पति-पत्नी का संबंध पवित्र व आजीवन है, प्राचीन समय में पति-पत्नी आजीवन संयमी रहते थे और जीवनपर्यंत झगड़े भी नहीं होते थे, लेकिन वर्तमान में कुछ समय से पति-पत्नी में आपस में कलह बढ़ते जा रहे हैं, कहीं हत्या, तोकहीं भाग जाना, तोकहीं आत्महत्या कर लेना, अवैद्य संबंध बनाना यह सब भारतीय संस्कृति में नहीं है ये सब पाश्चात्य संस्कृति में है और ये हमें फिल्मों, टीवीसीरियलों, इंटरनेट, अखबारों आदि के द्वारा हमें परोसा जा रहा है उसे देखकर भारतीय लोग भी नकल करने लगे इसके कारण विवाहित जीवन नरक जैसा बनता जा रहा है ।
आपको बता दें कि मार्च महीने में मद्रास उच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों से कहा है कि वो पता लगाएं कि विवाहेत्तरसंबंध के लिए कहीं ‘मेगा टीवीसीरियल्स’ या अन्य चीजें तो जिम्मेदार नहीं है । न्यायालय ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि पिछले कुछ समय में हत्या, हमले और अपहरण जैसी आपराधिक घटनाओं में तेजी आई है ।
न्यायालय ने जानना चाहा कि क्या दोनों पति-पत्नी की आर्थिक स्वतंत्रता, इंटरनेट, यौन रोग, सोशल मीडिया, पश्चिमीकरण, परिवार को समय ना देने का अभाव तोविवाहेत्तरसंबंधों में बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदार नहीं । उच्च न्यायालय ने सुझाव दिया कि सामाजिक खतरे का विश्लेषण करने के लिए रिटायर्ड जजों और एक्सपर्ट की एक समिति बनाई जाए और हर जिले में परिवार परामर्श केंद्र स्थापित किए जाएं ।
मामले में सुनवाई कर रही जस्टिस एन किरुबाकरन और जस्टिस अब्दुल कुद्धोस की खंडपीठ ने कहा, ‘विवाहेत्तरसंबंध आजकल एक खतरनाक सामाजिक सामाजिक बुराई बन गया है। बहुत से जघन्य अपराध जिनमें घिनौनी हत्याएं, हमले, अपहरण आदि शामिल हैं, गुप्त रिश्ते की वजह से की गईं। ये दिन ब दिन खतरनाक रूप से बढ़ती जा रही है । अधिकांश हत्याएं पति या पत्नियों द्वारा अपने धोखेबाज साथी को खत्म करने के लिए की जाती हैं । यह पवित्र होना चाहिए, क्योंकि विवाहेत्तरसंबंधों के कारण परिवार तेजी से डरावना हो रहा है, परिवार बिखर रहे हैं। विवाहेत्तरसंबंधों के कारण हत्याओं में तेजी के मद्देनजर, इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए इस अदालत का बाध्य कर्तव्य था ।’
खंडपीठ ने आगे कहा कि भारत में विवाह प्रेम, विश्वास आधारित था । वैवाहिक संबंध पवित्र माना जाता था। हालांकि, जो पवित्र होना चाहिए वह तेजी से डरावना हो रहा है, विवाहेत्तरसंबंधों के कारण परिवार बिखर रहे हैं। न्यायालय ने आगे कहा कि अपराधों को रोकने या कम करने के कारणों और तरीकों का पता लगाने के प्रयास में, इस न्यायालय द्वारा कुछ प्रश्न उठाए जा रहे हैं।स्त्रोत : जनसत्ता
विवाह जैसे पवित्र बंधन का पावित्र्य नष्ट करनेवाले, समाज में अश्लीलता तथा गुनहगारी को बढावा देनेवाले एेसेटीवीसीरियल पर प्रतिबंध लगाए ! – सम्पादक, हिन्दुजागृति
हमारे देश मे विदेशी चैनल, चलचित्र, अशलील साहित्य आदि प्रचार माध्यमों के द्वारा युवक-युवतियों को गुमराह किया जा रहा है।
पाश्चात्य आचार-व्यवहार के अंधानुकरण से युवानों में जो फैशनपरस्ती, अशुद्ध आहार-विहार के सेवन की प्रवृत्ति कुसंग, अभद्रता, चलचित्र-प्रेम आदि बढ़ रहे हैं उससे दिनोंदिन उनका पतन होता जा रहा है। देश में ऐसी सीरियलों , फिल्मों पर पहले बेन लगना चाहिए जो हमारे पवित्र संबंधों को खराब कर रहा है।