी होती है।

🚩आंवला भगवान विष्णु का सबसे प्रिय फल है और आंवले के वृक्ष में सभी देवी देवताओं का निवास होता है इसलिए इसकी पूजा का प्रचलन है।

🚩आयुर्वेद के अनुसार आंवला आयु बढ़ाने वाला फल है यह अमृत के समान माना गया है इसीलिए हिन्दू धर्म में इसका ज्यादा महत्व है।

🚩भारतीय सनातन पद्धति में पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए महिलाओं द्वारा आँवला नवमी की पूजा को महत्वपूर्ण माना गया है। कहा जाता है कि यह पूजा व्यक्ति के समस्त पापों को दूर कर पुण्य फलदायी होती है। जिसके चलते कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को महिलाएं आँवले के पेड़ की विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करती हैं।

🚩आँवला नवमी को अक्षय नवमी के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था। कहा जाता है कि आंवला भगवान विष्णु का पसंदीदा फल है। आंवले के वृक्ष में समस्त देवी-देवताओं का निवास होता है। इसलिए इसकी पूजा करने का विशेष महत्व होता है।

🚩व्रत की पूजा का विधान

🚩आंवला नवमी के दिन भक्त सुबह से ही स्नान ध्यान कर आँवला के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा में मुंह करके बैठते हैं।

🚩इसके बाद वृक्ष की जड़ों को दूध से सींच कर उसके तने पर कच्चे सूत का धागा लपेटा जाता है।

🚩तत्पश्चात रोली, चावल, धूप दीप से वृक्ष की पूजा की जाती है।

🚩भक्त आँवले के वृक्ष की १०८ परिक्रमाएं करके ही भोजन करते हैं।

🚩आँवला नवमी की कथा

🚩आँवला नवमी को पुत्र रत्न प्राप्ति के लिए आँवला पूजा के महत्व के विषय में प्रचलित कथा के अनुसार एक युग में किसी वैश्य की पत्नी को पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हो रही थी। अपनी पड़ोसन के कहे अनुसार उसने एक बच्चे की बलि भैरव देव को दे दी। इसका फल उसे उल्टा मिला। महिला कुष्ट की रोगी हो गई।

🚩इसका वह पश्चाताप करने लगे और रोग मुक्त होने के लिए गंगा की शरण में गई। तब गंगा ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आँवला के वृक्ष की पूजा कर आँवले के सेवन करने की सलाह दी थी।

🚩जिस पर महिला ने गंगा के बताए अनुसार इस तिथि को आँवला की पूजा कर आँवला ग्रहण किया था और वह रोगमुक्त हो गई थी। इस व्रत व पूजन के प्रभाव से कुछ दिनों बाद उसे दिव्य शरीर व पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, तभी से हिंदुओं में इस व्रत को करने का प्रचलन बढ़ा। तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है।

🚩आंवला नवमी के दिन विशेष ध्यान देने योग्य बात है कि इस दिन यत्नपूर्वक झूठ,कपट,बेईमानी करने से बचें और इस दिन अधिक से अधिक जप ,ध्यान,दान-पुण्य करें।

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